— आभा झा।
मिथिलाक साहित्यकेँ दू भागमे विभाजित कयल जा सकैत अछि – अभिजन साहित्य आ लोक साहित्य। अभिजन साहित्य सामान्यतः पढ़ल-लिखल आ आभिजात्य वर्गक लेल होइत छैक। एकर रचयिता अथवा लेखक प्रायः ज्ञात रहैत छथि। अभिजन साहित्य प्रायः स्तरीय मानल जाइत अछि।
दोसर दिस लोक साहित्य श्रुत परंपरा अथवा वाचक परंपरामे जीवैत अछि।ई जनसामान्यक साहित्य अछि जाहिमे लोकमानसक प्रधानता रहैत अछि। एकर रचयिता प्रायः अज्ञात रहैत छथि आ परंपराक प्रवाहमे एहि साहित्यमे निरंतर परिवर्तन होइत रहैत अछि।
लोक शब्दक सामान्य अवधारणा अछि जनसामान्य। समाजक एहि वर्ग विशेषक जीवनमे प्रचलित श्रुति साहित्यकेँ लोक साहित्य मानल जाइत छैक। ई साहित्य शिष्ट साहित्यसँ सर्वथा भिन्न प्रकृतिक होइत अछि। लोक साहित्यमे भाषा सामान्य जनकेँ प्रयोग वाला होइत छैक।कथाक विषय सेहो जनमानसकेँ रूचिकेँ होइत छैक। लोक साहित्यमे कृत्रिमता नहिं होइत छैक।
मिथिलाक आधुनिक भाषा मैथिलीमे लोककथाक अक्षय भंडार अछि। ई लोककथा सभ मिथिलाक सभ तूरक लोकक कंठमे विराजमान रहल अछि जकर वाचन आ श्रवण होइत रहल अछि। एहि ठाम ई मान्यता अछि जे सामान्यतः कथाक वाचन आ श्रवण दिनमे नहिं होमयकेँ कारण दिनमे लोककथाक श्रवण वा वाचनसँ स्रोता वक्ताकेँ दोष होइत अछि। तथापि अनेक प्रकारक धार्मिक कथा दिनोमे कहल-सुनल जाइत अछि। मैथिलीमे लोककथा हेतु कहिनी, कहानी, कथा, वृत्त, वृतांत आदि शब्द भेटैत अछि मुदा जे शब्द सम्प्रति बेसी लोकप्रिय देखि पड़ैत से अछि खिस्सा, खिस्सा पिहानी, कथा-कहिनी आदि। एहूमे सर्वाधिक रूढ़ शब्द थिक खिस्सा। खिस्सा लोकसामान्यक शब्द थिक।
पहिने परिवारक वृद्धा लोकनि छोट-छोट बच्चा सभकेँ सुतबा काल किंवा घूर तर बैसा कऽ मनोरंजनक बालकथा सुनबैत छलीह जाहिसँ नेना सभकेँ नहिं केवल मनोरंजन अपितु ज्ञानवर्धन सेहो होइत छलनि आ सांसारिक कृत्यक सेहो अभिज्ञान होइत छलनि। मुदा समयक प्रवाहक संग-संग समाजमे आर्थिक परिवर्तन होमय लागल। कतिपय कारणसँ लोक सब गाम-घर छोड़ि शहर दिस रूख कऽ लेलनि। शहरीकरणकेँ एक दुष्परिणाम ई भेल जे अदौं स’ चलि आबि रहल खिस्सा-पिहानी गामेमे रहि गेल। शनै:-शनैः गाम-घरमे सेहो ने लोककथा, खिस्सा-पिहानी सुनाबै वाला रहल ने सुनै वाला।
मिथिलाक अनेक लोकनायकक गाथाकेँ गाबि कऽ सुनयबाक परिपाटी रहल अछि। एहिमे किछु लोकनायक तँ देवताक कोटिमे परिगणित भऽ लोकदेवताक स्थान ग्रहण कयने छथि आ हिनका सभक कृत्यक कथाकेँ धार्मिक कथाक कोटिक अंतर्गत समाविष्ट कऽ लेल गेल अछि। मुदा किछु लोकनायक एहनो छथि जिनकर गाथा तँ गाओल जाइत अछि मुदा हिनका लोकनिकेँ देवत्वक पद प्राप्त नहिं छनि।
