“संबंधमे देखावा कम आ अपनत्व बेसी हो”

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— आभा झा।     

आजुक भौतिकवादी युगमे चाहे संबंध होइ या पाबनि-तिहार सभक रूप-स्वरूप बदलि रहल अछि। भारत विविध संस्कृति, संप्रदाय एवं भाषाक देश अछि। एतय अनेक तरहक उत्सव आ त्योहार मनाओल जाइत अछि।बसंत पंचमी, होली, वैशाखी, जूड़शीतल, ईद, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, दशमी, दीपावली, ओणम, पोंगल, रक्षाबंधन, भाई-दूज आदि अनेक प्रकारक पाबनि-तिहार अछि जेकर संबंध संस्कृति, धर्म, देश या देशक महापुरुषक संग अछि। आजुक भौतिकवादी युगमे राष्ट्रीय महत्वक त्योहारकेँ छोड़ि देल जाय तऽ लगभग सब त्योहारक रूप-स्वरूप बदलि रहल अछि। नगरीकरण, मशीनीकरण, व्यवसायीकरण आदि संस्कृति अपन रंग जमेनाइ शुरू कऽ देने अछि। हमर परंपरागत पाबनि-तिहार सेहो एहि तरहक पाश्चात्य संस्कृतिक चपेटमे आबि रहल अछि।
सबसँ पहिने रक्षाबंधन पाबनिकेँ बात कएल जाय। एखन किछु वर्ष पूर्व ई एक सादा एवं पवित्र पाबनि छल। भाई-बहिनक संबंध दुनियामे सब संबंधसँ ऊपर अछि। एहि संबंधकेँ रक्षाबंधनक दिन सूत( धागा ) बान्हि कऽ सुदृढ़ करयकेँ परंपरा निभाओल जाइत छल। परंच आजुक व्यवसायिक युगमे एकर स्वरूप ही बदलि गेल अछि। लोकक मानसिकता, उत्पादक, विज्ञापन तथा डिजिटल युगकेँ कारण एहि पवित्र पाबनिमे चकाचौंध, प्रदर्शन आ कृत्रिमताक समावेश भऽ रहल अछि। जतय घरमे पड़ल एक धागा आ गुड़सँ काज चलि जाइत छल ओतय आब एक-दोसरमे बढ़ि कऽ खर्च करयकेँ भावना पनैप रहल अछि। दस-बीस टकासँ लऽ कऽ हजार-लाख टकाकेँ राखी बजारमे तरह-तरहकेँ वर्गक लोककेँ लुभा रहल अछि। मिठाई सेहो तीन सौसँ लऽ कऽ हजार टका तककेँ मूल्यकेँ मिठाईकेँ डिब्बा उपलब्ध अछि। बहिनो सब ककरोसँ कम नहिं छथि। ओहो सब अपन भाईकेँ आधुनिक तरीकासँ लूटि रहल छथि। आब उपहारमे डिमांड सेहो शामिल भऽ गेल अछि। आइ दिखावा बेसी भऽ गेल अछि। अपना लऽग धन हो या नहिं हो, प्रदर्शन बेसी भऽ गेल अछि। लोक उधार लऽ कऽ उपहारक आदान-प्रदान करय लागल अछि। प्रतिस्पर्धा बढ़ि गेल अछि। कोनो पाबनि-तिहार हुए लोक घरमे बनल व्यंजन तथा उपकरण तक सीमित रहैत छल आ आनंदपूर्वक एहि पाबनि-तिहारक आनंद लैत छल। आब जतेक लोककेँ सुविधा बढ़ि गेल अछि ओतेक अपनत्वक भावना घटि रहल अछि। युवावर्ग विशेष रूपसँ एहि संस्कृति दिस आकृष्ट भऽ रहल अछि। पहिने लोक अपन घरमे ही एहेन अवसरक आनंद लैत छल आ एक-दोसरकेँ शुभकामना दैत छल। आब उपहार, संदेश आ व्यंजन पर खूब पाई बहाओल जाइत अछि। परिस्थिति बदलि रहल अछि, आर्थिक स्थिति सेहो लोकक काफी नीक भऽ गेल अछि मुदा बढ़ैत सुविधा आ घटैत अपनत्वक बीच संबंधमे दरार आबि रहल अछि।
शादी-ब्याह पर गायब भऽ रहल अछि अपनापन। चाहे बजट बढ़ि जाइ मुदा सजावटमे , व्यंजनक संख्यामे, अतिथिक सुविधामे कोनो कमी नहिं हेबाक चाही। ओतहि अतिथिक पूरा ध्यान स्वयंकेँ बेसी प्रतिष्ठित व सुन्दर देखबै पर रहैत अछि। एहि बीचमे पैघक लेल सम्मान, छोटक लेल आशीर्वाद आ हमउम्रक लेल आत्मीयता बिल्कुल गायब अछि। आइसँ बीस वर्ष पूर्व तक अपन करीबी संबंधिकक विवाहमे हम हफ्ता भरि रूकैत रही। सबटा शुभ काज हुनकर निवास स्थान पर ही होइत छल। सब स्त्री मिलि-जुलि कऽ काज करैत छलीह। गिनल-चुनल सहायक काजक लेल रहैत छल जिनका गलतीसँ सेहो नौकर नहिं बूझल जाइत छल। असुविधा भेला पर सेहो शिकायत नहिं होइत छल। आजु होटलमे अतिथिक अलगसँ कमरा रहैत अछि। नौकर-चाकरक फौज रहैत अछि। सब सुख-सुविधा उपलब्ध रहैत अछि। तइयो दू दिन बाद जखन घर जाउ तखन बड्ड थाकल रहैत छी। कि हमर स्टेमिना एतेक कम भऽ गेल अछि। दरअसल हमर बीचक अपनत्व कम भऽ गेल, एक-दोसरक लेल शुभ भावना विलीन भऽ गेल ताहि दुवारे हमरा भावनात्मक ऊर्जा पूरा नहिं भेटैत अछि, हृदयकेँ आशीर्वाद नहिं भेटैत अछि। आब हमरा मात्र औपचारिकता निभेभाक रहैत अछि। दू दिन तक गुड़िया जेकां सजि लिय, दिखावाक लेल हँसि लिय आ एक भार जेकां माथ पर लादि कऽ आबि जाउ कि हम एतेक खर्च कयलहुँ। रिसेप्शन शानदार हेबाक चाही भले ही हम अपन बेटा व बेटीकेँ कोनो संस्कार या सहिष्णुता नहिं सिखाबी कि हुनकर विवाह सफल होइन। अपनत्व तखन बढ़त जखन सब पर खुजल मोनसँ स्नेह आ आशीष लुटायब बदलामे प्रेमक ऊष्मा व ऊर्जा लऽ कऽ घर आबि। कोनो विवाह या उत्सवमे जाइ तखन अहूँ विचार करू कि दिखावा कम आ अपनत्व बेसी हो।
जय मिथिला, जय मैथिली।