मानवीय स्वभाव मे मनोरंजन के बड पैघ महत्व सर्वविदिते अछि। अदौकाल सँ रंगकर्म आ विभिन्न लोकनाच लोकरंजना लेल प्रयोग मे रहल अछि। आइ मानवीय समाज लेल मनोरंजनक संग-संग जीवन लेल सर्वाधिक जरूरी पक्ष जीवनोपयोगी शिक्षा लेल फिल्म बड पैघ भूमिका निभा रहल अछि। मानव सभ्यता सँ जुड़ल विभिन्न कथानक पर आधारित फिल्म वास्तव मे जीवनक अभिन्न अंग मानल जा रहल अछि। मैथिली भाषाक अस्तित्व केँ उत्कर्ष पर पहुँचेबाक लेल मैथिली फिल्म के सेहो बड पैघ इतिहास छैक। मैलोरंग प्रकाशन – मैथिली लोक रंग द्वारा प्रकाशित ‘मैथिली सिनेमाक इतिहास’ – लेखक किसलय कृष्ण मैथिली फिल्मक समग्र अवस्था पर उत्कृष्ट खाका प्रस्तुत कयलनि अछि। मैथिली भोजपुरी अकादमी, नई दिल्ली द्वारा शोधकार्य करैत मैथिली फिल्म केर सन्दर्भ मे एकटा महत्वपूर्ण काज कयलक, ई बहुत दूरगामी आ अत्यन्त आवश्यक काज भेल बुझू। तहिना, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, भारत द्वारा मैथिली फिल्म विषयक संगोष्ठीक आयोजन सेहो नितान्त जरूरी काज भ’ रहल अछि आ से अकादमीक लगभग ६ दशक के इतिहास मे पहिल बेर भ’ रहल अछि, एहि बात के खूब चर्चा सोशल मीडिया मे देखि रहल छी।
मैथिली फिल्म के इतिहास लिखनिहार किसलय कृष्ण समस्त मानव संसार मे फिल्म कहिया सँ केना-केना यात्रा करैत कतय धरि पहुँचल अछि, ताहि बातक जिकिर करैत मैथिली फिल्म के समग्र अवस्थाक विहंगम-विशद् वर्णन कएने छथि। फिल्म के स्वरूप आवाजरहित सँ आवाजसहितक चरण मे प्रवेश करैत साउन्ड, म्यूजिक, लाइट्स, आदिक बेहतरीन फ्यूजन (मिश्रण) केर चरण मे जाइत आब त एनिमेशन आ आर्टिफिशियल इन्टेलीजेन्स के विभिन्न कम्प्यूटरीकृत चरित्र (कैरेक्टर्स) सहितक फिल्म सब बनि रहल अछि। तहिना सम्पूर्ण मानव जगत के बदलैत व्यवहार मे फिल्म केर समयावधि सेहो बदलैत चलि गेल अछि। फिल्म निर्माण आ तकनीक केँ सिखबाक एक सँ एक संस्थान सब खुजि गेल अछि। एहि सँ करियर (भविष्य निर्माण) बनेबाक महत्वपूर्ण काज सेहो होमय लागल अछि। कैमरा चलेबाक लुरि, निर्देशनक तालिम, एडिटिंग के अनेकों पक्ष, एक्टिंग के विधिवत प्रशिक्षण – फिल्म सँ जुड़ल समस्त पक्ष पर आधारित सिलेबस अनुसार आइ लाखों लोक एकेडमिक कोर्स पूरा कय केँ फिल्म लाइन मे अपन भविष्य बनेबाक सपना पूरा कय रहल छथि। एहि समस्त परिदृश्य मे मैथिली फिल्म के अवस्था पर चिन्तन हेतु साहित्य अकादमीक ई संगोष्ठी एकटा नव आयाम स्थापित करत से विश्वास अछि।
