पढ़ाइ-लिखाइ करियौक
नीक-नीक किताब पढ़ल करू। जीवन मे किताबक सन्देश बहुत पैघ मार्गदर्शक सिद्ध होइत छैक। पढ़ाइ-लिखाइ के ई बड पैघ महत्व होइत छैक। अधजल गगरी छलकत जाय – ई कहावत अपन मिथिला मे बहुत बेसी प्रसिद्ध छैक। कियैक? कियैक त लोक अपन पढाइ पूरा कएने बिना दावी एतेक पैघ-पैघ करत मानू जेना ओ कतेक पैघ योगी हो, लेकिन जहाँ अपन कर्तव्य करबाक बेर आओत ओ व्यक्ति नदारद भेटत आ अपन कमजोरी नुकेबाक लेल ओ १७ गो डार्हि-पात पकड़त। अपन समाज मे चारूकात नजरि पसारिकय देखब त पढाइ-लिखाइ मे समर्पण भाव सँ लागल लोक बेसी सफल आ उत्कर्ष पर नजरि आओत। अपन कक्षा के मित्र सँ लैत वर्तमान समय अपना अगल-बगल के लोक केँ देखू – हरेक सफल व्यक्ति मे ‘पढाइ-लिखाइ’ के सद्गुण अवश्य भेटि जायत। आ, जे कनिये पढ़ि-लिखि लेलक आ फेर अपना केँ ‘ढ़ेर होशियार’ बुझबाक भान करय लागल, ओ देखब ‘नीम-हकीम-खतरे-जान’ वला परिणाम सब देखबैत रहत।
आभासी पटल पर सेहो छितरायल मैथिल केँ जोड़िकय ‘दहेज मुक्त मिथिला’ बना सकैत छी, ई साहित्य लिखा गेल एक दशक पूर्व। पढ़य-लिखय वला लोक एकर अर्थ बुझलक, एकर लाभ उठेलक। आ जे अधछिध पढ़लक ओ भ्रम मे बौआइत रहल। आइ धरि अहाँ देखब जे १०० मे ९५ गो बौएनाय पसिन करैत अछि, कियैक? कियैक त एक्के टा दुर्गुण अपन समाज पर बहुत बेसी हावी छैक। पढ़ब-लिखब कम, बुझब बेसी। आब, जखनहि अहाँ बड़का बुझनुक होयब आ अपन कर्तव्यबोध सँ पाछू पड़िकय खाली दोसर के कर्मबल-तपबल सँ अपन काज सुतारय के फेरा मे फँसब त एहिना दुर्घटनाक शिकार स्वयं होइत रहब। अहाँ दोसरक किछु नहि लेबय, अपन सबटा धर्म आ आत्मबल कमजोर करैत रहब। हम दावीक संग कहि सकैत छी, एहि सँ अहाँ अपन अभीष्ट के प्राप्ति त नहिये कय सकब, अपना आजू-बाजू के संगतिया सब केँ सेहो बर्बादे टा करबय।
स्वाध्याय आर पैघ बात थिकैक। इतिहास पढ़नाय सेहो ओतबे महत्वपूर्ण छैक। लेख-रचना आ चिन्तन-विचार संग-संग समाचारपत्र आ समसामयिक घटना-परिघटना सब पढ़नाय सेहो बहुत जरूरी छैक। अपन मन-मस्तिष्क केँ ई बुझबैत रहबाक छैक जे हम के, हमर की आ हमरा लेल की – दोष आ छिद्र दोसर मे ताकब एकटा अपकर्म थिकैक, समय के बर्बादी थिकैक… कारण दोसर कतय, हम-अहाँ कतय… न कियो ३ मे आ न १३ मे, तखनहुँ दोसर केँ नीचाँ देखेबाक सोच हमरा-अहाँ मे जँ आबि गेल त १०० बेर सोचू, अपन कमजोरी केँ दूर करू। कमजोरी दूर तखनहि होयत जखन पढ़ब-लिखब।
हरिः हरः!!