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प्रवीण दृष्टिः ब्राह्मण आ ब्रह्मणत्व

ब्राह्मण आ ब्रह्मणत्व
 
(निजी अनुभव पर आधारित किछु विचार)
 
ब्राह्मणक परिवार मे जन्म भेलाक बाद हमरा ई बुझय मे आयल जे हमर कर्म-कर्तव्य ब्राह्मण संस्कार मुताबिक होयब आवश्यक अछि। हालांकि सच कहय मे कोनो हर्ज नहि जे ई सब ज्ञान हमरा सही समय पर एकदम नहि भ’ सकल छल।
 
बच्चा सँ सब केँ गोर लागिकय प्रणाम करय सिखने रही आ ई बुझने रही जे सब श्रेष्ठजन केँ गोर लागिकय आशीर्वाद लेबाक चाही। हमर पिता चूँकि सहमिलू लोक आ बेसीकाल गैर-ब्राह्मण समुदाय बीच अपन उठ-बैठ करैत रहथि, सब कियो हुनका डाक्टर साहेब कहिकय बड आदर देल करनि आ संगहि ओ सोशलिस्ट पार्टी के कैडर रहबाक कारण एक तरहें यैह तालिमो लेने रहथि जे जातीय बन्धन मे मनुष्य जीवन उचित नहि अछि, बल्कि मानवीयता आ सामाजिकता के ध्यान राखिकय सभक संग समान व्यवहार करबाक चाही। तेँ, पिताक छत्रच्छाया मे हम जातीय पहिचान के बात शुरू मे बिल्कुल नहि बुझलियैक आ एक तरफ सँ जतेक पैघ पिताक संग ठाढ़ देखाइथ, सब केँ गोर लागिकय प्रणाम कयल करी। किछु अभिभावक एहेन रहथि जे हमरा एहि लेल परोक्ष मे बजाकय बुझबथि आ कहल करथि जे अहाँ एक ब्राह्मण कुल मे जन्म भेल ब्राह्मणक संस्कार सँ संस्कारित ‘किशोर’, एना सभक पैर नहि छुबाक चाही, एहि सँ कनेक परहेज कयल करू। बस, एतय सँ आरम्भ भ’ गेल छल ‘जातीय पहिचान’ प्रति जिज्ञासा आ तदोपरान्त मात्र हम सोचय लगलहुँ जे आखिर ई ब्राह्मण होइत कि छय।
 
सच कहि रहल छी, पहिने आंइठ-कुठि तक के विचार नहि करैत रही हम। सभक संग बैसिकय भोजन कयनाय, एक्के प्लेट मे मिलिजुलि कय खेनाय, आदि हमर आदति भ’ गेल छल। न हम जाति बुझी आ न धर्मक व्याख्या बुझी, सब एक रंग होइत छैक आ आपसी मित्रता केँ प्रगाढ़ करबाक लेल लोक केँ एक्के प्लेट मे खेबाक चाही से बुझियैक।
 
हमर पिताक एक मित्र रहथि जे हमरा बड मानथि। नाम रहनि ‘हरिहर काका’। हुनका हम आजीवन अपन पिता समान मानैत रहलहुँ। कनिकबो अन्तर नहि बुझायल हमरा अपन पिता आ हरिहर काका मे। ओ दुनू गोटे अभिन्न मित्र रहथि। हरिहर काकाक जातीय पहिचान ‘कियोट’ छलन्हि, परञ्च हुनकर संस्कार बिल्कुल सन्त जेकाँ छलन्हि। एक बेर विराटनगर आयल छलाह, हमर एक नियोजक जे मुस्लिम समुदाय के रहथि, हुनका ओतय हमरा बड आदर-सत्कार भेटल करय आ ताहि क्रम मे काका संग घुमिते काज पर जेबाक घड़ी काफी रास मिठाई आ चाह आदिक अफर भेटल। काका बड प्रेम सँ खेलनि, बाद मे हुनका किछु दुविधा भेलनि त हमरा बाद मे पुछलाह आ कहलियनि जे अहाँक दुविधा वला बात सही अछि, त ओ हंसिकय एतबा कहलाह जे हमरा सब हर जगह के पानि नहि पिबैत छी। आगू सँ एहि बातक ध्यान राखब अहाँ। हम आश्चर्य मे पड़ि गेलहुँ आ सोचय लगलहुँ जे हरिहर काका पर्यन्त अपन पवित्रता आ निष्ठा कोनो और्थोडौक्स ब्राह्मण सँ कम नहि रखैत छथि। ई प्रेरणा देलक लेकिन हम बड बेसी प्रभावित नहि भेलहुँ।
 