हमरा दृष्टि मे मैथिली फिल्म ‘पैछला रोटी खेनिहार’ जेकाँ विलम्बहि सँ लेकिन अपन यात्रा येन-केन-प्रकारेण निरन्तरता मे रखने अछि। हमरा चर्चा करबाक अछि मैथिली लघु फिल्म पर, सेहो मात्र एक दर्शक के दृष्टि सँ। सामान्यतया मैथिली फिल्म दर्शकक दृष्टि मे कतेको तरहक निराशाक स्थिति-परिस्थिति निर्माण करबाक कारण बाजार विकसित नहि कय सकल देखल जाइछ। बाजार मे मैथिली उपर हिन्दी आ भोजपुरी खूब बढियाँ सँ हावी छैक। एकर मूल कारण छैक जे मैथिली मे कामचलाउ काज करयवला एटीट्यूड हावी रहैत छैक। राधा केँ नौ मन घी हेतनि तखन राधा नचती, ई बात मैथिलजक केँ पसिन नहि। इच्छा जागि गेल त किछु कय लेब! मोन कहि देलक आ फिल्म बनेबाक लेल ठानि लेलहुँ। एहि लेल समुचित योजना, समूह निर्माण, कार्य विभाजन, कथाक चुनाव, पात्रक चयन, सब किछु मनमानी ढंग सँ बेसी होइछ। जाहि पैटर्न (पद्धति) सँ काज सफल होयत ताहि लेल धैर्यपूर्वक काज नहि करबाक बदतर अवस्था आ एहि कारण दर्शक माझ मैथिली फिल्म प्रति निराशाक भाव स्पष्ट छैक। बेसीतर निर्माण मे ‘खाली जेबी, भरल मोन’ केर स्थिति देखल जाइछ। अर्थहीन, संसाधनहीन, तकनीकहीन, विज्ञताहीन, अनुभवहीन, कलाविहीन, अभिनयविहीन – ई सब बेसी उद्यत् बनि सबटा काज करैत रहैत अछि मैथिली फिल्म निर्माण मे। फिल्म तेँ पिछड़ल के पिछड़ले छैक। एहेन नकारात्मकता सँ ऊबार लेल मैथिली फिल्मक प्रदर्शन आ समीक्षा-विश्लेषणक जरूरत छैक। निर्माणकर्त्ता लोकनिक संगठन आ प्रत्येक वर्ष राज्य प्रायोजित फिल्म प्रदर्शनी आ पुरस्कार वितरण आदिक आयोजन करबाक आवश्यकता छैक। लोकमानस मे एकरा एकटा आवश्यक सरोकार केर रूप मे प्रचारित-प्रसारित करबाक जरूरत छैक।
एहनो बात नहि छैक जे उत्कृष्ट काज हेबे नहि कयल। एतय सेहो हम उपरोक्त उद्धृत् ‘मैथिली सिनेमाक इतिहास’ लेखक किसलय कृष्ण केर “मैथिली मे बनल लघुफिल्म आ टेलीफिल्म’ केर दृष्टान्तक आलोक मे रहैत हुनकर लेखन सँ सहमति जतबैत यैह कहय चाहब जे लघुफिल्म के व्याकरण (जे शायद मैथिली मे अलिखित अछि) पर चलिकय गोटेक-आधेक मैथिली लघुफिल्म मात्र बनि सकल अछि। हम बहुत रास त नहि देखने छी, तथापि – कवि कल्पना, कमला, अफवाह, रक्ततिलक, कनिया काकी, नमोनारायण, आदि किछु उत्कृष्ट आ स्तरीय मैथिली लघुफिल्म देखलहुँ आ हमर विश्वास बढ़ल जे मैथिली फिल्म मे बाजार ग्रहण करबाक सबटा सामर्थ्य छैक, मुदा व्याकरणक सिद्धान्त अपनेबाक आ लागू करबाक प्रविधि पर पहिने काज हो आ तदनुसार एकटा पुख्ता पटल मार्फत लोकदृष्टि मे फिल्म के मानक पर समीक्षा, विश्लेषण आ प्रचार-प्रसार कयल जेबाक व्यवस्था हो।
विभिन्न लघुफिल्म, उपरोक्त वर्णित आ अवर्णित (नाम नहि लेल फिल्म) – जे सब हम देखलहुँ आ बुझबाक यत्न कयलहुँ, ताहि सब पर हमरा जे बुझय मे आयल से निम्नरूप मे राखय चाहबः
१. कथानक के दृष्टि सँ
