“हमर जन्मोमे माछ, हमर मरणोमे माछ।”

1160

— ज्ञानदा झा।   

हमर जन्मोमे माछ, हमर मरणोमे माछ।
हमर बियाहो दुरागमनमे, माछे आ माछ।
हम सगुनोमे माछे संठलियै
हम त माछेके गुणगान केलियै। ।

मिथिलामे माछक ओ महत्व छै जकर वर्णन करमे किताब कम परि जायत। मिथिलाक पहचान अछि माछ, सब देशके अपन ध्वज होइछ आ ओकर विशेष चिन्ह होइछ आ अपन मिथिलाक ध्वज पर जोड़ा माछ अछि। मिथिलाक घर घरमे माछक चित्र भेटत। कोहबर घर सॅ दलानक मोख तक। माछके दर्शन क वर बियाह करय जाइत छैथ तै माछ सगुनक प्रतिक मानल गेले। छठियार बिना माछ के पुर्न नै मानल गेले। चतुर्थीमे सगुन भारमे माछ दही अनिवार्य छै। दुरागमनमे कनिया सॅ माछ कटैल जाइछै जकरा शुभ विध मानल गेलैये। आ भरभोरी दिन तहिना माछ दही भार अबै छै कनियाक नैहर सॅ जाहि सॅ ब्राम्हण भोजन होइछै आ कनियाके बर्तन सेहो छुवेल जाइछैन। मरणोपरांत केहनो वैष्णव किये नै मरथु हुनकर कर्म बिना माछके नै होइछैन ।द्वादशा दिनक भोजमे सेहो कतेक ठाम माछ होइत छै जाहिमे हमरो सबहक ओइठाम सेहो होइये आ तेरहम दिन त माछ, मांसक नाम सॅ प्रख्यात छै ।मिथिलामे माछ सोहागक प्रतिक मानल गेलैये। बहुत गांवमे सुनबै कनिया सब जखन ऑगन एल श्रेष्ठ दाइ माइके गोर लगै छथिन त आशिर्वाद रूपमे ओ कहै छथिन खुब दनदनाइत रहु माछ भात खाइत रहु कहबाक लेल त लोक हॅसीमे ल लै छै लेकिन कतेक पैघ बात कहै छथिन जे स्वस्थ रहू आ अखण्ड सौभाग्य प्राप्त होमय कीयेकी सुहागिन स्त्री मात्र माछ भात खा सकैये। कहै छै जीतिया सनक कठिन व्रत माछ मरुवा खा क कैल जाइये। मिथिलाक दुर्गा पूजामे माछ भातक भोग लगै छनि। हमरा ओइठाम लक्ष्मी पूजा दिन ( दियावातीक) सोहागिन भोजन होइछै जाहिमे माछ प्रधान भोजन बनै छै आहा कतबो व्यजन बना लिय लेकिन माछ बनबाके चाही आ सोहागिन स्त्रीके भगवती रूपमे पूजन जाइछैन। भोजन करा, खोइछ द बहुत सम्मान पूर्वक बिदा कैल जाइछैन ।
लिख लेल त बहुत किछु अइछ और कतेक गोटे लिखनहु छैथ। शब्द सीमा पार भेला सॅ डिलीट भ जाइछै तै हम विराम ल रहल छी। अंतमे
दोहा- गरै गंगा, कबै काशी, पलबा प्राण आधार।
नैनी नाम नारायण गाबैथ, सौरा संत उधार। ।
बोलो भाई माछ भात की जय