मैथिल आ वृहत् संयुक्त परिवार

 
हम मैथिल जनसमुदाय केर एकटा बड पैघ खासियत छल, किछु-किछु एखनहुँ अछि – ओ ई अछि जे हम मैथिल वृहत् संयुक्त परिवार मे जिबय के परम्परा स्वतःस्फूर्त भाव सँ जिबैत छी। हम सब माता-पिता, काका-काकी, भैया-भौजी, बाबा-बाबी, मामा-मामी, नाना-नानी, मौसी-मौसा, पीसी-पीसा, मित्र-भाइ, गौआँ-अनगौआँ, इलाका-भाषा के लोक आदिक एतेक वृहत् सम्बन्ध केँ स्वाभाविक रूप सँ जिबैत छी जेकर जतबे प्रशंसा कयल जाय से कम होयत। ई संस्कार हमरा सब केँ वास्तव मे मनुष्यता त सिखबिते अछि, एहि सँ भगवत्प्रेम सेहो भेटैत अछि।
 
सम्बन्धक सुन्दर माला गूँथिकय भगवानक चरण मे अर्पित कय देनाय बड पैघ बात कहल गेल अछि। रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड मे महाकवि तुलसीदास एहि पर बड नीक प्रकाश देने छथि। बड पैघ महावाक्य – सिद्ध मंत्र सेहो स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्रजीक मुखारविन्द सँ बाजल जेबाक दृष्टान्त ओ लिखलनि अछि। कनी ध्यान दियौक –
 
सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥१॥
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥२॥
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥३॥
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥४॥
दोहा :
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥४८॥
 
एहि प्रकरण मे भगवान् श्री रामचंद्र शरणागत विभीषण सँ अपन नीति-रीति कहि रहल छथिन। स्पष्ट रूप सँ कहि देलखिन अछि जे ‘जननी जनक बन्धु सुत दारा, तनु धनु भवन सुहृद परिवारा, सब के ममता ताग बटोरी, मम पद मनहि बाँध बरि डोरी’ – एहि सब सुहृद परिवारजन, तन, धन, भवन, एहि समस्त ममत्वरूपी ताग केँ बाँटिकय बनायल गेल डोरी मे अपन ‘मन’ केँ भगवानक चरण मे बान्हनिहार भगवान् केँ ओहिना प्रिय छन्हि जेना लोभी केँ धन प्रिय छैक। आर, स्पष्ट अछि जे हम मिथिलाक एक-एक लोक एहि सुमधुर शैली केँ अपन जीवन मे अपनेने छी। जे एहि सँ इतर छथि ओ कष्ट मे छथि। हम निर्णीत स्वर मे ई कहि सकैत छी जे एहने-एहने तथ्यसंगत जीवनशैली मिथिलाक पुरखाजन बनौलनि जेकरा याज्ञवल्क्य एक सूत्र मे कहलखिन –
 
धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिला व्यवहारतः
 
अर्थात् धर्मक निर्णय जनबाक हो त मिथिलाक व्यवहार मे देखि सकैत छी।
 
हम त निष्कर्ष एक्केटा कहब जे मिथिला मे जन्म भेटनाय बड पैघ बात होइत छैक। जाहि भूमि मे स्वयं पराम्बा जानकी प्रकट होइत छथि, ताहि ठाम हम-अहाँ मनुष्य पूज्य माय केर पवित्र कोखि सँ जन्म लय ओहिना सौभाग्यशाली होयबाक परिचय दय देलियैक। लेकिन, उपरोक्त विशिष्टता प्रति जँ मोहित छी, माया मे ओझरा गेल छी, अपनहि टा स्वार्थ आ स्वरूप बनबय मे व्यस्त छी… त बेर-बेर आत्मनिरीक्षण करू आ जीवनगति मे सुधार आनू। अपन समस्त सम्बन्धक ममता केँ खूब मनन करू आ ओहि ममत्वक ताग केर डोरी मे अपन मन केँ बान्हिकय प्रभुक चरण (लोकोपकारक कार्य) मे लगाउ।
 
हरिः हरः!!