*मौलिकता के घोर अभाव – मिथिलाक्षेत्रक ऐतिहासिकता, एकर अपन वैशिष्ट्य, लोकपरम्परा, लोकाचार आ लोकसंस्कृति आदि पर आधारित कथानक कम आ हिन्दी-भोजपुरी फिल्म जेकाँ प्रेमकथा, परिवार सँ द्रोह-विद्रोह, किछु कुप्रथा पर चोट करयवला कथा सब पर आधारित बेसी रास फिल्म बनबाक यथास्थिति अछि।
*बनावटी आ नकल के प्रचूरता – दशकों-दशकों सँ हिन्दी क्षेत्र के रूप मे पहिचान थोपबाक राज्यक मनसाय आ तहिना हिन्दी चलचित्र केर प्रचूरताक कारण अधिकतर मैथिली फिल्म मे १०-२०% सामग्री मिथिलाक रहैछ, लेकिन ८०-२०% एहि मे नकल आ बनावटीपन देखाइछ।
*संवाद आ साहित्यिक दृष्टि ठीकठाक परञ्च मानवीय संवेदना मे स्थानीयताक दृष्टि सँ आकर्षणक अभाव – स्थानीयता प्रति गौरवबोध कम आ दूरक ढ़ोल सोहाओन वला मानसिकताक चलते संवाद एवं साहित्यिक दृष्टिकोण ठीकठाक रहितो जाहि तरहें मैथिल दर्शकक संवेदना केँ स्पर्श करैत प्रेरणाक गहिंरगर छाप पड़बाक चाही, तेकर कमी बुझाइत अछि।
एकटा उदाहरण दियए चाहब – “कनियाँ लेल झगड़ा” – एम एम प्रोडक्शन के प्रस्तुतिः https://www.youtube.com/watch?v=qSqZieOUP30 – एहि फिल्म केर सन्दर्भ यैह कारण देल जे यूट्यूब चैनल केर सब्सक्राइबर्स संख्या उल्लेख्य रहितो एहि तरहक फिल्म दर्शकक माझ बेसी बेर अभरबाक कारण दर्शक के नजरि मे मैथिली लघुफिल्म प्रति आकर्षण बढ़बाक बदला नैराश्यता मात्र बढ़ैत छैक। एहेन बेसी चैनल अछि जे मात्र सब्सक्राइबर्स बढ़ेबाक लेल नग्नता, फूहड़ता, अश्लीलता आ उचकपनी करयवला दर्शक मात्र सँ अपन काज सुतारबाक रवैया पर आधारित-संचालित अछि। गम्भीर आ उत्कृष्ट काज करनिहारक काज एहि गन्दगी आ स्तरहीन काज मे दबा गेल करैछ।
२. पात्र केर चयन
*कथा अनुसार पात्रक चयन मे समस्या – एनिहाउ कामचलाउ! पेशागत ढ़ंग सँ कथाक पात्र संग मेल खाइत कलाकारक चयन नहि कयल जाइछ आ उपलब्ध मानव संसाधन सँ येन-केन-प्रकारेण काज चला लेबाक प्रवृत्ति सँ मैथिली फिल्म समस्याग्रस्त बुझाइत अछि। हालांकि नाटक (रंगकर्म) खेलेबाक आ कला प्रति रुचि रखनिहारक मिथिला मे कमी नहि, लेकिन फिल्म निर्माणकर्त्ता एहि महत्वपूर्ण कार्य मे कनिकबो व्यावसायिकता (professionalism) नहि निमाहैत छथि। ठीक सँ देखल जाय त मैथिली फिल्म निर्माण लेल यैह कारण कोनो स्थान विशेष एखन तक प्रसिद्धि नहि पाबि सकल अछि। किछु लोक मुम्बई, किछु कोलकाता, किछु पटना, किछु मधुबनी, किछु दरभंगा… छिटफुट सब ठाम फुटकर मे काज होइत रहैत अछि। ओना दरभंगा मे फिल्म फेस्टिवल केर किछु आयोजन सँ कलाकार सब मे एकटा सकारात्मक सन्देश जाइतो, फिल्म केवल ‘रिक्त समय मे कयल जायवला कार्य’ (पार्ट टाइम जौब) रहबाक कारण केंद्र रूप मे फिल्म निर्माण लेल विकसित शहर के रूप मे दरभंगा वा आन कोनो नगर केँ मान्यता नहि देल जा सकैत अछि। एम्हर नेपाल दिश सेहो एहिना जनकपुर मुख्य केंद्र रूप मे विकसित आ कलाकारक कोनो कमी नहि रहबाक अवस्था मे अछि, लेकिन आन-आन ठाम के निर्माता-निर्देशक सब जनकपुर केँ प्राथमिकता मे बिनु रखने अपनहि शहर-नगर व आसपास के अव्यावसायिक कलाकार सँ काज चलेबाक रवैया अपनबैत छथि। जेकर स्वाभाविक असरि मैथिली फिल्म केर दर्जा कमजोर कय देल करैछ।
