“सांस्कृतिक, धार्मिक, परंपरागत सद्भाव व सम्मानक पाबनि थिक मधुश्रावणी।”

533

— आभा झा।     

 

मिथिलांचलक पारंपरिक धार्मिक पाबनि अछि मधुश्रावणी। साओन मास शुरू होइत देरी मिथिलामे प्रसिद्ध लोकपर्व मधुश्रावणीक तैयारी शुरू भऽ जाइत अछि। एहि पाबनिमे मिथिलाक नवविवाहिता अपन सुहागक दीर्घायुक लेल बसिया फूलसँ माता गौरीक पूजा करैत छथि। एहि व्रतमे पूजाक एक दिन पहिने संध्या कालमे रंग-बिरंगक पुष्प, पत्र आदि एकत्रित करी कऽ राखि लेल जाइत अछि। जकरा अपन मिथिलामे फूल लोढ़नाइ कहल जाइत छैक। यैह फूल -पत्तीसँ भगवान भोलेनाथ माता पार्वती तथा नागवंश या विषहरीक विधिवत पूजा-अर्चना कएल जाइत अछि। एहि पाबनिमे पहिल आ अंतिम दिन विधि-विधानसँ शिव-पार्वतीक पूजा कएल जाइत अछि। एहि व्रतक दौरान मिथिलाक नवविवाहिता पूजाक एक दिन पूर्व ही अपन सखी-सहेलीक संग पारंपरिक लोकगीत गबैत खूब श्रृंगार कऽ बाग-बगीचासँ तरह-तरहकेँ पुष्प, पत्रकेँ अपन डालीमे सजा कऽ अनैत छथि आ भोरे अपन पतिक दीर्घायुक लेल ओहि फूलसँ माता पार्वतीक नागवंशक पूजा करैत छथि। एहि पाबनिमे मइटक मूर्ति , विषहरा, शिव-पार्वती बनाबैकेँ परंपरा अछि। कतेक ठाम बिना नोनक भोजन करयकेँ मान्यता अछि। एहि पाबनिमे महिला कथावाचकसँ कथा सनैत छथि।
मिथिलाक पारंपरिक रीति-रिवाजक अनुसार चलय वाला लोक देश-विदेश सब ठाम एहि व्रतकेँ करैत छथि। पूजा स्थल पर मैनाक पात पर विभिन्न प्रकारक आकृति बनाओल जाइत अछि। हरेक दिन अलग-अलग कथामे मैना पंचमी, विषहरी, बिहुला, मनसा, मंगला गौरी , पृथ्वी जन्म, समुद्र मंथन, सतीक कथा व्रतीकेँ सुनाओल जाइत अछि। मलेमास व्रतक दौरान नवविवाहिता सेंधा नोनक उपयोग कऽ सकैत छथि।
मधुश्रावणीक व्रत कथामे राजा श्रीकर आ हुनकर बेटीक कथा अछि। राजा श्रीकरकेँ बेटी छलथिन, जिनकर कुंडलीमे सौतिनक प्रताड़ना लिखल छलनि। ताहि दुवारे हुनकर भाई चंद्रकर हुनका जंगलकेँ भीतर गुप्त सुरंगमे रखैत छलथिन। सुवर्ण नामक राजा ( जे पहिनेसँ विवाहित छलाह ) हुनका राजकुमारीक पता चलैत छैन्ह। ओ हुनकासँ विवाह करैत छथिन, आ किछु दिन रहलाक बाद ओ वापस अपन राज्य चलि जाइत छथिन। सौतिनक षड्यंत्रसँ सुवर्ण मधुश्रावणीक व्रतक सामग्री
राजकुमारी तक नहिं पठा पबैत छथिन। एहि पर नाराज भऽ कऽ राजकुमारी पार्वतीसँ विनती करैत छथि कि पतिकेँ भेटला पर राजकुमारीक अपन आवाज चलि जेतेन। बहिनक विवाहसँ क्रोधित भऽ कऽ भाई खाद्य-सामग्र पठेनाइ बंद कऽ देलथिन। एहिसँ राजकुमारी आ हुनकर दासीकेँ कतेक दिन तक भुखले रहलाक बाद पोखरिक खुनाईकेँ काजमे मजूरी करय पड़ैत छनि। एक दिन राजाक नजरि हुनका पर पड़ैत छैन्ह, राजा हुनका चिन्ह लैत छथिन तखन सबटा भेद खुजैत अछि। राजा सौतिनकेँ मृत्युदंड दैत छथिन। पार्वतीक पूजासँ हुनकर वाणी वापस आबि जाइत छैन्ह आ ओ सुखी वैवाहिक जीवन जीबैत छथि।
पूजाक अंतिम दिन नब विवाहित जोड़ा पूजा करैत छथि।पति पत्नीक आँखिकेँ पानक पातसँ मूइन दैत छथिन। एकर बाद जरैत दीपक टेमीसँ नबकनियाँक ठेहुन पर दागल जाइत अछि। कहल जाइत अछि कि ठेहुन पर कनिको स्पर्श मात्रसँ प्यारकेँ गहिंरताक पता चलि जाइत अछि। माने ई ओहि तरहें नहिं दागल जाइत अछि, मुदा हल्का स्पर्शसँ पैघ फोंका भऽ जेनाइ पति-पत्नीक बीच असीम प्यारकेँ दर्शाबैत अछि। लोकगीतमे टेमी दागयकेँ प्रथा पर राम आ सीताकेँ मोन पाड़ल जाइत छैन्ह। एहि गीतकेँ सुनैत ई स्पष्ट देखाइ पड़ैत अछि कि ई प्रथा सीताजीक अग्निपरीक्षा प्रकरणसँ आयल अछि। ‘ आजु जनकपुर मंगल सखि ‘ गीतमे पंक्ति अछि –
भालरि जकाँ सीता दाइ थर-थर कांपथि
टेमी देल हरखित श्रीराम हे।
ई एहेन पाबनि अछि जे पबनैतिकेँ सोझे प्रकृतिसँ जोड़ैत अछि। हुनका ई संदेश दैत अछि जे सभ गाछ-बिरिछ पर्यावरणक लेल उपयोगी अछि। नवविवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी मिथिलाक मातृभाषा मैथलीक प्रति सेहो संवेदनशील बनबैत अछि। सांस्कृतिक, धार्मिक, परंपरागत सद्भाव व सम्मानक प्रतीक रूपमे आइयो मिथिलामे ई लोकपर्व जीवंत अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद