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रामचरितमानस मोतीः सुबेल पर श्री रामजीक झाँकी आर चंद्रोदय वर्णन

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

सुबेल पर श्री रामजीक झाँकी आर चंद्रोदय वर्णन

१. एम्हर श्री रघुवीर सुबेल पर्वत पर सेनाक बड़ा भारी समूहक संग उतरलाह। पर्वत केर एक गोट खूब ऊँचगर आ परम रमणीय समतल आ विशेष रूप सँ उज्ज्वल शिखर देखिकय – ताहि ठाम लक्ष्मणजी गाछक कोमल-कोमल पत्ता सब आ सुन्दर फूल सब अपनहि हाथ सँ सजाकय बिछा देलखिन। ताहि सुन्दर आसन पर खूब सुन्दर एवं कोमल मृग छाला बिछा देलखिन। एहि आसन पर कृपालु श्री रामजी विराजमान भेलथि।

२. प्रभु श्री रामजी बानरराज सुग्रीवक कोरा मे अपन माथ टेकलनि। बायाँ दिश धनुष आ दायाँ दिश तरकस रखलनि। अपन दुनू हाथ सँ बाण सब ठीक कय रहल छथि। विभीषणजी हुनकर कान सँ सटल सलाह-मशवरा सब कय रहला अछि। परम भाग्यशाली अंगद आ हनुमान अनेकों प्रकार सँ प्रभुक चरणकमल केँ दबा रहला अछि। लक्ष्मणजी डाँर्ह मे तरकस कसने आ हाथ मे धनुष-बाण लेने वीरासन मे प्रभुक पाछू बैसल सुशोभित भेल छथि। एहि तरहें कृपा, रूप (सौन्दर्य) आर गुण केर धाम श्री रामजी विराजमान छथि। ओ मनुष्य धन्य छथि, जे सदिखन एहि सुन्दरतम् दृश्य दिश दीप केर लौ जेकाँ टकध्यान लगौने रहैत छथि।

३. पूर्व दिशा दिश ताकिकय प्रभु श्री रामजी चन्द्रमा केँ उदय भेल देखलाह। तखन ओ सब सँ कहय लगलाह – चन्द्रमा  के देखय जाउ। केना सिंह समान निडर अछि! पूर्व दिशा रूपी पर्वतक गुफा मे रहयवला, अत्यन्त प्रताप, तेज व बल केर राशि ई चन्द्रमारूपी सिंह अन्धकाररूपी मतवाला हाथीक मस्तक केँ विदीर्ण कयकेँ आकाशरूपी वन मे निर्भय विचरण कय रहल अछि। आकाश मे बिखरल तारा सब मोती जेकाँ अछि, जे रात्रिरूपी सुन्दर स्त्रीक श्रृंगार थिक। प्रभु कहलखिन – भाइ लोकनि! चन्द्रमा मे जे कालापन अछि, ओ कि थिक? अपन-अपन बुद्धि अनुसार कहय जाउ।

४. सुग्रीव कहलखिन्ह – हे रघुनाथजी! सुनल जाउ! चन्द्रमा मे पृथ्वीक छाया देखाय द’ रहल अछि।  कियो कहलखिन – चन्द्रमा केँ राहु मारने रहनि, वैह चोट के कारी दाग हृदय पर पड़ल छन्हि। कियो आर कहैत छन्हि – जखन ब्रह्मा कामदेवक स्त्री रति केर मुंह बनौलनि, तखन ओ चन्द्रमाक सारवस्तु निकालि लेलनि, जाहि सँ रतिक मुंह त परम सुन्दर बनि गेलनि, लेकिन चन्द्रमाक हृदय मे भूर भ’ गेलनि। वैह भूर चन्द्रमाक हृदय मे विद्यमान अछि, जाहि कारण सँ आकाशक कारी छाया ओहि मे देखाय द’ रहल अछि।

५. प्रभु श्री रामजी कहलखिन्ह – विष चन्द्रमाक अत्यन्त प्रिय भाइ थिकन्हि, ताहि सँ ओ विष केँ अपन हृदय मे स्थान दय कय सहेजिकय रखने छथि। विषयुक्त अपन किरण समूह केँ पसारिकय ओ वियोगी नर-नारी सब केँ जरबैत रहैत छथि।

६. हनुमान्‌जी कहलखिन्ह – हे प्रभो! सुनू! चन्द्रमा अहाँक प्रिय दास थिक। अपनेक सुन्दर श्याम मूर्ति चन्द्रमाक हृदय मे बसैत छन्हि, वैह श्यामताक झलक चंद्रमा मे अछि।

नवाह्नपारायण, सातम विश्राम

हरिः हरः!!

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