*कथा मे कल्पित पात्रक उमेर आ शारीरिक बनावट मे कोनो मेल नहि – फिल्म मे कथा पात्रक उमेर, शारीरिक बनावट आ पात्रताक अन्य विभिन्न मापदंड जेना हिन्दी सिनेमा सब मे देखल जाइछ, ओतबो बात मैथिली सिनेमा मे नहि निमहैत देखाइत अछि। मेकप पर उमेर बढ़ेनाय आ पात्र मे स्वाभाविक मेलताक बदला नकली-बनावटीपन साफ देखा गेनाय, कतहु न कतहु दर्शकक नजरि मे मैथिली सिनेमा केँ आर कमजोर कय दैछ।
*अभिनय क्षमता आ कलाकारिताक कोनो खास ज्ञान बिना पात्रक चयन – अभिनय के आधारभूत ज्ञान तक नहि अछि, कैमरा केँ कोना सामना करब तेकर प्रशिक्षण सेहो नहि अछि, लेकिन फिल्म निर्देशक आ निर्माताक खास लोक छी तेँ फिल्म कलाकार केर रूप मे चयन कय लेल गेलहुँ। निर्माता सोचैत छथि जे व्यावसायिक कलाकार पर कि टका लगाउ, बरु अपनहि परिचित कर-कुटुम्बजन सँ ई काज करबा लेब, कोहुना न कोहुना काज चला लेब – एहि सब तरहक समस्या बेसी फिल्म मे देखल। लेकिन एहनो नहि छैक जे दक्ष आ योग्य कलाकारक कमी अछि, बस समन्वय केर कमी आ मंगनी मे काज चलेबाक दुर्गुण सभक कारण ई दुरावस्था अछि से ठोकिकय कहि सकैत छी।
*महिला कलाकारक कमी – जमाना कतय सँ कतय पहुँचि गेल। बेटी सब चान पर पहुँचि गेल। मिथिलाक बेटी भावना कंठ समान भारत जेहेन देशक वायुसेना मे फाइटर प्लेन चलेनिहाइर विश्वचर्चित महिला बनि गेलीह। हालहि चन्द्रयान २ केर सफलता मे सेहो बेटीवर्गक चर्चा जोर पर अछि। फिल्म आ मोडलिंग सँ करियर बनेनिहाइर लाखों बेटी बड़का-बड़का पत्रिकाक आवरणपृष्ठक महारानी बनि गेलीह, परन्तु मिथिलाक बेटीवर्ग कलाक्षेत्र आ खासकय फिल्म लाइन मे एखनहुँ बहुत पाछू छथि। कोलकाता, पटना, दिल्ली, मुम्बई मे परिदृश्य बदलल अछि। बहुते रास मिथिलानी सब रंगकर्म आ फिल्मकर्म मे सहभागी होइत छथि। तहिना नेपालक जनकपुर मे थोड़-बहुत परिवर्तन अभैर रहल अछि, तथापि मिथिलानी सँ बेसी संख्या नेपालक पहाड़ी मूल के महिला कलाकारक प्रचुरता देखाइत अछि। फिल्मकर्म केँ महिला सभक लेल असुरक्षित मानल जाइछ आइ धरि। एहि कारण सेहो फिल्मक स्तर पर बहुत पैघ असरि पड़ैत देखि रहल छी।
३. फिल्मांकन आ दृश्यांकन पर आधारित
*सामान्य तकनीक केर प्रयोग सँ बेसी निर्माण कार्य हेबाक अवस्था – हौलीवुड आ बौलीवुड जेहेन अल्ट्रा मोडर्न तकनीक के जमाना मे साधारण कैमरा आ तकनीक के विशेष प्रयोग सँ निर्मित मैथिली फिल्म फिल्मांकन के दृष्टि सँ कमजोर हेबाक कारण दर्शक मे नैराश्यताक अवस्था देखाइछ।