पिता केँ दुइ जेठ पितियौत भाइ केर लाट मे ‘काका’ कहल करियनि आ जेठ पित्ती केँ ‘बाबू’। चारि भाइ मे तेसर नम्बर के भाइ, बड़का ‘लालभाइ’, मैझला ‘भाइजी’, फेर ‘हम’ आ सब सँ छोट हमर सहोदर ‘सन्तोष’। परिवारक संस्कार बड़ा उच्चकोटिक मानल जाइत अछि। आइ धरि लोकमानस मे हमरा लोकनिक परिवार प्रति श्रद्धाक शब्द स्वतः स्फुरित भाव मे देखय लेल भेटि गेल करैत अछि। अचानक पिताक हाथ माथ पर सँ उठि गेल, मात्र २३ वर्षक अवस्था मे। तदोपरान्त पिताक श्राद्धकर्म करैत काल ‘महापात्र पंडितजी’ द्वारा मंत्र पढ़ेबाक समय ‘पाचक’ हमर जेठ पितियौत ‘प्रेम भैया’ सँ किछु फुसफुसेला, हम भैया सँ पुछलियनि जे कि पुछि रहला अछि… त ओ अन्ठेबाक कोशिश करय लगलाह, लेकिन हमर बालहठ केँ बुझैत आ हमरा संग सब दिन सब कियो बड़ा खुलिकय बात कयल करथि से बुझैत हमरा कहैत छथि प्रेम भैया, “एकटा मंत्र छैक जे कर्त्ता द्वारा तखनहि उच्चारण कयल जेतैक जखन ओ अपन ब्राह्मण संस्कार केँ बचाकय रखने अछि, कोनो आन जाति मे विवाह आदि नहि कएने अछि।” हम चौंकलहुँ आ कहलियनि जे नीक त बेसी अनजातिये के लोक सब लागल, कारण नेपाल मे रहैत-रहैत हमरा बेसी अनजातिये लोक सब संग बात-विचार चलैत अछि, मुदा सौभाग्यवश हम ‘कुमार’ छी एखन तक। ओ कहला जे तखन ठीक छय, मंत्र पढह तूँ। यैह कहिकय महापात्र हमरा मंत्र पढ़ौलनि। एहि सँ बेसी हम किछु नहि बुझलियैक। ई दोसर पैघ घटना छल हमर जीवन मे जे जातीय पहिचानक विचार प्रवेश करौलक।
 
आब जखन विवाह भेल आ सासुर गेलहुँ त ‘बाबूजी’ (ससुर महाराज) कहलनि, “लोक बड भाग्यशाली होइछ तखनहि काशी अयबाक मौका भेटैत छैक जीवन मे। हिनकर त विवाहे भेलनि अछि एहेन परिवार मे जे काशी मे निवास करैत अछि। चलौथ आइ हमरा संग गंगाजी, मणिकर्णिका घाट पर अपन दिवंगत पिता सहित समस्त पितरलोक प्रति नतमस्तक भाव सँ जल अर्पण करैत तर्पण करिहथि।” बाबूजी प्रति अगाध श्रद्धाक भाव रखैत हुनक एक-एक बात आइ तक ओहिना मानैत छी जेना गुरुवचन मानबाक चाही। जहाँ गेलहुँ आ स्नान कय केँ किनार पर आबि सन्ध्या-तर्पण लेल ठाढ़ भेलहुँ, बाबूजी कहलनि जे ‘शिखा बन्धन’ ३ बेर गायत्री मंत्र पढ़ैत करथु। आब शिखा त दरभंगिया फैशन मे उर्दू बाजार के सैलून वला पहिनहि काटि देने छल… हम अपन शिखा लग हाथ राखि गायत्री मंत्र पढ़बाक उपक्रम करय लगलहुँ कि बाबूजीक नजरि पहुँचि गेलनि हमर अटपटायल स्थिति-अवस्था पर। फेर कि छल! ओ १० टा बात कहि देलनि, ई बुझबैत जे ‘ब्राह्मणक संस्कार मे लोक कतहु शिखा कटबय!’, सम्हरिकय मूरी गोंति सुनलहुँ हुनकर सब बात आ यथारूप मे सन्ध्या-तर्पण सम्पन्न कय घर अयलहुँ। ई तेसर घटना भेल जे हमरा ब्राह्मणक संस्कार प्रति साकांक्ष बनेलक।
 
