“मिथिलामे माछक महत्व” 

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— आभा झा।   

पग-पग पोखरि, माछ मखान
सरस बोल मुस्की मुख पान
मिथिलामे माछक सांस्कृतिक आ पारंपरिक महत्व अछि।पौष्टिकताक दृष्टिसँ सेहो माछ महत्वपूर्ण अछि। माछमे कैल्शियम, फाॅस्फोरस, आयोडीन, मैग्नीशियम, लौह तत्वक संग तेलक सेहो मात्र रहैत छैक जे शरीर आ खास कऽ मस्तिष्कक विकासमे सहायक होइत छैक। नेनपनमे प्रोटीनक मात्रा बेसी लेलासँ मानसिक आ शारीरिक विकास बेहतर होइत अछि। माछक मूड़ा खयलासँ दिमाग तेज होइत छैक। मिथिलाक लोक मांसाहारी भोजनक बड्ड प्रेमी होइत छथि। एकटा कहावत अपन मिथिलामे प्रसिद्ध अछि – ” माछ, पान आ मखान, ई तीन अछि मिथिलाक जान। मिथिलाक हरेक भोज-भात या खुशीक अवसर पर माछ भातक आयोजन होइत अछि मिथिलाक लोक माछ देखि कऽ यात्रा केनाइ शुभ मानैत छथि। माछ मिथिलाकेँ सब संस्कार विवाह, उपनयन, मुड़न, द्विरागमन हो या कोनो भोज-भात या अशुभ कर्म, सबमे माछक प्रधानता रहैत अछि। मिथिलामे श्राद्ध कर्ममे तेरहम दिन माछ-माँस अनिवार्य रूपसँ भोजमे शामिल रहैत अछि। पाहुनक स्वागतमे सेहो माँछ-भात खायकेँ लेल देल जाइत अछि। दरभंगा महाराजक सब राजकीय कागज पर जोड़ा माछ आ लोहाक गेट पर सेहो जोड़ा माछ बनल रहैत छल, जे अखनो अवशेष पर देखय लेल भेटैत अछि।
मिथिलावासी अपन भोजनमे तरल आ मसालेदार माछ बड़ चाव आ तृप्ति भावसँ खाइत छथि। बच्चाक छठिहारक दिन, जच्चाके छठिहारी पूजनक बाद माछ खयबाक लेल देल जाइत अछि, संग ही परिवारक सब सदस्य एहि विशेष भोजनक आस्वादन करैत छथि। एहि तरहें विवाहक चारिम दिन ( चतुर्थी ) वर पक्षक दिससँ वधूक लेल अनेकों खाद्य पदार्थक अतिरिक्त शुभक प्रतीक स्वरूप दही आ माछक भार अबैत अछि। एहि दिन माछ खुआबैकेँ परंपरा अछि। जीतिया व्रत, जे माँ अपन बच्चाक मंगल कामना आ दीर्घायुक लेल करैत छथि, पाबनिसँ एक दिन पूर्व मड़ुआक रोटी आ माछ खाइत छथि। मिथिलामे कोनो शुभ काज बिना माछकेँ संपन्न नहीं होइत अछि। मिथिला पेंटिंगमे सेहो माछक पेंटिंगकेँ स्थान भेटल अछि।
मानवक भौतिक आवश्यकतामे आहार सर्वोपरि अछि।
मिथिला अपन प्राचीनताक संग-संग लोक-व्यवहार आ अपन सांस्कृतिक समझ-बूझक लेल सेहो प्रख्यात अछि।मिथिलामे माछ खाली अपन उपस्थिति दर्ज नहिं कएने अछि मुदा एतऽ सामाजिक खान-पानमे माछक दबदबा अछि। माथिलामे एकटा कहावत प्रचलित अछि -” मिथिलाकेँ भोजन तीन – कदली कब -कब मीन।”लोक कथामे कतौ मत्स्य सम्राट तऽ कतौ रूपवती मत्स्यगंधाक रूपमे छथि। वैज्ञानिक शोधक हिसाबसँ जखन दुनियामे कोनो जीव नहिं छल तखन अकशेरूकी माछ जलकेँ सबसँ पहिने अंइठ कएने छल। एकर पुष्टि भगवान विष्णु सेहो मत्स्यावतार लऽ कऽ कएने छलाह। जखन ओ बाढ़िसँ बचा कऽ सत्यव्रत मनुकेँ सुरक्षित स्थान पर पहँचेने छलाह। यैह कारण अछि कि महाभारतमे माछकेँ ब्रह्म आ पुराणमे विष्णुक दर्जा देल गेल छैन्ह।
मोहनजोदड़ोकेँ सभ्यताक समय सब देवताकेँ माछक रूपमे देखल जाइत छल। स्कन्द पुराणक मानु तऽ गंगा जखन एलीह तऽ माछ सेहो हुनकर संग स्वर्गसँ सीधे शिवजीक जटामे खसली।
किछु विशिष्ट माछक किस्म मिथिलामे – बुआरी, नैनी, भाकुर, रोहू, कबई, सिंह, मैन्ची, झिंगा आ मारा। मुदा आइ काल्हि अपन मिथिलामे सेहो बेसीतर आंध्राक माछ आ दक्षिणक राज्यसँ माछ आबय लागल अछि। माछ मिथिलाक संस्कृतिमे रचि-बसि गेल अछि। कहल गेल अछि कि सपनामे माछ देखलासँ शुभ समाचार अबैत अछि। माछक सपना देखयकेँ अर्थ अछि कि अहाँकेँ जल्दी ही किछु नीक खबर सुनय लेल भेटत। ई सब परंपरा मिथिलाक संस्कृतिमे माछक महत्वकेँ इंगित करैत अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली।