“बढ़ैत सुविधा आ घटैत अपनत्व बीच हुकहुकाइत संबंध।”

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— ममता झा।       

हमसब हकीकत स दूर भाइग रहल छी। सबके जीवन यापन कर के तरीका अलग-अलग छई। एखुनका भागदौड के ज़िन्दगी में समयक अभाव भ गेल अई। आब स्त्री-पुरुष दुनू काज करैत छैथ। बच्चाक पालन पोषण आया के हाथ में। ने पहिने अतेक आजादी रहै आ ने अतेक सुविधा।

आब पाई रहला पर त सब किछ भेट जाइत अई लेकिन संबंध आ भावना पैसा स नई खरीदल जा सकैत अई। संबंध निभाब के लेल भाव संग समय चाही,जे एखुनका लोग लग अभाव अछि।
आधुनिकता माथ पर तांडव मचा रहल अई। ई दुनिया पश्चिमी सभ्यता के अपना कऽ, अप्पन संस्कृति संस्कार के बिसरल जा रहल अई। अगर नई बिसरैत त ई प्रश्न कहाँ स उठीता।
बहुत कष्टदायक अछि एखुनका सामाजिक स्थिति। गामों आब विरान भेल जा रहल अई। जेहना पक्का मकान आ रोड़ बनल तेहने लोकक मन कठोर बनल गेल। लोकक देखांऊस कखनो ने करी। अप्पन बाज में दुनू ठोर सटैत अई। आन आने होइत अई। ताँ लक हम्मर अनुरोध अई जे सब पहिने जकाँ हिलमिल कऽ रही। एकदोसर के समयानुसार समय-समय पर बातचीत करैत रही। तखन फेर स बदलाव कैल जा सकैत अई संबंध निभाब के लेल।