‘ लोकगाथा ‘ लोकसाहित्यक प्रमुख विधा अछि। ई लोककथाक तुलनामे किछु वृहद होइत अछि। मिथिला क्षेत्रमे प्रचलित राजा सलहेस, दीनाभद्री आ बेनीराम आदि गाथा एहि श्रेणीमे अबैत अछि। मैथिली लोकगाथामे ओतयकेँ स्थानीय प्रथाक झाँकी भेटैत अछि। मैथिली लोकगाथा भारतीय लोक साहित्यक अमूल्य निधि अछि। एहि लोकगाथाक परंपरा अति प्राचीन तथा अति समृद्ध अछि। लोकगाथाक कथानक
एतेक सरल आ स्वाभाविक होइत अछि कि ओकरा सुनि कऽ स्रोतागण भाव मग्न भऽ जाइत अछि। एहिमे क्षेत्र विशेषक रीति-रिवाज, लोक-विश्वास, जादू-टोना, शकुन-अपशकुन, वन-पर्वत, भूत-प्रेत आदिक उल्लेख होइत अछि। लोक देवता दीनाभद्रीक कथा मिथिलांचल, सीमांचल क्षेत्रमे मुसहर अर्थात सदा जातिक दुनू भैयारीक लोकगाथा जन-जनमे संघर्षक कथाक रूपमे चर्चित अछि। श्रम एवं संघर्षक द्वारा समाजमे व्याप्त अत्याचार, अनाचार आ शोषणकेँ समाप्त करबाक लेल अपन प्राण गंमा देनिहार दलित वीरक कथा अछि दीनाभद्री। राजे सलहेसमे दुसाधक शौर्य गाथाक वर्णन अछि। सामान्यतया देखल गेल अछि कि निम्न जाति आ दलित वर्ग ही एहि लोकगाथामे विशेष आनंद लैत अछि।अपवादस्वरूप किछु अभिजात वर्ग सेहो एहिमे आनंद लैत अछि मुदा एक बाहरी जेकां। लोकगाथा सिर्फ मिथ आ कल्पना नहिं अछि बल्कि एहिमे इतिहास आ यथार्थक अंश सेहो अछि।
मैथिली साहित्यमे विद्यापतिकेँ जतेक प्राथमिकता देल गेल अछि,लोकनायक आ लोकगायककेँ नहिं। पिछला समयमे मैथिली साहित्य, कथा सहितमे मुसहर जातिक लोकदेवता ‘ दीनाभद्री ‘ आ पासवान ( दूसाध ) समुदायक ‘ सलहेस ‘ केँ व्यापक चर्चा आ स्थान भेट रहल अछि। फलस्वरूप ई दूटा लोकदेवकेँ समग्र मिथिलाकेँ पूजनीय पात्रक रूपमे स्थापित भेल अछि। साहित्यमे दोगादागी ‘ अल्हा रूदल ‘ केँ सेहो चर्चा भेल अछि। परन्च, कारिख, भूइयाँ, विषहारा, बिहुला, कुमर-वृजभान, शीत-बसंत, लोरिक मनियार, पचनियाँ, पमरिया, कविरससहितकेँ विषय सुंदर मैथिली साहित्यक अभिन्न अंग नहिं बनि सकल अछि।
पहिने माय – नानी अशिक्षित किंवा साक्षर रहैत छलीह। ओ सभ लोककथाकेँ एकटा कलाक रूपमे ग्रहण कऽ समाजमे अपन स्थान बनयबाक प्रयास करैत छलीह। मुदा जेना-जेना महिला शिक्षा आगू बढ़ैत गेल, एहि कलाक प्रति महिला लोकनिकेँ गरिमाक अनुकूल नहिं बुझना गेलनि। स्वभावतः बहुतोक कथा पूर्व पीढ़ी अपन अगिला पीढ़ी धरि अन्तरित करबामे असफल रहल आ एहि विधाक अधिकांश कालकवलित भऽ गेल।
आभा झा
गाज़ियाबाद