— रिंकू झा।
कोनो भी क्षेत्र के संस्कृति के पहचान ओहि क्षेत्र के खान-पान, रहन-सहन आर पहनावा स केल जाई छै। जहां तक मिथिला के बात भेल तऽ मिथिला अपन भोजन -भात आर मेहमानवाजी के लेल काफी प्रचलित अछी एकर वर्णन अहां के रामायण में महाराज दशरथ के मुह स सुनयमें भेटत।
मिथिला के पारम्परिक खाना बहुत स्वादिष्ट आर सेहत स भरल रहैत अछी, जाहि मे ढेर रास स्नेह के संग -संग विभिन्न तरहक प्राकृतिक पदार्थ स बनल मशाला के प्रयोग केल जाइ छै,बिशेस ध्यान राखी भोजन -भात बनाओल जाई छै कि कोन मास में कि उपयोग करबाक छै आर कि नहीं करबाक छै। ,एक टा कहावत छै मिथिला में कि,,
जेहन खाई अन्न,तेहन रहे मन ,, माने हम आहां जे आहार ग्रहण करै छी ओहि अन्न के प्रभाव स्वास्थ्य के संग -संग मन पर सेहो परै छै।
आधुनिक युग के भाग दौड़ भरल जिंदगी में लोक के मानसिकता एहन बनी चुकल छै जेना सब हमेशा ब्यस्त रहै छैथ अपना आप में परिणाम स्वरूप ओ अपना जीवन स जुरल हरेक चीज जेना संबंध के संग -संग स्वास्थ्य के प्रति सेहो लापरवाह दिखाई देता,दोशर महिला लोकनि सब काम काजी भ गेलैथ हे ओफिस स एला के बाद घर में मेहनत के करतै ,आधुनिकता के अहि दौड़ में मनुष्य के जीवन शैली आर खान -पान में बहुत बदलाव एलैया जाहि मे मिथिला सेहो नहीं पाछू रहल । गाम -घर सब शहर के तरह विकसित भऽ रहल अछी, जहां -तहां होटल रेस्टोरेंट आदि भेटत घर तक पार्शल पहुंच जाई छै,जेकर परिणाम ई अछि की यूवापीढी सब शहरी जीवन शैली के अपना रहल छैथ देर राति तक जागव,देर स सुतु देर स उठु,ने खाना के ठीक ने स्वास्थ्य ठीक, युवा पीढ़ी सब बिमारी के शिकार भऽ रहल छैथ , कारण गाम -घर के पारम्परिक आर शुद्ध खाना के छोड़ी फास्ट फूड के तरफ रुख कऽ रहल छैथ , फास्ट फूड मतलब किचन में जाई के कोनो जरुरत नहीं,खाना बनाबै के झंझटे खतम ,बैसल -बैसल आर्डर करु हाथ में भेट जेत ओहो कम स कम समय में मनपसंद खाना जेना पिज्जा, बर्गर, नुडल्स,मोमोज ,चिप्स कोल्डड्रिंक आदि,अहि सब तरहक खाना में स्वाद जरुर रहै छै ,पेटो भरि जाई छै ,कम समय में बनीयो जाई छै मुदा ई पौष्टिक भोजन नहीं रहै छै, स्वास्थ्य पर एकर बहुत दुष्प्रभाव परै छै, कारण फास्ट फूड में शक्कर,नमक,वसा आर कैलोरी के मात्रा बहुत रहै छै,एकर बेशी सेवन केला स मनुष्य के अंदर आलस, चिड़चिड़ापन, मोटापा, डायबिटीज़,दिल के दौड़ा के खतरा बढी जाई छै । फास्ट फूड आर मोटापा के वजह स महिला लोकनि में हार्मोन के कमी भ जाई छै जकर वजह स ओ बांझपन के शिकार भऽ जाई छैथ ।समय स पहिले आदमी बुर्ह दिखाई दै छैथ कारण केश,नाखुन, त्वचा सब पर एकर असर परै छै, बच्चा सब के केस पाकै लागय छै,आरो अनेकों तरहक शारीरिक बिमारी प्रभावित कऽ दै छै कारण फास्ट फूड मतलबे तेल स भरल वासी -तीवासी खाना, मिथिला में फास्ट फूड सीध्र गति स अपन पहुंच बना रहल अछि। जेना देखबै जे आब मिथिला में बिबाह,उपनयण,मूरण आर धार्मिक स्थल पर मेला -ठेला में सब जगह देखवै जे फास्ट फूड के दुकान भेटत आर ओतय भीड़ पुछु नहीं। हाट-बाजार,चौक -चौड़ाहा पर एक स एक दुकान आर रेस्टोरेंट सब भेटत लाईन लगा क सब खाई जेतैथ। पहिले भोर पाँच बजे उठै के चलन छलै सब समय स नास्ता पानी भेट जाई छलै धीया पुता के मुदा आब भोरे होई छै सात बजे त धरफर में कि बनत की खेब ,गाम -घर के भूजा,मुरही,कचरी ई सब त कियो पुछबे नहीं करतैथ।
कहै छै जे परिवर्तन प्रकृति के नियम छै तहने समाज आगु बढै छै, मुदा ई कोन परिवर्तन छै जाहि मे लाभ के जगह हानी होई छै मुदा तैयो लोक क रहल छैथ।कारण समय के अभाव रहै छैन बनाबै के मोन की करतैन,ने पहिले बला खान -पान रहल ने बनाबै बाली गृहणी जे पशंद बुझी खाना बनेती ,।
युवा पीढ़ी सब पश्चिमी सभ्यता के अपना अपन स्वास्थ्य के संग खेल रहल छैथ,एहन में अगर स्वस्थ मिथिला के संग स्वस्थ आबै बला नव पीढ़ी के कल्पना क रहल छी तऽ पुरा समाज के अही तरफ ध्यान देवाक आबश्यकता अछी,जेना पारम्परिक खाना के बढ़ावा देल जाय,समय स खाना पीना करी, भरपूर नींद आर प्रातः कालीन शैर अपना रुटीन में शामिल करी,फल के सेवन बेशी स बेशी करी,बाहरी या होटल के खाना कम स कम खाई ,गली , मोहल्ला में एकर जागरूकता के तरफ ध्यान दी , फास्ट फूड के प्रचार-प्रसार या बिज्ञापन पर अंकुश लगावी, स्कूल आर संस्था सब में पारम्परिक खाना पर जोर दी, बच्चा सब के घरक बनाओल खाना खुआबै पर जोर दी अपना खान-पान के तरफ बच्चा सब के ध्यान आकर्षित करी,अहि तरहे दृढ संकल्पित होई, तहने फास्ट फूड नामक जहर स छुटकारा भेटत वरना ई अहिना धीरे -धीरे शरीर के अंदर घून जका खा जेत युवा पीढ़ी के आर आबै बला के भविष्य के।