सन्दर्भः डायन के?
मिथिलाक अस्तित्व बर्बाद होइ मे अर्धज्ञानी पंडित आ बनौआ-खौआ विद्वानक हाथ होयब स्पष्ट अछि। जनसामान्य आ अल्पज्ञानी केँ कोनो दोष देनाय उचित नहि होयत, परञ्च बुद्धि सँ व्याधिग्रस्त मनुष्य, योग्यता कम मुदा दावी बेसी वला लोक… ई सब मिथिलाक शिथिला बनेनिहार लोक थिकाह।
जहिना शिक्षा पद्धति मे परिवर्तन आयल ब्रिटिशकालीन व्यवस्था सँ, जहिना लोक आधुनिकताक वरण करैत स्कूल पैटर्न मे प्रवेश करैत आगू बढ़ल, हमरा लगैत अछि जे ‘नव विद्वता’ परम्पराक शुरुआत भेल आ क्रमिक रूप मे संकरता अबैत-अबैत मिथिलाक बदहाल होयबाक स्थिति-परिस्थितिक निर्माण भेल। बहुत बेर कटु अनुभव भेटल जे कोनो सभा या वार्ता मे तुनुकमिजाजी देखेनिहार आ अपना केँ बब्बर शेर बुझनिहार कतेको सक्षम-सम्भ्रान्त व्यक्ति उखड़ि गेल करैत छथि। बहुतो बेर अनुभव भेल अछि। छोट-छोट कथा मार्फत ई सब बात उजागर करब। एखन बस विषय प्रवेश कराओल अछि। बुझबाक यत्न करी।
अन्त मे, पिताक एकटा बात मोन पाड़ैत एखन लेख केँ विराम देब। पिता कहल करथि जे अर्धशिक्षित व्यक्ति डायन होइत अछि। अर्धशिक्षित सँ तात्पर्य हुनकर ई रहल करनि जे पूरा अध्ययन करत नहि आ आधा-छिधा पढ़ियेकय अपना केँ सर्वज्ञानी बुझय लागत, एहेन लोक के निष्कर्ष, निर्णय, न्याय सदैव डायन समान घातक मारि दैत अछि मनुष्य व मनुष्यता केँ। सावधान भ’ गेल करू जखन एहि तरहक डायन सँ सामना हुए त!
हरिः हरः!!