*दृश्यांकन – दृश्य केर भूमिका दर्शक मन पर बहुत बेसी भेल करैत छैक, परञ्च बेसी लघुफिल्म देखला सँ यैह अनुभव भेल जे बस कामचलाऊ (जेहने-तेहने) दृश्य पर पात्र सब सँ डायलाग बजबाकय ग्रामीण रंगमंचीय शैली मे फिल्म सूट कयल जाइछ, एहि कारण सेहो दर्शक मे मैथिली लघुफिल्म केर बाजार निर्माण मे अवरोधक जेकाँ बुझाइत अछि।
*विज्ञ आ अनुभवी निर्देशन-निर्माणक दृष्टि सँ – योग्य, विज्ञ आ अनुभवी निर्देशकक कमी सब सँ पैघ समस्या अछि। एना लगैछ जेना योग्यताक मापदंड कोनो महत्वे नहि रखैत हो, सुलभता सँ जे भेट गेल तेकरा संग आगू बढ़ि जाउ। तालिम प्राप्त निर्देशक लोकनिक पारिश्रमिक केर मांग बेसी छैक या फेर आर कोनो कारण – बस नामहि टा के भूख जे फल्लाँ केँ निर्देशक मानि लेल जाय, भले फिल्म निर्देशन हुनर ओकरा मे होइ वा नहि… ई आन्तरिक कारण तक दर्शकक दृष्टि त नहि जा सकैछ, लेकिन फिल्मक स्तरीयता सँ एहि बातक भान भ’ जाइत छैक। एहि लेख मे आगू चर्चा करब जे विज्ञ आ अनुभवी निर्देशकक सेहो कमी नहि, आ हुनका सब द्वारा एक सँ एक उत्कृष्ट काजक उदाहरण सेहो राखब। लेकिन बहुल्यता मे एहेन खराब अनुभव भेल जे निर्देशक अक्सर नामहि टा लेल भेल करैछ, चूँकि हम फिल्म मे काजो कयलहुँ आ ई देखलहुँ जे एकटा निर्देशक द्वारा कैमरामैन आ कलाकार केँ कोना निर्देशन देल जाइछ, फेर कोन-कोन एंगल सँ दृश्यांकन पूर्ण होइछ, एडिटिंग-मिक्सिंग के समय सेहो निर्देशक केँ कतेक सजग रहिकय दर्शकक भाव केँ बुझैत फिल्म निर्माण पूरा कयल जाइछ, ताहि सब हिसाबे मैथिली फिल्म मे अधूरा तैयारी आ सम्भवतः कम पूँजी मे बेसी काज निकालयवला जोखिमपूर्ण शैली सँ स्थिति बदतर अछि।
*बहुल्य फिल्म अलाय-बकच आ जहिना-तहिना लौल पूरा करबाक कारण दर्शक माझ निराशाजनक छवि बनेने अछि, परञ्च विज्ञ-विशेषज्ञ द्वारा निर्मित गोटेक मैथिली फिल्म दर्शक के मोन मे आशाक किरण झलफलिये सही लेकिन जगेने अछि। उदाहरणः कनिया काकी – कुमार पवन द्वारा लिखल आ कुणाल द्वारा निर्देशित – विज्ञता आ अनुभव केर सुन्दर प्रयोग करयवला हृदयस्पर्शी लघुफिल्म लागल। कुल अबधि १ घन्टा के बनायल गेल ई फिल्म हमर सब नैराश्यता केँ दूर करय मे सक्षम भेल। तहिना विकास झा द्वारा निर्देशित ‘कवि कल्पना’ मे उपरोक्त समस्त कमजोर विन्दु केँ दूर करैत काज कयल गेल अछि एना बुझायल। आर एहि चलते ‘मैथिली फिल्म’ मे भविष्य छैक से अकाट्य सत्य अछि। बस, जहिना-तहिना काज करयवला एटीट्यूड (रवैया) सँ मुक्ति जरूरी अछि।
मैथिली फिल्म मे क्रान्तिकारी परिवर्तन लेल प्रवीण दृष्टि
