स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
मन्दोदरी-रावण संवाद
१. एम्हर लंका मे जहिया सँ हनुमान्जी लंका जराकय गेलाह, तहिया सँ राक्षस सब भयभीत रहय लागल। अपन-अपन घर मे सब विचार करैत छल जे आब राक्षस कुल केर रक्षाक कोनो उपाय नहि अछि। जिनकर दूतक बल केर वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि, ओ स्वयं जखन नगर मे अओता तहिया हमरा सभक कि भलाइ होयत?
२. दूति लोकनि सँ नगरवासीक वचन सुनि मन्दोदरी बहुत व्याकुल भ’ गेलीह। ओ एकान्त मे हाथ जोड़िकय पति रावणक चरण लागि नीतिरस केर पाक सँ पकायल बात कहली –
“हे प्रियतम! श्री हरि सँ विरोध छोड़ि दिअ। हमर कहब केँ खूब हितकर बुझि हृदय मे धारण करू। जिनकर दूत केर करनी विचार करिते (स्मरण अबिते) राक्षस सभक स्त्री लोकनिक गर्भ खसि पड़ैत छन्हि, हे प्रिय स्वामी! यदि भलाइ चाहैत छी त अपन मंत्री केँ बजाकय हुनका संग श्री हरिक स्त्री केँ पठा दिऔन। सीता अहाँक कुलरूपी कमल वन केँ दुःख दयवाली जाड़क राति समान अयली अछि। हे नाथ। सुनू! सीता केँ देने बिना शम्भु ओ ब्रह्माक कयलो सँ अहाँक कोनो भलाइ नहि भ’ सकैत अछि। श्री रामजीक बाण साँपक समूह समान अछि आर राक्षस सभक समूह बेंग समान। जा धरि ओ एकरा सब केँ गिरि नहि जायत ता धरि हठ छोड़ि उपाय कय लिअ।”
३. मूर्ख आ जगत प्रसिद्ध अभिमानी रावण कान सँ मन्दोदरीक वाणी सुनि खूब हँसल आ बाजल – “स्त्री सभक स्वभाव सचमुच बहुत डरपोक वला होइत छैक। मंगल मे सेहो डराइत छी! अहाँक मन-हृदय बहुते कमजोर अछि। जँ बानर सभक सेना आयत त बेचारा राक्षस सब ओकरा खाकय अपन जीवन निर्वाह करत। लोकपालो जेकर डर सँ काँपैत छथि, तेकर स्त्री डराइत छी, ई बड़ा भारी हँसीक बात भेल।”
४. रावण एतेक कहिकय हँसिकय मन्दोदरी केँ छाती सँ लगा लेलक आ ममता बढ़ाकय आर बेसी सिनेह देखबैत ओतय सँ निकलिकय अपन सभा मे चलि गेल। मन्दोदरी हृदय मे चिन्ता करय लगलीह जे पति पर विधाता प्रतिकूल भ’ गेल छथि।
५. जहिना रावण सभा मे आबिकय बैसल, ओकरा खबरि भेटलैक जे शत्रुक भारी सेना समुद्रक ओहि पार आबि गेल अछि, ओ मंत्री सब सँ पुछलक जे उचित सलाह कहू, आब कि करबाक चाही! तखन ओ सब हँसल आ बाजल जे चुप्पे रहल जाय सरकार, एहि मे सलाह के कोन बात! अपने देवता लोकनि आ राक्षस सब केँ जीत लेलहुँ, तखन त किछु श्रम भेबे नहि कयल। फेर मनुष्य आ बानर कोन गिनती मे अछि?
हरिः हरः!!