लेख
– संगीता मिश्र
टुटैत परिवार और समाजक भूमिका
प्रत्येक मनुष्य लेल अनुशासन आ सामाजिक मान-सम्मान लेल बनल नियम-कायदा पालन करब आवश्यक छैक। स्त्री लेल समाज बेसी बन्धन आ लाज-पर्दा आदिक विधान बनेने अछि। लेकिन समाज पर गोटेक सवाल अपनहि बनायल नियम के विपरीत जेबाक आरोप सेहो लगैत छैक। अपन जीवनक कठिन संघर्षपूर्ण दिन मे हम जे अनुभव कयलहुँ से बहुत तीत अछि। तथापि हम ई जहर तीत केँ अमृत बुझि अपने त पीबिते छी, आब लेख के मार्फत सँ अपन पाठक वर्ग धरि सेहो पहुँचाबय लागल छी। हमर मान्यता अछि जे जाहि जहर केँ पिला सँ लोक के जान-प्राण खतरा मे पड़ि जाइत छैक, परिस्थिति सँ लड़यवला लेल वैह जहर अमृत सेहो बनि सकैत अछि। पाठक लोकनि अपन प्रतिक्रिया जरूर दैत रहब से आग्रह।
आइ हम बात करब अपन मिथिला समाज मे टूटैत परिवार प्रति समाजक धारणा पर।
वैवाहिक जीवन एकटा विश्वास पर टिकल रहैत अछि। एक बेर विश्वास टूटि गेल त ई सम्बन्ध कमजोर हुए लगैत छैक, अन्त मे टुटियो जाइत छैक। तेँ विवाहित जीवन मे पति-पत्नी बीच परस्पर विश्वास आ समर्पण ईमानदार रहबाक चाही। जँ सम्बन्ध मधुर होइत छैक त जीवन सुखी आ समृद्ध भ’ जाइत छैक, मुदा सम्बन्ध खट्टा होइते ओ व्यक्ति सेहो टुटि जाइत छैक। कोनो विवाहित महिला लेल ई स्वीकार करब एकदम आसान नहि जे ओकर पति दोसर महिला सँ प्रेम मे फँसल अछि। यैह एकटा बात ओकरा कोर धरि तोड़ि दैत छैक। महिला लेल सब किछु छोड़ि पति संग बसलाक बाद पति यदि धोखा करय त फेर ओकरा लेल ई बुझनाय कठिन भ’ जाइत छैक जे आब आगू ओ कि करय।
दुर्भाग्य सँ जखन एहने अविश्वास आ धोखाक कारण परिवार टूटय लगैत छैक त नैहरा-सासुर आ सामाजिक परिवेश के लोक सभक भूमिका सेहो बड पैघ भ’ जाइत छैक। मुदा अफसोस, समाजो मे आइ-काल्हि देखबय मे ठोप-चानन आ भीतर मे कुटिलता-कपटताक भरमार लागल छैक। एक दिश लागत जे अहाँक टुटैत सम्बन्ध केँ बचबयवला भगवान् यैह छथि, मुदा दोसर दिश वैह व्यक्ति अपन निजी लोभ के पूरा होइत जँ धोखेबाज पति सँ होइत देखत त अहाँ पर ५० टा बन्दिश लगा देत।
चूँकि हमर पतिदेव बहुत प्रतिभावान लेखक भेलाह, हुनक कतेको रचना आ साहित्यकर्म अत्यन्त लोकप्रिय भेलनि – त स्वाभाविके रूप सँ हमर परिवार मे साहित्यकर्मी लोकनिक आबर-जात आ दखल बेसी होइत छल। प्रकाशनक कार्य सेहो कयलन्हि हमर पति, जाहि मे हम अपन बौद्धिकता सँ सब व्यवस्थापनक जिम्मेदारी सम्हारैत रही। स्टाफ, कम्प्यूटर, प्रूफ रीडिंग आदि सम्पूर्ण कार्य मे उल्लेख्य सहयोग हमर होइत रहनि। मुदा लिखल छल दुर्भाग्य से पाछू पड़ि गेल, प्रकाशनक कार्य हमर जिम्मा आ ओ गेला मैथिली पत्रकारिताक एक नव उपक्रम केँ सम्हारय आ ओतहि सँ आरम्भ भ’ गेल विवाहेतर सम्बन्ध जे हमर परिवार लेल जहर सिद्ध भेल।