हम त कहब जे मैथिली फिल्म इन्डस्ट्री केँ पटरी पर अनबाक लेल एकटा मजबूत संस्था आवश्यक अछि जे हरेक फिल्म केर स्टैन्डर्ड केँ जाँचय-परखय, तखन ओकरा स्वीकृति प्रदान करैत सब दर्शक लेल समुचित सन्देश आ समुचित प्रचार-प्रसार करय। गला कट प्रतिस्पर्धाक युग आ हिन्दी एवं भोजपुरीक बाजार बनि चुकल मैथिल दर्शकक मांग अनुसार फिल्म निर्माण होयत त निश्चित उपरोक्त वर्णित नकारात्मक अवस्था सँ मुक्ति भेटत। एहि मे राज्य के भूमिका बेसी बनैत छैक जे स्थानीयता केँ बढावा देबाक लेल विशेष आर्थिक पैकेज दय कय मैथिली भाषा मे फिल्म निर्माण आ ओकर प्रदर्शनक सारा इन्तजाम करय। फिल्म उद्योग केर रूप मे प्रचलित हेबाक बात विदित होइतो एखन धरि बिहार सरकार द्वारा बिहारक स्थानीय भाषा सब मे फिल्म निर्माण लेल कोनो तरहक कर रियायत (टैक्स सब्सिडीज), प्रोत्साहन राशि (इन्सेन्टिव्स), आदिक घोषणा नहि करब दयनीयता केँ निरन्तरता देने अछि। डीडी बिहार जेहेन चैनल हो अथवा स्थानीय निजी चैनल्स सब कियैक नहि हो, सरकार द्वारा स्थानीय भाषाक कृति सब अधिक सँ अधिक प्रदर्शन कयल जाय एहि तरहक नीति बनेबाक चाही। एतय त उल्टा ई स्थिति देखल जाइछ जे ८०-९०% कार्यक्रम एकमात्र हिन्दी के आ बाकी मे ८०-९०% भोजपुरी के कार्यक्रम प्रदर्शित कयल जाइछ। मैथिली प्रति एहेन उपेक्षाक भावना रहत त ई कतेक आगू बढ़ि सकत? किछु टन्ना-दुक्खा लोक मैथिली मे निर्माण कार्य लेल आगू अबितो छथि त हुनकर लगानी के पैसा तक निकालय मे जान पर बनल रहैत छन्हि। एहेन दुरावस्था मे कहू सुधारक गुंजाइश कतेक होयत?
लघुफिल्म के सफलता सँ मैथिली फिल्म केर समग्र सफलता तय होयत
ई फिल्म निर्माण प्रति लोकक जागरुकता कहू या फेर युगक प्रभाव – हर हाथ मे मोबाइल आ कैमरा रहबाक कारण आजुक समय मे छोट-छोट फिल्म बनेबाक धुन लगभग प्रत्येक व्यक्ति पर हावी अछि से कहय मे अतिश्योक्ति नहि होयत। सोशल मीडिया के अनेकों लोकप्रिय मंच यथा फेसबुक, एक्स (ट्विटर), व्हाट्सअप, यूट्यूब आदिक भरपूर प्रयोग भ’ रहल अछि। मैथिली मे सेहो हजारों कन्टेन्ट्स (सन्देशमूलक वीडियो, रील्स, आदि) बनि रहल अछि। दर्शकक दृष्टि मे अधिकतर लोकप्रियता हास्य-प्रहसन केर सामग्रीक अछि। एक सँ बढ़िकय एक स्टार्स एहि तरहक सामग्रीक निर्माण आ पब्लिक मे वायरल भेलाक कारण बनि रहल छथि। यूट्यूब चैनल्स पर करोड़ों बेर व्यूज पेनाय आ तदनुसार रेवन्यू (आमद) प्राप्त करब आइ मैथिली लघुफिल्म निर्माण मे लोक केँ खूब आकर्षित कय रहल अछि। नेपाल दिश एहि तरहक निर्माण मे कोनो शहर नहि छुटल देखैत छी। विराटनगर, इनरुवा, भारदह, राजविराज, रुपनी, लहान, सिरहा, जनकपुर, जलेश्वर, सपही, महोत्तरी, रौतहट, बलरा, मलंगवा सँ बीरगंज-काठमांडू धरि फिल्म निर्माण आ प्रदर्शनक