— कीर्ति नारायण झा।
बढैत सुविधा आ घटैत अपनत्वक बीच हुकहुकाइत जिनगी – एहि बेर बहुत दिनक बाद महेश भाई गाम गेल छलाह ओ हावड़ा म्युनिसपैलिटी में काज करैत छलाह आ दू साल पहिले रिटायर केने छलाह मुदा ओ हावड़ा में रिटायर भेलाक बादो रहैत छलाह। एकटा कनेक टा के घर कीनने छलाह जाहि मे जँ कोनो पाहुन पहुँच गेलाह तऽ ओहि घर में रहै में बहुत अशोकर्य के बात छल तें महेश भाई पाहुन के भोजन करा कऽ ठहरवाक लेल गामक चिरंजीव भाई के ओहिठाम पठा दैत छलखिन्ह। मुदा कष्ट कयलाक उपरान्तो गाम रहवाक लेल तैयार नहि छलाह। रिटायर भेलाक बाद पहिल बेर गाम आयल छलाह त गामक प्रभु झा के दोकान पर राशन के समान कीनवाक लेल पहुंचलाह। गामक बेसी लोक ओहि दोकान पर चाह पीवाक लोभ सँ अथवा अन्य राजनैतिक बात सभ सुनवाक लेल अड्डा बनाओने रहैत अछि। प्रभु झा खूब पाइ बला लोक तें सभ के अपन बड़का दलान पर बैसाओने रहैत अछि। महेश भाई के दोकान पर पैएर दैतहि गामक लोक कौआ जकाँ हिनका लूझय लागल। हिनका गामक सभ सुख सुविधा के विषय में कहय लगलन्हि जे आब गाम में थाल कादो बिसरि जाउ। सौँसे पिच रोड। सभटा सामान गाम में उपलब्ध छैक, कोनो सामान कीनवाक लेल मधुबनी जयवाक नहिं काज। भरि राति बिजली पंखा में सुतू आ अन्हार कतहु नहि भेटत। भरि राति चारू कात इजोत। अहाँ के बुझेबे नहिं करत जे गाम मे छी की शहर मे। ओम्हर सँ एक आदमी पूछलखिन जे महेश बाबू। अहाँ तऽ रिटायर कऽ गेलहुँ तखन कियेए कलकत्ता ओगरने छी? आउ गाम आउ… महेश बाबू आपकता के शब्द सुनि आह्लादित भऽ गेलाह तखने हुनका चारि साल पहिले के बात मोन पड़ि गेलन्हि जे कनियाँ के कोनो बीमारी सँ मृत्यु भऽ गेल छलैन्ह जाहि मे समस्त समाज हिनका सँ जवरदस्ती पूरा गामक लोक के नौति क रसगुल्ला के भोज कराओने रहथिन्ह। अपना के कतबो असहाय कहलाक पश्चातो गामक लोक एकटा बात नहिं सुनने रहैन। धिया पूता नहिं रहैन तें लोक घराड़ी सेहो हरपबा के तैयारी में दियाद सभ लागल छलखिन्ह… महेश बाबू के मुंह सँ निकालि गेलन्हि जे गाम आयब तऽ रहब कतय? भातिज घराड़ी हरपि रहल अछि अहाँ सभ ओकरा सँ बात कऽ कऽ हमर समस्या के समाधान कऽ सकैत छी? एतवा कहितहि सभ हिनका लग सँ सरकअ लगैत छैथि आ ओ लोकनि गुनधुन करय लगैत छैथि जे दियादी मामला मे हमरा लोकनि नहिं पड़ब।आब ओ जमाना नहिं छैक, ओ सभ सबल अछि आ ओकरा सभ सँ के मुँह लगाओत? महेश बाबू दोकान सँ राशन कीनि अपन घर अबैत छैथि आ दोसर दिन भोर में मधुबनी रेलवे स्टेशन पर गंगासागर एक्सप्रेस पकड़ि कऽ कलकत्ता आबि जाइत छैथि अपन संकीर्ण खोली में। ओ भरि रस्ता ट्रेन में बैसि कऽ सोचैत रहैत छैथि जे गामक विकास अपनत्व भाव के कखनहु मुकाबला नहिं कऽ सकैत अछि । जमाना छलैक जे गामक सभ लोक पहिले एक परिवार के सदस्य के रूप में रहैत छलाह , दुख में अथवा सुख में सभ एक दोसर के पीठ पर हाथ रखने ठाढ रहैत छलाह आ आब तऽ एक दोसर के स्नेह भाव सँ हाल समाचार पूछनिहार नहिं छैक, घरबा सँ शहरबे अच्छा……….ट्रेन अपन रफ्तार पकड़ने जा रहल छलैक आ महेश भाई के आँखि सँ ओहि पुरनका समय के स्नेह भाव नोर बनि कऽ आँखि में डबडबा रहल छलैन्ह जकरा एकटा अंगपोछा सँ पोछवाक असफल प्रयास कऽ रहल छलाह…..