रामचरितमानस मोतीः श्री रामजीक बाण सँ रावणक मुकुट-छत्रादिक खसनाय

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

श्री रामजीक बाण सँ रावणक मुकुट-छत्रादिक खसनाय

पैछला अध्याय मे श्री राम द्वारा पुछल गेल प्रश्न जे सुन्दर चन्द्रमा मे कारी धब्बा जे देखा रहल अछि से कथी थिक, अपन-अपन बुद्धि अनुसार कहय जाउ, ताहि पर सब विभिन्न तरहक बात सब कहलखिन। स्वयं श्री रामचंद्रजी सेहो कहलखिन जे विष चन्द्रमाक प्रिय भाइ थिक जेकरा ओ अपन हृदय मे स्थान देने छथि आ ओ वियोगी सब केँ अपन असर सँ जरबैत रहैत अछि, ताहि पर हनुमान्‌जी कहलखिन जे हमरा हिसाब सँ चन्द्रमा अहाँक परम् भक्त छथि आ अहीं वला श्यामता केँ धारण कएने छथि – ताहि परः

१. पवनपुत्र हनुमान्‌जीक वचन सुनिकय सुजान श्री रामजी हँसि पड़लाह। फेर दक्षिण दिश देखैत कृपानिधान प्रभु बजलाह – हे विभीषण! दक्षिण दिशा मे देखू, बादल केना घुमैड़ रहल अछि आ बिजली चमैक रहल अछि। भयानक बादल मीठ-मीठ (हल्का-हल्का) स्वर सँ गरजि रहल अछि। कतहु कठोर ओला केर वर्षा नहि हो!

२. विभीषण कहलखिन – हे कृपालु! सुनू, ई नहि त बिजली छी, नहिये बादलक घटा। लंकाक चोटी पर एकटा महल छैक। दशग्रीव रावण ओहिठाम नाच-गान के अखाड़ा (नाच-गान केर) देखि रहल अछि। रावण माथा पर मेघडंबर (बादल केर डंबर जेहेन विशाल आर कारी) छत्र धारण कय रखने अछि। वैह बुझू जे बादल केर कारी घटा थिक। मन्दोदरीक कान मे कर्णफूल हिल रहल अछि, हे प्रभो! वैह मानू बिजली चमैक रहल अछि। हे देवता लोकनिक सम्राट! सुनू, अनुपम ताल मृदंग बाजि रहल अछि, वैह मधुर (मेघ गर्जन) केर ध्वनि थिक।

३. रावणक अभिमान बुझि प्रभु मुस्कुरेलाह। ओ धनुष चढ़ाकय ओहि पर बाण केँ सन्धान कयलनि। आर एक्कहि टा बाण सँ रावणक छत्र-मुकुट आर मन्दोदरीक कर्णफूल काटि खसौलनि। सब केँ देखिते-देखिते ओ जमीन पर आबि खसल। लेकिन एहि बातक भेद (कारण) कियो नहि बुझि सकल।

४. एहेन चमत्कार कय केँ श्री रामजीक बाण वापस आबिकय फेर तरकस मे पैसि गेल। ई महान्‌ रस भंग (रंग मे भंग) देखिकय रावणक समस्त सभा भयभीत भ’ गेल। न भूकम्प भेलय, आ न बहुते जोर के हवा (आँधी) चललय। न कोनो अस्त्र-शस्त्रे कियो नेत्र सँ देखलक। फेर ई छत्र, मुकुट आर कर्णफूल केना कटिकय खसि पड़ल? सब अपन-अपन हृदय मे सोचि रहल अछि जे ई बड पैघ (भयंकर) अपशकुन भेल!

५. सभा केँ भयतीत देखिकय रावण हँसिकय युक्ति रचैत ई वचन बाजल – माथा के खसनाइयो जेकरा लेल निरन्तर शुभ होइत रहल अछि, ओकरा लेल मुकुट केँ खसब अपशकुन केना?

हरिः हरः!!