एक बेर लगमा महाविद्यालय के ‘सरकार’ (ओहि ठामक मुख्य महंथ) हमर गाम के सीताराम भगवानक मन्दिर पर बहुते रास साधु-संन्यासी सभक संग ऊंट के सवारी सहित आयल रहथि। मन्दिर पर लोक सब केँ बुझबैत ओ बजलाह जे ‘शिखा’ कोनो हाल मे नहि भंग करबाक चाही, नहि त एक-एक डेग पर एक-एक गो वध केर पाप लिखैत अछि। हम चौंकिकय बाबूजीक बात मोन पाड़लहुँ आ एहि तरहें पुनः शिखा भंग किन्नहुं कियो नहि करय, केश छँटाबय काल नौआ जँ टिक लग कैंची चलबय जायत ताहि सँ पहिने कहि दियैक जे तोरा सभक आदति मुताबिक हमर टीक नहि भंग करिहह। से आइ धरि कायम अछि। हमर टीक कम सँ कम सैकड़ों अन्य केँ एतेक प्रेरणा जरूर देलक आ दैत अछि जे आरो लोक सब टीक रखैत देखि रहल छी।
 
सच इहो छैक जे बहुतो आदति पहिनहि सँ बिगड़ि गेलाक कारण आइ तक पूर्ण ब्राह्मण कर्मकाण्डी जेकाँ भले नहि निमहि रहल हुए, परन्तु बाबाधाम के बाट मे चलैत-चलैत पवित्रता आ निष्ठा केना बरकरार रखबाक चाही तेकर नीक जानकारी भेटल। एहि सब मे दृढ़ता रखलाक बादे पवित्रता आ निष्ठा निमहि पबैत छैक। आंइठ-कुठि आ जहाँ-तहाँ के जल नहि पिबाक चाही से सब अन्तर्ज्ञान रहितो यदाकदा समझौतावादी बनि सहज जीवन मे विश्वास रखैत छी। केकरो सँ छुआ जेबाक खतरा हमरा नहि अछि, आ जाहि चीज सँ नहि छुएबाक चाही तेकर ध्यान खूब रखैत छी। वाणीक पवित्रता, सोच के पवित्रता आ मानसिक पवित्रता सर्वोपरि राखब हमर ब्राह्मण कर्म थिक से दृढ़ विश्वास रखैत छी। कय गोट आदति हमर ब्राह्मण कर्मक विरूद्ध अछि सेहो जनैत छी। लेकिन ईश्वर प्रति शरणागतिक भाव मे ई सब दोषभाव बिल्कुल ग्रहण नहि करबाक चाही से सिद्धान्त बेसी मजबूत बुझाइत अछि।
 
अन्त मे, भजन करू, भजन कराउ… स्वाध्याय करू आ स्वाध्याय सँ प्राप्त सुन्दर प्रसाद समस्त जनमानस लेल वगैर कोनो भेद-भाव केँ बँटैत रहू। बस, हम एतबा टा’क ब्राह्मण छी, हमर ब्रह्मणत्व मे नीक-बेजा जे किछु अछि से भगवान पर सौंपल अछि। धन्यवाद। लेख लिखबाक मनसाय एहि लेल भेल जे अपन संगतुरिया सब मे कय टा दुविधा एखनहुँ देखल आ हम अपन अनुभव सँ ओकरा सब केँ आ हमर पाठक लोकनि केँ सेहो बुझेबाक यत्न रूप मे ई लेख लिखल।
 
हरिः हरः!!

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