रामचरितमानस मोतीः हनुमान्‌जी द्वारा अशोक वाटिका मे विध्वंस आ तदोपरान्त

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

हनुमान्‌जी द्वारा अशोक वाटिका विध्वंस, अक्षय कुमार वध और मेघनाद द्वारा हनुमान्‌जी केँ नागपाश मे बान्हिकय सभा मे लय जायब

प्रसंग सुन्दरकाण्ड के आ अशोक वाटिका मे सीताजी संग हनुमान्‌जी केर भेंट आ प्रभु श्री रामजीक सन्देश सुना सीताजी केँ बोल-भरोस दय आशीर्वाद लेलाक बाद वाटिका मे फल सँ लदल गाछ-वृक्ष देखि भूख लगबाक बात कहि सीताजी सँ आज्ञा लेबाक – तदोपरान्तः

१. हनुमान्‌जी केँ बुद्धि आर बल मे निपुण देखि जानकीजी कहलखिन – जाउ। हे तात! श्री रघुनाथजीक चरण केँ हृदय मे धारण कयकेँ मीठ फल खाउ। हनुमान्‌जी सीताजी केँ सिर नमा चलि पड़लाह आ बगीचा मे प्रवेश कय गेलाह। ओ फलो खेलनि आ गाछ सब केँ तोड़य लगलाह।

२. ओतय बहुते रास योद्धा रखबार सब रहय। किछु रखबार केँ ओ मारि देलनि आ किछु रखबार जा कय रावण सँ गोहारलक – “हे नाथ! एकटा बड़ा भारी बन्दर आबि गेल अछि। ओ अशोक वाटिका केँ उजाड़ि देलक। फल सब तोड़िकय खा गेल आ गाछो सब केँ उखाड़ि देलक। रखबार सब केँ बड मारि मारलक, बहुतो केँ जमीन पर पटैक देलक, मारि देलक।”

३. ई सुनिते रावण तमसा गेल आ बानर केँ पकड़बाक लेल बहुते रास योद्धा सब केँ पठेलक। योद्धा सब केँ देखिते हनुमान्‌जी भारी गर्जना कयलनि। हनुमान्‌जी ओहि सब राक्षस रखबार सबकेँ मारि देलखिन। किछु जे अधमरा छल से सब चिकरैत रावण लग गेल। आब रावण अपन पुत्र अक्षयकुमार केँ पठेलक। ओहो असंख्य श्रेष्ठ योद्धा सब केँ संग लयकय चलल। ओकरा अबैत देखि हनुमान्‌जी एकटा गाछ हाथ मे लेलनि आ ओकरा खूब जोर सँ ललकारलनि। कनियेकाल मे ओकरा मारिकय हनुमान्‌जी महाध्वनि (बड जोर) सँ गर्जना कयलनि। ओ सेना मे सँ किछु केँ मारि देलनि आ किछु केँ रगड़ा-पटका देलनि, त किछु केँ पकड़ि-पकड़िकय माटि मे मिला देलनि। किछु जे बचल से फेर चिकरैत-भोकरैत भागिकय रावण लग गेल आ गोहार लगबैत बाजल – “हे प्रभु! बन्दर बड़ा भारी बलवान्‌ अछि, ओ केकरो पकड़ मे नहि आबि रहल अछि।”

४. पुत्र केर वध सुनि रावण आर बेसी क्रोधित भ’ उठल आ आब अपन जेठ पुत्र बलवान् मेघनाद केँ पठेलक। मेघनाद सँ रावण कहलक – “हे पुत्र! मारिहनि नहि, ओकरा बान्हिकय लेने आ। ओहि बन्दर केँ देखल जाय जे कतय के अछि।” इन्द्र केँ जितयवला अतुलनीय योद्धा मेघनाद चलि देलक। भाइ केर मारल जेबाक बात सुनि ओकरो भारी क्रोध आबि गेल छलैक।

५. हनुमान्‌जी देखलनि जे एहि बेर त बड़ा भयानक योद्धा आयल अछि, त ओ कटकटाकय गर्जना करैत ओकरा पर छुटि पड़लाह। एकटा खूब पैघ गाछ उखाड़ि ओहि सँ प्रहार करैत रावणपुत्र मेघनाद केँ रथविहीन कय देलनि। रथ तोड़िकय ओकरा नीचाँ पटकि देलनि। ओकरा संग आयल बड़-बड़ योद्धा सब छलैक तेकरो सब केँ पकड़ि-पकड़ि हनुमान्‌जी अपनहि शरीर सँ रगड़य लगलाह। ओकरा सब केँ मारिकय फेर मेघनाद संग लड़य लगलाह।

६. लड़ैत घड़ी एना बुझाइत छल मानू दुइ गजराज (श्रेष्ठ हाथी) भिड़ गेल हुए। हनुमान्‌जी ओकरा एक घूँसा मारिकय गाछ पर जा चढ़ि गेलाह। ओकरा क्षण भरि लेल मूर्च्छा आबि गेलैक। फेर उठिकय ओ नाना तरहक माया रचलक, मुदा पवन के पुत्र ओकरा सँ जितल नहि जाइत छथि। अन्त मे ओ ब्रह्मास्त्र केर संधान (प्रयोग) कयलक।

७. तखन हनुमान्‌जी मोन मे विचारलनि जे जँ हम ब्रह्मास्त्र केँ नहि मानैत छी त ओकर अपार महिमा मेटा जायत। मेघनाद हनुमान्‌जी केँ ब्रह्मबाण मारलक, जे लगैत देरी ओ गाछ जेकाँ नीचाँ खसि पड़लाह, खसितो-खसितो ओ बहुते रास सेना सब केँ मारि देलनि। मेघनाद देखलक जे हनुमान्‌जी मूर्छित भ’ गेल छथि तखन ओ हुनका नागपाश मे बान्हिकय लय गेल।

८. शिवजी कहैत छथि – “हे भवानी सुनू! जिनकर नाम जपिकय ज्ञानी (विवेकी) मनुष्य संसार (जन्म-मरण) केर बंधन केँ काटि दैत अछि, हुनकर दूत कतहु बंधन मे आबि सकैत अछि की! मुदा प्रभुक कार्य लेल हनुमान्‌जी स्वयं अपना केँ बन्हा लेलनि।”

९. बन्दर केँ बान्हल जेबाक बात सुनिकय राक्षस सब दौड़ि पड़ल, तमाशा देखबाक लेल सब सभा मे आबि गेल। हनुमान्‌जी जाकय रावणक सभा देखलनि। ओहि सभाक अति प्रभुता (ऐश्वर्य) बारे किछु कहल नहि जाइत अछि। देवता आर दिक्पाल सब हाथ जोड़ने बड़ी नम्रताक संग भयभीत अवस्था मे रावणक भौं दिश ताकि रहल छथि। सब कियो रावणहि केर रुइख देखि रहल छथि। ओकर एहेन प्रताप देखि हनुमान्‌जीक मोन मे कनिकबो डर नहि भेलनि। ओ एना निःशंक ठाढ़ रहथि जेना साँप सभक समूह मे गरुड़ निःशंक-निर्भय रहैत छथि।

हरिः हरः!!