होड़ मचल अछि। तखन धीर-गम्भीर काज कतेक होइछ, केकरा कोन श्रेणी मे राखल जाय, व्यूज के दृष्टि सँ अथवा आमदक दृष्टि सँ; एहि पर निर्णय करय बेर हम दुविधा मे फँसि जाइत छी। बस, निर्माण आ प्रदर्शनक मात्रा आवश्यकता सँ बेसी देखि हम घबराइत सेहो छी जे आखिर एहि सँ दर्शकक मन-मस्तिष्क मे मैथिली फिल्म प्रति भावनात्मक सम्बन्ध कतय तक बनतैक आ एकर दुष्परिणाम नीक-उत्कृष्ट निर्मित फिल्म सँ सेहो लोक दूर हेतैक, एहेन डर होइत अछि। हम मोन पाड़य चाहब राजेश साह, शिवम् शर्मा, कुन्दन मंडल ‘पप्पू’, सूरज झा ‘मैथिल’, गजेन्द्र गजूर, विद्यानन्द बेदर्दी, सरोज कामत, नवीन कर्ण, विजय कामत, श्याम कामत, वीरेन्द्र झा, प्रेम नारायण झा, वीरेन्द्र साह, दिनेश यादव, तेजू मैथिल, प्रकाश अनुराग, नवीन चौधरी, राम भजन कामत, ज्योति कामत, आ अनेकों सहयात्री फिल्मकर्मी सब केँ, जे मैथिली फिल्म पर निरन्तर काज कय रहल छथि। विभिन्न चैनल्स पर हिनका सभक कृति (निर्मित सामग्री) सब प्रदर्शित भ’ रहल अछि। रंगकर्म आ फिल्मकर्म केर ई यात्रा निरन्तर जारी रहय।
उपरोक्त उल्लेखित शोध आधारित इतिहासक दावी सँ सहमति दैत धीर-गम्भीर लघुफिल्म के विशद् वर्णन अन्तर्गत २००५ ई. के मनोज श्रीपतिक निर्देशित ‘रक्ततिलक’ सँ रमेश रंजन झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, पूर्णेन्दु झा, अमितेश साह, अशोक दत्त, सूर्य नारायण साह, बी. एन. पटेल, सन्तोष सरकार, संजय यादव, झा विकास, चन्दन मिश्रा, किसलय कृष्ण, राम नारायण ठाकुर, शम्भुनाथ मिश्र, दीपेश मिश्र आदिक नाम उत्कृष्ट निर्माण-निर्देशन लेल कयल जाइत अछि। काञ्चीनाथ झा ‘किरण’, हरिमोहन झा, राजमोहन झा, कुमार पवन, शैलेन्द्र आनन्द, आदि महान कथाकार-साहित्यकार लोकनिक साहित्यिक कृति पर आधारित उत्कृष्ट लघुफिल्म सब कंचन, पंचैती, अफबाह, कमला, आशीर्वाद, कनियाँ, टावरवाली भौजी, कनियाँ पुतरा, संकल्प, इजोत, भूख, केकर दोष, मकड़जाल, हम बियाह नहि करब, कवि कल्पना, नमोनारायण, काँच बासन, मधुरमणि, सूप आ चालनि, कनिया काकी, गोरकी, इतिहासः द प्राइड अफ मिथिला, आपन अधिकार – आपन दायित्व, कोरोना, कहिया हेतै भोर, मण्डन, सस्पेक्ट, दिवाली, झिझिया नाइट आदिक चर्चा होइत अछि। लेकिन अधिकांश दर्शक लेल एहि तरहक स्तरीय फिल्म केँ केना देखल जाय, ताहि बातक प्रचार-प्रसारक घोर अभावक कारण वातावरण मे जे जोश आ उत्साह एबाक चाही तेकर कमी बुझि पड़ैत अछि। जेना-जेना लोक जागरुक भ’ रहल अछि, अपन भाषाक मान-सम्मान आ संवर्धन-प्रवर्धनक हित केँ आत्मसात कय रहल अछि, नीक दिन मैथिली सिनेमाक सेहो आबि रहल अछि। ओ दिन दूर नहि जे नव सूर्योदय देखय लेल भेटत। मैथिली जिन्दाबाद!!
हरिः हरः!!