स्वर्गलोक मे जनक संग भेंट
– प्रवीण नारायण चौधरी
राति सपना देखलहुँ। स्वर्गलोक मे मिथिलाक राजा जनकजीक दरबार के दृश्य सोझाँ छल। राजा जनक अपन गद्दी पर विराजमान रहथि। दुनू तरफ मंत्री लोकनि आ विभिन्न सचिव सहित सभासदगण सब अपन-अपन आसन पर बैसल रहथि। राजाक सोझाँ फरियादी सब तरह-तरह के फरियाद लयकय पहुँचल छल। सिलसिलेवार सब फरियाद पर सभासद लोकनि राजा सँ चर्चा करैत छथि। राजाक हुकुम अनुसार सब फरियादीक फरियाद पर सुनबाई आ कार्रबाई भ’ रहल छैक। सब कियो सन्तुष्ट भ’ कय बहुत प्रसन्नता सँ दरबार सँ बहराइत अछि। भगवान सँ प्रार्थना करैत अछि जे एहने राजा जनम-जनम मे भेटय जे न्यायप्रिय हेबाक संग आत्मसन्तोष प्रदान करयवला होइथ। तखनहि दरबार मे हमहुँ हाजिरी लगबैत छी आ राजा सहित समस्त सभासद केँ प्रणाम अर्पित कय पुछैत छियनिः
हमः महाराज! कलियुग मे पृथ्वीलोक पर मिथिला कि एक्के टा जाति के बनिकय रहत?
जनकः (मंत्री शताननजी सँ) ई बालक कि कहय चाहि रहल छथि? एक्के टा जाति के त कोनो विधान ब्रह्मा बनेबे नहि कयलनि? तखन कलियुग मे मिथिला एक्के टा जाति के बनिकय कोना रहि सकत?
शताननः (राजाक जिज्ञासा बुझैत हमरा दिश तकैत) बालक प्रवीण! अहाँक जिज्ञासाक अर्थ महाराजा आ हमहुँ सब नहि बुझि पेलहुँ। कि पुछय चाहैत छी अहाँ?
हमः सरकार! हम फेसबुक पर मैथिली-मिथिलाक हितचिन्तन मे यदाकदा अपन विचार सब लिखैत रहैत छी आ अक्सरहाँ हमरा एहेन लोक भेटि गेल करैत छथि जे कहैत छथि ‘मिथिला माने बाभन’, ‘मैथिली माने बाभन’। तेँ, हमरा लागि रहल अछि जे एहि कलिकाल मे मिथिला-मैथिली कहीं एक्के गो जाति के बनिकय त नहि रहि जायत?
शताननः हम्म! आब अहाँक बात बुझय मे आयल। फेसबुक पर एहि तरहक चिन्तन आ क्रिया-प्रतिक्रिया विगत एक दशक सँ बहुत बढ़ि गेल अछि। ई नीक संकेत थिक। महाराजा जनकक राज ‘मिथिलाराज’ केर अर्थ युगों-युगों तक जिबित रहत से त बुझले बात थिक। परञ्च कलिकाल मे सब मनमाना गतिविधि मे लागल, भगवानहु पर सवाल उठेनिहार जँ मिथिला-मैथिली केँ एकल जाति सँ जोड़ि देलक त कोनो विस्मयकारी बात नहि। पुनः ओहि जाति के भीतर जायब आ देखब त बुझायत जे एकल जाति मे सेहो मात्र एक-आध प्रतिशत लोक ‘मिथिला राज्य’ के बात करता, बुझता। वास्तव मे १९४७ ई. मे भारत जहिया सँ स्वतंत्र भेल तहिये सँ नवका सामन्तवादक सामन्ती व्यवस्थाक राज चलि रहल अछि।
जनकः (शतानन केँ बीचे मे टोकैत) ई नवका सामन्तवाद सँ अहाँक तात्पर्य?
शताननः महाराज! अपने जे राज संचालनक सिद्धान्त बनेलहुँ ताहि मे समाजवाद के प्रायोगिक स्वरूप लागू छल। वर्तमान समय मे स्वतंत्र भारतक राज्य संचालन मे छद्म समाजवाद के चिन्तन हावी अछि। अपनेक पद्धति केँ पुरातन आ घिसीपिटी कहिकय खारिज कय देने छथि आ अपन डफली अपन राग बजेबाक नया राग तहत ‘सामाजिक न्याय’, ‘छुआछुत विरोध’, ‘समान अधिकार’, आदिक नव-नव सूत्र पर चलि रहल छथि। ई सब बात बहुलजन केँ सुनय मे बड नीक लगैत छन्हि, ओ सब अपन संख्याबल सँ ओहने नव सामन्त केँ अपन जनप्रतिनिधि बनबैत छथि, आ फेर ५ वर्ष धरि लिल्लोह रहि मुंह तकैत-तकैत आजादीक अमृत महोत्सव धरि मुंहे ताकि रहल छथि, धरि चुनाव अबिते फेर अपन जाति, अपन संख्या आ अपन जातीय अहंकार मे फँसि ई सब छोंछ मे फँसि गेल छथि महाराज। मिथिला-मिथिला दुइ-चारि-दस बाभन सब करैत छथि, तेँ ओ लोकनि मिथिला बाभनक थिक से कहिकय ‘लाति-जुत्ता खाइ छी भने रहय छी, बाभन सँ धरि दूर रहय छी’ मे लागल छथि महाराज।
जनकः अच्छा! त ई यवन आक्रान्ता आ ब्रिटिशराज वला डिवाइड एन्ड रूल पौलिसी पर चलनिहार लोक केँ अपन मैनजन बनाकय हमर मिथिला केँ बाभनक बपौती मानि कलियुग मे काला करतूत कय रहला अछि की?
हमः एकदम महाराज, यैह बाते छैक। तेँ हम आइ स्वर्गलोक मे अपने सँ ई जिज्ञासा राखल जे कलियुग मे मिथिला एक जातिके बनिकय रहि जेतय की?
जनकः आइ के सभा केँ विश्राम देल जाय, एहि विन्दु पर गम्भीरता सँ विचारिकय काल्हिक सभा मे चर्चाक निरन्तरता देल जायत। अहाँ काल्हि आउ।
भक् सँ निन टूटल हमर…! हम एखनहुँ छगुनता मे छी जे कोनो भूगोल आ कि भाषा भला एक जाति केर कोना भ’ सकैत अछि।
जानि नहि फेर सपना देखब आ दोसर दिन जनकजीक सभा मे पहुँचि सकब आ एकर समुचित समाधान भेटत कि नहि… ताबत अपनो सब प्रयास करू त जवाब ताकय के!
हरिः हरः!!