ओ ग्रेजुएट पुतोहु

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

ओ ग्रेजुएट पुतोहु
 
बहुत पैघ पदाधिकारी अपन एक उच्च पदाधिकारी पुत्र केर विवाह अत्यन्त उच्च खानदान मे कयलनि। ताहि दिन टका-पैसाक बड महत्व रहैक। हुनका ताहि समय १ लाख टका दहेज भेटलनि। सौंसे गाम गनगना गेल। दहेज जतेक भेटय ताहि हिसाबे गाम के लोक-समाज ई बुझय जे लड़का कतेक मूल्यवान् रहय। से भेलय, सौंसे गाम आ इलाका मे ई शोर भ’ गेलय। पिता पदाधिकारी, पुत्र पदाधिकारी – ई सब बात त’र पड़ि गेलय आ फल्लाँ ड्योढी के फल्लाँ बाबू बड़का जमीन्दार के बेटी संग लाख टका दहेज लयकय विवाह भेलनि से बात खूब हल्ला भ’ गेलय।
 
अफसोस, जखन ओ कनियाँ अयलीह द्विरागमन भ’ कय, भोरे बेड पर सँ चाह के डिमान्ड कयलीह आ खबासनी ई बात सासु सँ कहलखिन… सासु केँ ई दावी जे हम त फल्लाँ पदाधिकारी के ‘मेमसाब’ रहलहुँ आ हमरा सेवादार सरकारे तरफ सँ भेटल छल, लेकिन गाम मे चुल्हा-चौका छुबय के अधिकार घरक स्त्रीगण मात्र केँ रहबाक नियम मे बान्हल सासु अपने सँ गेली पहिल दिन आ चाह बनाकय खबासनी हाथे पठा देलीह… लेकिन ई सिलसिला डेली दोहरेला पर ओ बड़ा सम्हैर कय नवकी पुतोहु केँ बुझेलीह, “बौआसिन! अपन घर मे चुल्हा-चौका खबासनी सब नहि छुबैत अछि, हमहीं-अहाँ सब काज करब। जा धरि गाम मे छी, कनी ई सब बात ध्यान राखू।”
 
“ई सब बात हमरा नहि, अपन बेटा केँ कहथुन। हम पहिनहि कहि देने रहियनि जे हमरा भोरका चाह सब दिन माँ बनाकय पियेलक। हमरा त भोरका चाह बेडे पर चाही।” – पुतोहु के टूटल जवाब सुनि सासु आर बेसी सम्हरली आ कहलखिन, “बौआ सब कोन जोगरक भेलय जे स्त्रीगणक बात-विचार ओकरा कहियैक? अहाँ केँ यदि यैह उचित बुझाय जे हम चाह बना-बना पियाबी त कोनो बात नहि!” सासु विचारवान छलीह, ओ पुतोहु सँ मुंह लागय नहि चाहैत छलीह, परञ्च पुतोहु हुनका जेनरेशन सँ बहुत नीचाँ के रहथि, ऊपर सँ ड्योढीक बेटी, जमीन्दारक बेटी, ग्रेजुएट पुतोहु। ओ फेर सासु सँ कहि देली, “ई सब बात हमरा नहि, अपन बेटा केँ कहथुन। हम पहिनहि कहि देने रहियनि….।” सासु चुपचाप उठिकय ओतय सँ ससरबाक प्रयास कयलीह…. पुतोहु हुनकर एहेन रुइख देखि तपाक बजलीह, “हमरा ओहिना नहि अनलीह पुतोहु बनाकय, हमर पिता सँ लाख टका लेल गेल अछि। २ दिन नहि भेल आ हम एतेक बात सुनि रहल छी। ई सब हम बर्दाश्त नहि करबनि।”
 
धीरे-धीरे पूरा गाम मे शोर मचि गेल जे फल्लाँक लखटकिया घरवाली त एक-एक पाइ के हिसाब जोड़ि रहल छन्हि। नित्य अंगना मे रंगडोलबा होइत छन्हि। मुदा जमाना तेहेन रहय बाबू तहिया जे दहेज लय सँ कियो नहि चुकैत छल। लोक मे मारि फँसि जाइक, ओकरा बेटा केँ १ लाख देलकय, ओकर बेटा सँ हमर बेटा कमजोर अछि की? हमरा सवा लाख, हमरा डेढ़ लाख… आ आब त एहेन दहेजलोभी सब केँ खाली व्यवहारे-व्यवहार मे २०-२५ लाख टका खर्च भ’ जाइत छन्हि आ ऐगला साल सासु-पुतोहु मे झंझटि फँसल त केस-मोकदमा कय केँ ओ कनियाँ फेर सँ नैहर गेली, दोसर जगह आर नीक लड़का ताकिकय २५-३० लाख तक खर्च कय केँ विवाह होइछ, हर साल केस-मोकदमा आ नव-नव लड़का ताकि-ताकि कय दोसर-तेसर-चारिम-पाँचम… विवाह सब होइत रहय छय। आब कुमारी कन्या के परिभाषा केना कयल जाय से चुनौती छैक मिथिला समाज मे।
 
हरिः हरः!!