— दिलिप झा।
सर्व प्रथम कहs चाहब जे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन राष्ट्रीय वा क्षेत्रीय आह्वान, उत्तेजना आ प्रयत्न सब सs प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठन सभक द्वारा संचालित अहिंसावादी आन्दोलन छल। जेकर एक मात्र उद्देश्य, अंग्रेजक शासन सs भारतीय उपमहाद्वीप के मुक्त करैब छल। जकर सुरुआत १८५७ के सिपाही विद्रोह मानल जा सकैत अछि।
अतः देशभक्तिक संदेशक प्रसार आ अंग्रेजक अत्याचार सभ के उजागर करबाक वास्ते जागरूकता आ जनचेतनाक प्रचार प्रसार में
भला अपन पारंपरिक कला आ अपन मातृ भाषाक साहित्यक उपयोग के केना अबहेलना कैल जा सकैत अछि कारण जनजागरण वा जनचेतना अपन मातृभाषा आ कले के माध्यम सs शत प्रतिशत सुग्राह्य होइत छैक। हमर सभक जीवन में माय आ मातृभाषाक स्थान सर्वोपरी अछि ई दुनू कखनो एक दोसरक विकल्प नहि भs सकैत अछि। जेना कोनो अन्य स्त्री मायक स्थान नहि लs सकैत अछि ओहिना कोनो दोसर भाषा मातृभाषाक स्थान नहि लs सकैत अछि। ओहुना गौरवशाली भारतीय साहित्यिक परंपरा में मैथिलीक विशिष्ट योगदान रहल अछि।
मैथिली में सबसs पहिले व्याकरण, भाषा
विज्ञान, नाट्य साहित्य, पद्य आ गद्य विकसित भेल छल। मैथिली के ज्योतिरीश्वर आ विद्यापति सs प्रेरित भs कs बांग्ला, उड़िया आदिक संपूर्ण साहित्य पुष्पित-पल्लवित भेल। नवीन भारतीय भाषा सब में मैथिली सर्वाधिक प्राचीन एवं साहित्यिक रूप स सर्वाधिक विकसित भाषा अछि तैं आन भाषाबिद लोकनि सेहो एकर अनुकरण करैत अपना अपना विधा में साहित्य सृजन कs कs स्वतन्त्रता आन्दोलनक ज्वाला के प्रज्वलित करैत रहलाह। मिथिलाक लोक परंपरा, उपन्यास आ काव्य परंपराक स्वतन्त्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका रहल अछि। हमर संत सभ आ साहित्यकार सभक आजादी के लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका रहल अछि। जाहि कड़ी में लक्ष्मीनाथ गोसाईं, रंगलाल दास, रामस्वरूप दास आदि द्वारा भजन मंडली के माध्यम सs कैल गेल साहित्यिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक जनजागरण अपन विशेष महत्व रखैत अछि संगहि जनार्दन झा जनसीदन, यदुनाथ झा यदुवर, राघवाचार्य, भवप्रीतानंद ओझा आदि के योगदान के नहि बिसरल जा सकैत अछि विशेष कs शारदानंद झा के नाटक “हमरा देशक भागमे” के बिसरब कठिन प्रतीत होइत अछि। ई त भेल जन जागरण में मैथिली साहित्यक योगदान।
कोनो आन्दोलन के सफल बनेबाक लेल ओकरा आर्थीक सहायता के महत्ता के सेहो बड्ड महत्त्व छैक। अपन मिथिला अहु में कम नहि। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मिथिलाक दरभंगा राज परिवार के योगदान के बिसरल कदापि नहि जा सकैत अछि। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंहक जन्म २५ सितम्बर १८५८ में भेल छलैन्ह। गद्दी सम्हारिते ओ स्वयं अपना आप के समाजिक काज के लेल पूर्ण समर्पित कs देलैथ आ अपन पहिचान एक गोट महान जनहितैषी आ कुलीन के रूप में प्रतिस्थापित करवा में सफल भेलैथ।
महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक मंडली में छलाह। महाराजा कांग्रेसक शुरूआती जरूरत के देखैत दस हजार टाकाक योगदान देने छलथिन्ह आ कांग्रेसक दोसर अधिवेशनक अधिकांश खर्च उठेने छलाह आ संगहि प्रतिभागी सेहो भेल छलाह। लक्ष्मेश्वर सिंह अपन जीवन काल के अवधि में कांग्रेस के पोषण के लेल बहुत योगदान देने छलाह जाहि समय में कांग्रेस के एक गोट पोषक के अत्यन्त आवश्यकता छ्लैक।
ब्रिटिश शासन के दौरान १८९२ में जखन कांग्रेस अपन अधिवेशन इलाहाबाद में राखs चाहैत छल तs ब्रिटिश सरकार कांग्रेस के कोनो सार्वजनिक स्थानक प्रयोग करवा सs मना क देने छलैक तखन दरभंगा महाराज जमीन खरीद कs कांग्रेस के अपन वार्षिक अधिवेशन करवाक लेल देने छ्लथिन्ह। जकरे परिणाम स्वरूप कांग्रेसक वार्षिक अधिवेशन १८९२ में लोथर कैसल के मैदान में आयोजित कैल गेल छल।
एहि तरहे दरभंगा महाराज स्वतंत्रता संग्राम के सभ तरहे आर्थिक आ नैतिक मदति पहुंचैबाक कोशिश कयने छलाह। लक्ष्मेश्वर सिंहक लाभार्थी सभ में स्वतन्त्रता संग्रामक अग्रिम पंक्ति के सुशोभित करय वाला विभूति सब डाॅ० राजेन्द्र प्रसाद, अब्दुल कलाम आजाद, सुभाष चन्द्र बोस आ महात्मा गाँधी जेहन स्वतंत्रता आंदोलनक दिग्गज सब छलाह।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कुदि कs बहुतो मैथिल अपना आप के स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में ख्याति पौलैन्ह। जेना राम जी झा, पण्डित बाबू लाल मिश्रा (करमबा), आसमन महतो (श्रीपुर) लक्ष्मी नारायण झा (फूलबरिया), बऊए दास आ शिवबोधन दास (चंपारण) इत्यादि इत्यादि। एना तs चंपारणक सुगौली १८५७ के बिद्रोहे काल में सक्रिय भs गेल छल परन्तु असहयोग आन्दोलनक समय सुगौली राजनितिक रूप सs प्रखर रूप सs उभरल छल। सबिनय अवज्ञाक उदघोषणा होईते स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण झा अपना आप के नहि रोकि सकलाह आ आजादी के संग्राम में कूदि परलाह आ एहि क्रम में कैएक बेर जेल सेहो गेलाह। लक्ष्मी नारायण झाक प्रेरणा सs फुलबरिया में जन जागरण प्रसार के लेल १९२१ में एक पुस्तकालय के स्थापना सेहो भेल छल। जकर फंडिंग ओहि गामक स्त्रीगण सबसs मात्र एक एक मुट्ठी चाऊर दान स्वरूप ग्रहण कs कs कैल जाइत छ्लैक। एहि तरहे अनेको स्वतंत्रता सेनानी सभ के जन्मभूमि आ कर्मभूमि मिथिलांचल रहल अछि जनिकर सभक भूमिका अतुल्य रहलैन्ह अछि।
अंत अपन एहि शब्द सs करs चाहब जे भला हम अपन मिथिलाक भारतीय स्वतंत्रताक आन्दोलनक सर्वांगीण विकास में साहित्य, अर्थ आ बल सs योगदानक महत्व के कोना बिसरि सकैत छी जे हमरा प्रतिक्षण प्रतिपल गौरवान्वित करैत रहैत अछि आ भविष्य में करैत रहत।
जय मिथिला जय मैथिली