पतिक दुष्प्रवृत्ति मे हुनक कतेको साहित्यकार मित्रक स’ह सेहो अनुभव कयलहुँ। अपन स्वार्थ पूरा करबाक लेल हमर पति केँ कतेको लोक बाहुपाश मे बन्हैत रहथि, हम प्रत्यक्ष देखी आ प्रतिकार करी त पतिक डाँट-फटकार आ पोल्हेबाक किछु शब्द मात्र भेटय आ चुप भ’ गेल करी। हमरा पास एहेन स्वार्थी लोकक बड पैघ लिस्ट अछि, कहय लेल समाजक लोक आ टुटैत सम्बन्ध केँ बचेबाक नैतिक जिम्मेदारी सम्हारि रहल छी आ दोसर दिश दुष्प्रवृत्ति मे स्वयं प्रोत्साहित कय रहल छी, एतय हमर सवाल अछि समाज सँ।
समाजक सामान्यजन के त बाते छोड़ू – ई तथाकथिक मैथिली साहित्यकार आ मिथिला समाज के हितचिन्तक जँ एहि तरहक घटिया प्रवृत्ति के काज करय त कहू ओहि साहित्यक दुर्दशा केहेन हेतैक?
देखबय लेल कंठीधारी, अपन पहुँच सँ पैघ टीक रखने, आ मानवता लेसो मात्र नहि! अपन स्वार्थ मे अन्धा अबैध सम्बन्ध केँ बढ़ावा दैत अपन स्वार्थ पूर्ति करू आ बिलखैत-कनैत स्त्री केँ निरीह बुझि रावण जेकाँ कहकहा लगबैत समाज केँ बरगलाबैत रहू। विडम्बना कहू जे मित्र व समाज व्यक्तिगत स्वार्थ व हित लेल अपन नैतिक जिम्मेदारी बिसरि जाइत अछि।
आइ हमर व्यथा सँ कतेको परिचित लोक केँ हम देखि रहल छी जे एक व्यभिचारी आ कामवासना सँ पीड़ित अपन पत्नी-सन्तान केँ परित्याग कय खुल्ला साँढ़ जेकाँ बोमियाइत व्यक्ति केँ कोना अपन बाहुपाश मे समेटिकय निर्लज्जता देखा रहल अछि आ केना समाजक आर लोक सब एहि बेहायापन केँ स्वीकार कय रहल छथि। एकर सीधा संकेत अछि जे आब मिथिला समाज मे विवाह आ परिवारक पवित्र संस्था के कोनो मोल नहि बचि गेल अछि। अहाँ स्वयं केँ साहित्यकार-लेखक कहू आ जहाँ मोन हो तहाँ व्यभिचार आ वासना भोग पूरा करय मे लागि जाउ। मुक्त यौन सम्बन्ध समाज मे बहुत रास कानूनी आ नैतिक जटिलता पैदा करैत छैक से सब ई लोक नहि बुझैत छथि। स्त्री-पुरुषक संबंध मे बहुत रास महीन सीमाक प्रावधान अछि से सब बिसरि गेल छथि। काल्हि स्वयं के सन्तान सीमाहीन कर्म-दुष्कर्म करतनि शायद तखन नजरि खुलतनि।
बेर पर नाम सहित हम सब बात लिखब-कहब। एखन समयोचित तथ्य मात्र सोझाँ राखि रहल छी। समाज मे नीक लोक सेहो छथि जे सम्बन्धक महत्व बुझैत छथि। हुनका लोकनिक इशारा आ अपनो जीवनक मुख्य उद्देश्य सन्तानक सभक शिक्षा-दीक्षा केँ प्राथमिकता मे रखैत अपन मूल कर्तव्य दिश उन्मुख छी एखन। लेकिन समय आओत आ एक-एक स्वार्थी आ घरफोड़ा लोक छद्म-साहित्यकार आ सामाजिक चिन्तक सभक भण्डाफोड़ अवश्ये टा करब। अस्तु! धन्यवाद, अपने सब लेख पढ़ि रहल छी आ बात गौर कय रहल छी। ईश्वर के न्याय सर्वोपरि होइत छैक। हम विश्वस्त छी जे हमरा न्याय जरूरे टा भेटत।