कनि मथू हे मैथिल

एतुके एकटा राजा निमि भेलथि जे एक बेर गलती सँ शापित भ’ मृत्यु केँ वरण कय लेलाक बाद पुनः जीवन स्वीकार नहि कयलनि। हुनके सन्तति राजा केँ उपाधि भेटलनि जनक मैथिल केर – जिनका लेल स्वयं कृष्ण कहलनि जे एहि पृथ्वी पर जे अबैत अछि से कर्मबन्धन सँ बन्हाइते टा अछि, धरि जनक समान कतेको मनुष्य एहनो भेलथि जिनका जिबिते मुक्त (मोक्ष प्राप्त) जीव मानल गेल छन्हि।
कालान्तर मे एहि भूखण्ड मे अनेकों वेदज्ञ विद्वान् विभिन्न दर्शनक उद्गाता सब भेलाह। न्याय, मीमांसा, सांख्य, वैशेषिक जेहेन चारि गोट एहि भूमि सँ भूसरित भेल। वेदान्त आ योग मात्र अन्यत्र भेल, परञ्च साधक षट्शास्त्री होइत रहलाह एहि मिथिला भूमि मे। वाचस्पति, मंडन, उदयनाचार्य आदिक प्रादुर्भाव एहि पवित्र स्थल मे भेल। आ नव्यन्यायक अनेकों ज्ञाता सर्वज्ञवादीक एतय कमी नहि रहल। बुद्ध सेहो बुद्धत्व पूर्व एहि मिथिलाक्षेत्र मे भ्रमण कय सिद्धिक दिशा मे बढ़ि पेलाह। महावीर जैन व अनेकों जैन तीर्थाङ्कर एहि ठाम अयलाह आ सिद्धि प्राप्त करैत विश्वप्रसिद्ध भेलथि।
अद्वैतवादक महान् सूत्रपातकर्त्ता आदिगुरु शंकराचार्य केर मत केँ मिथिलाक मर्मज्ञ पंडित मंडन मिश्र लग आबि समुचित विस्तार भेटलनि, ओ मंडन मिश्र पर हावी भेल रहथि अपन मत सँ तखनहि हुनक स्त्री भारती शंकराचार्य केँ अपन पतिक द्वैतवादक सिद्धान्त निरूपण लेल पहिने गृहस्थ बनबाक आ पति-पत्नीक संयोग सँ सृष्टिक उत्पत्ति, संरक्षण आ प्रलय धरिक विश्लेषण अति विलक्षण ढंग सँ करबाक-जनबाक बाट बतेलीह। कहल जाइछ जे एक मृत् शरीर मे सूक्ष्मरूप आदिगुरु प्रवेश करैत एहि सब बातक अनुभव कयलनि आ पुनः अद्वैतवाद व द्वैतवादक समुचित तुलनात्मक विश्लेषण सँ सुपरिचित भेलाह।
भवनाथ मिश्र अर्थात् अयाची एहि मिथिलाभूमिक ओ वीरपुत्र भेलथि जे आजीवन याचनाक विरूद्ध रहि मनुष्य केँ अपन आवश्यकता ओतबे रखबाक सन्देश देलनि जाहि सँ कर्म-अकर्म आ कर्तव्य-अकर्तव्य के पूर्ण ज्ञान निर्वाह करैत मनुष्य अपन जीवनगति सफल कय सकैत अछि, ओ निरूपित कयलनि। परञ्च, ओहो अयाची सँ हुनक स्त्री एक सन्तानक याचना करैत छथि आ तहिया अपन परमाधिपति परमेश्वर महादेव सँ पत्नीक याचनाक बात चर्चा मात्र होइछ कि भोलेनाथ-औढ़रदानी हुनका तुरन्त आकाशवाणी सुना दैत छथि जे हम स्वयं आयब एहि मिथिलाधाम मे अहाँक पुत्र बनिकय। ओ ‘शंकर मिश्र’ बनैत छथि जे ‘बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती, अपूर्ण पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम्’ कहि सम्पूर्ण राजदरबार केँ थर्रा दैत छथि।
बुद्धक शिष्य सब बहुते राजा-महाराजा सत्तासुख लेल बुद्धक उपदेश केँ तोड़ि-मरोड़ि ठीक आजुक लालूवाद-समाजवाद जेकाँ खोखला सामाजिक न्याय के हल्ला करैत वेद आ सनातन धर्म पर कुठाराघात करय लागल छलाह। सैकड़ों वर्ष धरि जातक कथा आ बौद्ध साहित्यक अनेकों खुराफाती दुष्प्रचार सँ एलिट्स व मास बीच बेवजह झगड़ा लगाकय राज्य संचालन भेल अछि सम्पूर्ण भारतवर्ष मे। आइ बुद्ध अपूज्य रहबाक सर्वथा यैह कारण थिक। परञ्च आदिगुरु शंकराचार्यक जन्म आ तत्कालीन मिथिला महान् मर्मज्ञ गुरु उदयनाचार्य सँ हुनक भेंट, बौद्ध साहित्यक खण्डन आ शास्त्रार्थक माध्यम सँ वेद व सनातन धर्मक पुनर्स्थापना – तेहेन गुरु केँ जखन जगन्नाथ (पुरी) जीक दर्शन लेल समय आ सीमा देखबैत पुरोहित समाज बाधा करैत छथि त अपन सिद्धिक बल सँ चारि के चारू दरबज्जा जगन्नाथजीक प्रभाव सँ स्वयं खुलि जेबाक अद्भुत दृष्टान्त – अरे! कतेक कहू! मिथिलाक चमत्कारी पुरुष सभक गाथा अनेक अछि।
लेकिन आइ कि भ’ गेल एहि मिथिला केँ? ई कियैक भेल अछि शिथिला? उचित मन्थन करय जाउ। सोचू, हम सब कोन मूल बात बिसरि रहल छी, कियैक रुष्ट छथि सिद्धिदात्री भगवती, अधिष्ठाता विष्णु कियैक रुष्ट छथि हमरा सब सँ? कतय गेलथि ‘मैथिल’ जनक? कि हमर बाप-पुरखा अतृप्त छथि? कि कुलदेवी रुष्ट छथि? कृपया मन्थन करू। मथू हे मैथिल!!
हरिः हरः!!