संवाद परिकल्पना
# शिक्षाक संग संस्कार आवश्यक #
सद्गुण : शिक्षा आ संस्कार दुनूक मिश्रण सँ बनैत छैक !
सुंदर मोन आ व्यवहार सिखाब’ लेल जे आंतरिक गुण के बढ़ावा देल जाइत अछि से संस्कार कहल गेल अछि । लेकिन जे बाहरी प्रदर्शन आ भौतिक सुखक साधन प्राप्त करब हेतु जे शिक्षा देल जाइत अछि ओ सभ्यता मे गानल जाइत अछि । संस्कार अपन चारुकातक रहन-सहन आ अपन परिवार सँ प्राप्त करैत अपन जीवन केँ सुखमय, सरस आ सफल बनाकय सहज जिनगी जिबैत अछि । तें जेकर नीक संस्कार व्यवहार हेतइ आ संगे नीक कर्म से नीक नौकरी पाओत, दुनू के समावेश सँ सदैव समाज मे सज्जन व यशस्वी कहाओत ।
अतः सब माता – पिता केँ अपन बच्चा के नीक सँ अपन संस्कृति, भाषा आ सभ्यताक महत्व सिखबैत पालन-पोषण करय के चाही । जन्महि सँ प्रयास कयला सँ अवश्य सफलताक प्रतिशत बेसी हेबाक संभावना रहतइ । सब माता पिता अवश्य यैह करैत छथि आ करय चाहैत छथि । मुदा सौ प्रतिशत लोक सफल होयत आ बच्चा संस्कारी हेब्बे करत त ई संभव नहि छैक। जेकर बड्ड रास कारण अछि । समाज के आइ काल्हिक परिवेश मे भटकाव लेल सेहो बड्ड रास रस्ता छै ।
तथापि आशा बान्हिकय सकारात्मक प्रयास करैत सब अपन कर्तव्यक पालन करी । कोनो बात के सही दृष्टिकोण सँ बेर-बेर स्नेहपूर्वक दबाइ जेकाँ कनी – कनी के बच्चा के पियैल करी । सत्त आ झूठक बीच जे मिहिन अंतर होइत छैक से बच्चा के स्पष्ट बतैल करबाक चाही । अपनो गलती स्वीकार करैत बच्चा मे सेहो ओ गुण पनपै से प्रयास करबाक चाही । बच्चा मे सिखैल जयबाक चाही जे कखनो अवसर पर झुकनाय सेहो ऐगो बड्ड नीक गुण छियै । पैघक आदर सम्मान छोट के स्नेह आ विशेष ध्यान राखब सेहो सिखाबू ।
अनावश्यक जिद्द आ दिखावा के तामझाम सँ बचनाय सेहो सिखेबाक पूर्ण प्रयास करय के चाही । पति पत्नी पूरक होइ छै एक दोसराक से मानिकय चलनिहार दंपति अपन बच्चो केँ वैह गुण प्रदान कय पओताह । आ जौं पति-पत्नियों मे आपसी समझ के कमी आ दोषारोपणक प्रवृति अपनौने रहैत अछि, पत्नी के बात-बेबात अवहेलना करैत अछि, कोनो पैघक महत्व केँ नहि बुझैत अछि, तखन घरक विवाद सँ बच्चा अवश्य अवगुणके धारण करैत पैघ होइत अछि ।
तें धैर्यपूर्वक शिक्षा आ संस्कार संग उचित माहौल मे अपन बच्चा के पालन करी । संस्कारी लोकक संगति आ सहयोग लेल करी । पूजा पाठ सँ अनुशासन अबैत छैक आ झूठ सँ दूरी बढ़य छै । धार्मिक पोथी पढ़ला सँ सोचक घेरा (दायरा ) बढ़ैत छैक । अपन गलत बात वा सोच कें हठधर्मिता पर अड़ल रहबाक आदति छूटैत छैक । धरि ई सब काज स्वयं पिता करथिन तखनहि बेटा सिखतनि आ माय करथिन त बेटी सीखथिन । आ अहि लेल बहुत समय धरि पूजा आ व्रत करब आवश्यक नहि छैक, लेकिन इहो नित्यक्रिया मे शामिल होइ से सिखेनाय आवश्यक छैक ।
ज्ञान आंतरिक विकास यानी दुर्गुण के ऊपर नियंत्रण लेल होइ छै से आ उपार्जन लेल विज्ञान वा प्रौद्योगिकी या साहित्यक विधा दुनू सिखला उपरांत सही शिक्षा भेटल से कहल जा सकैत अछि । एक पाँति मे कही त संस्कृति आ सभ्यता के संयोजन भेल असल शिक्षा । तें दुनू शब्द शिक्षा आ संस्कार के एक दोसर के पूरक शब्द छी । तें सभक सुंदर व्यक्तित्व लेल आवश्यक अछि – शिक्षा आ संस्कार ।
—मंजूषा झा —