“पग-पग पोखरि माछ मखान”

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— अखिलेश कुमार मिश्र।     

 

पग पग पोखड़ि माछ मखान
मुँह में दबउने खिल्ली पान
मधुर बोल चौबनिया मुस्कान
ऐह तs भेल मिथिला-मैथिलक पहिचान।

माछ, ओह्ह इ तs एहेन शब्द अछि जे सुनितहि मुँह पानि सँ लबालब भरि जाइत अछि। मिथिला में माछ तs एतबे महत्वपूर्ण अछि जे एकर सम्बन्ध व्यक्ति सँ छठिहारी सँ कठिहारी तक जुड़ल अछि, अर्थात जन्म सँ मृत्यु पर्यन्त। बुझु जे कुनो शुभ काज या मृत्युक बाद श्राद्ध कर्म बिना माछ के सम्भवे नै। मिथिला-मैथिलीक वर्णन तs बिनु माछक अपूर्ण रहि जैत माछक एतबे महत्व अछि।
माछ की थिक? मात्र एक जलीय जीव, जेना कि अन्य जलीय जीव सभ होइत अछि। कुनो क्षेत्र के खान-पान, रहन-सहन आ सांस्कृतिक धरोहर ओतुका भौगोलिक परिवेश के मुताबिक होइत अछि। मिथिलांचल के विस्तार उत्तर में हिमालय, दक्षिण गंगा, पूरब कोशी आ पश्चिम में गंडक तक अछि। थोड़े एहि के बाहर सेहो। इ इलाका बुझु जे धरतीक स्वर्ग समान अछि जाहि में सालों धरि स्वच्छ जल के बहुतायत अछि। एहि क्षेत्र के बहुत चर-चांचर के अधिकांश भाग जल सँ भरल रहैत अछि। मिथिला में पोखरि सेहो भरमार अछि जे सदिखन जल सँ परिपूर्ण रहैत अछि। जल आ जलाशय के अतेक प्रचुरता के चलते माछ बहुतायत भेंटैत अछि। जल के सर्वाधिकता के चलते मुख्य खेती धान आ जल में मखान तथा माछ मुख्य रहल। इ मिथिलांचलक मुख्य आहार में तैं शामिल रहल। मुदा इ माछ बुझु जे मिथिला के खाद्य पदार्थ में सर्वोत्तम अछि। मिथिलांचल के तs आर्थिक आ सांस्कृतिक क्षेत्र में माछ रग रग में पैसल अछि।
मिथिला में माछक संस्कृतिक महत्व: एहि क्षेत्र के तs जन्म में छठिहार में सेहो माछक प्रयोग, विवाह के चतुर्थी, द्विरागमन के भरफोरी बर्तन छुएनाइ, मृत्यु के बाद कर्म में घाट पर एकादसा में सेहो माछक प्रयोग होइत अछि। कतौ जदी यात्रा लेल चललौ तs माछक दर्शन शुभ होइत अछि। कम सँ कम माछ के नाम लेनाइ तक शुभ मानल गेल अछि। एहि क्षेत्र में तs माछ सुहागक प्रतीक के तौर पर देखल जाइ अछि। सधवा स्त्री माछ खेनाइ के अपन सौभग्य सँ जोड़ि क देखै छैथि। माछ के प्रयोग त अतेक विशेष अछि जे सालक एक जितया पावनि में एकरा सँग मड़ुआ रोटी विशेष भोजन मानल गेल अछि। मिथिलांचलक सभ पेंटिंग आ कोहबर तथा ओहि में प्रयोग होमs बाला सभ चित्रकारी में माछक चित्र अवश्य रहैत अछि। मतलब माछ अछि तs सभ किछु शुभे शुभ। भारतवर्ष में हिन्दूक पूजा पद्धति तीन तरहक अछि। शैव, शाक्त आ वैष्णव। मिथिलाक लोक सभ शाक्त छैथि जतय मातृशक्ति के पूजा कैल जाइ अछि आ वलिप्रदान के सेहो महत्व अछि। अर्थात मांसाहार निषेध नै अछि। इ प्रसाद रूप में ग्रहण कैल गेल। संगहि माछक उपलब्धतता के कारण इहो भोजन में शामिल भ गेल।
माछक आर्थिक महत्व: जलीय क्षेत्र के बहुलता के कारण एतय बहुत तरहक माछक उपलब्धता रहैत अछि जाहि में रोहु, भाकुर, नैनी, माँगूर, सिंघी, कबइ, टेंगरा, गैंची आदि माछ अछि। एहि सँ सम्बंधित बहुत रास रोजगार सिर्फ ऐह पर आधारित अछि। क्षेत्र के अधिकांश मलाह सभक मुख्य रोजगारे माछ पर निर्भर करैत छैन्ह।
आहार रूप में माछक महत्व: मांसाहार में सिर्फ मछे टा एहेन भोज्य पदार्थ अछि जे विकृति सं अलग अछि। किछु माछ तs खूब सुपाच्य होइत अछि। इ प्रोटीन के तs विशेष स्रोत मानल गेल अछि। सिर्फ माछे टा एहेन मांसाहार (नॉनवेज) अछि जाहि में कोलोस्ट्रोल के मात्रा बड़ कम आ ओमेगा3 पैल जाइ अछि। अर्थात माछ भोजन सँ शरीर पुष्ट होइत अछि संगहि दिमाग तीक्ष्ण होइत अछि। तै अधिकांश मैथिल तीक्ष्ण दिमाग के छैथि।
एखन स्व. हरिमोहन झा कृत “खट्टर काकाक तरंग” पढ़ै छलौंह। ताहि में खट्टर काका सँ पुछल गेल जे माछ खेबाक चाही या नै तs ओ बाजलाह जे माँछ नै खेबाक चाही तs की कांट खेबाक चाही”??एक जगह लिखल अछि “माछे जेखन छोड़ि देब, त खायब की बकलेल, अगर सागे पात चिबेबाक छल तs जन्म कियै लेल”। एक ठाम खट्टर काका सँ पूछल गेल जे अहाँ एकादशी क माछ छोड़ैत छी या नै त जबाब दै छैथि जे ” हौ, सुनह हमर शास्त्र चलय तs माछ एकादशी की एकादशा पर्यन्त नै छोड़ी। हमरा पतरा में मात्र ढुइये टा तिथि अछि। जाहि दिन माछ भेटल से पूर्णिमा, जाहि दिन नै भेटल से अमावस्या”।
माछ अपना सभक जीवन में की स्थान राखैत अछि से कनि लिखक प्रयास छल हमर। ओना माछक महात्म्य तs महान अछि, एकर वर्णन विलक्षण अछि। धन्य हम्मर सभक भाग्य जे एहेन धरती पर जन्म लेल। माछ एहि जन्म कि जन्म जन्म नै छोड़ब।