विशेष सम्पादकीय
आम चुनाव २०२४ मे मिथिलावादीक भूमिका
आजादीक ७५ वर्ष बीतल। अमृत महोत्सव मनि रहल अछि। देश-विदेश घुमि-घुमिकय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत आ भारतीयताक सन्दर्भ मे ‘आजादीक अमृत महोत्सव’ पर जोरदार वक्तव्य सब दय रहल छथि। अपन ९ वर्षक राजकाज आ भारतीय अर्थतंत्र केँ विश्वस्तर पर पाँचम शक्तिशाली अर्थतंत्र बनेबाक विन्दु सँ लैत जनधन योजना, पेयजल योजना, स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत मिशन, गरीबी स्तर सँ नीचाँ रहि रहल लगभग ७०% आबादी लेल मुफ्त अनाज उपलब्ध करेबाक कार्य, रोजगार अभिवृद्धि, मेक इन इंडिया आ स्टार्ट अप जेहेन स्वरोजगार आ उद्यम-उद्योगक विकास, कृषि बीमा, किसान लेल सरकारी पेन्सन, सड़क विस्तार, ऊर्जा क्षेत्र मे उल्लेखनीय विस्तार आ उत्पादन, आदिक संग सरकारी योजना मे पारदर्शिता आ कर प्रणाली मे सुधार जेहेन कतेको रास महत्वपूर्ण निर्णय सब पर वर्तमान सरकारक अनेकों उपलब्धि गनबैत नहि थकैत छथि। यथार्थता सेहो यैह छैक जे कोरोना महामारी सँ त्रस्त वैश्विक अर्थतंत्र आ अत्यन्त शिथिल बाजार व्यवस्था मे भारत के उपलब्धिमूलक आर्थिक प्रगति आ विश्वक सर्वाधिक जनसंख्या केँ सम्हारैत अनेकन चुनौती व कठिनाई सभक समाधान करैत आइ भारत विकासशील राष्ट्र सँ विकसित राष्ट्र हेबाक दावी राखि रहल अछि। लेकिन आर्थिक रूप सँ पिछड़ल कतेको रास क्षेत्र आर बेसी पिछड़बाक रेकर्ड सेहो एहि भारत के कतिपय राज्य आ क्षेत्र विशेष मे देखल जा रहल छैक, जाहि मे ‘मिथिला’ क्षेत्र बिहार प्रान्त मे स्पष्ट रूप सँ अति-अति-पिछड़ा क्षेत्र के रूप मे स्पष्टे अछि। आइ आधा सँ बेसी आबादी रोजी-रोटी आ नगदी आय लेल पलायन करैत अछि एहि क्षेत्र सँ। एहि क्षेत्रक आर्थिक विकासक जेहो किछु पूर्वाधार सदा-सनातन व प्राचीनकाल सँ आबि रहल छल सेहो सब ध्वस्त भ’ चुकल अछि। ताहि पर सँ बिहार के जातिवाद आधारित राजनीति आ तेकर दुष्परिणाम विखन्डित समाज – एतय नहिये कोनो सामुदायिक स्तरक कृषि विकसित भ’ सकल अछि, नहिये कोनो तरहक पैघ स्तरक सहकारी संस्था आ नहिये कोनो नव उद्योग; जेहो चीनी, पेपर, खादी व अन्य वस्त्र (कपड़ा) उद्योग सब एतय छल सेहो सब लगभग बर्बाद भ’ गेल आ ९०% सँ अधिक औद्योगिक पूर्वाधार बन्द भ’ चुकल अछि। वर्तमान बिहार सरकारक औद्योगिक नीति मे उल्लेख्य परिवर्तनक बादो मिथिलाक्षेत्र मे कोनो पैघ स्तर के उद्योगक स्थापना नहि कयल जा सकल, नहिये कोनो वृहत् स्तर के निजी उद्योग लागि सकल जाहि सँ उत्पादनशीलता मे वृद्धि अबितय, क्षेत्रक लोक केँ अपनहि क्षेत्र मे रोजगार भेटि पबितय आ पलायनक मारि सँ थोड़ो-बहुत एकरा बचायल जा सकितय। बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, दरभंगा, पूर्णिया आदि विभिन्न क्षेत्र मे रहल औद्योगिक इकाइ सब लगभग बीमार भ’ बन्द भ’ गेल या फेर बन्द होयबाक कगार पर पहुँचि चुकल अछि। बिहार मे प्रचलित कृषि आधारित उद्योग सभक हाल सेहो बड नीक नहि कहल जा सकैत अछि, कारण सरकारक नीति केवल कागजे टा पर स्वच्छ-स्वस्थ देखाइछ, धरातल पर एकरा लागू करबाक वास्ते जे निर्भीकता लगानीकर्ता मध्य देखेबाक चाही से नहि देखाइत अछि। उद्योगक नाम पर अधिगृहित कृषि योग्य भूमिक आबन्टन भू-माफिया आ पूँजीपतिक हाथ सँ भ्रष्टाचारक सीमा नाँघि कय देल गेल, लेकिन ओहि भूमि पर उत्पादकता कतेक बढ़ल, रोजगार मे वृद्धि कतेक भेल, राजश्व व सरकारी कर सँ कतेक आयार्जन बढ़ल, एहि सब बातक हिसाब-किताब एखन तक केकरो पास नहि भेटत। हर तरहें यैह बुझाइत अछि जे बिहार मे सरकार गठन लेल मात्र कथित तौर पर सामाजिक न्याय, बाभन-सोलकन, सामन्त-रैय्यत, अगड़ा-पिछड़ा आ दलित-महादलित के नाम पर क्रान्तिक आवाज टा उठाउ आ लोकक मत पाबिकय जनप्रतिनिधि निर्वाचित होउ, फेर ५ वर्षक कार्यकाल मे सरकारी योजना आ ताहि लेल आबन्टित राशि केँ जमिकय लुटू। मिथिला लेल आजादीक अमृत महोत्सव यैह सफेदपोश राजनीतिक आ दलाल पूँजीपति धरि सीमित रहि गेल अछि। आम लोक केँ अमृतक स्वाद कोनो तरहें भेटि पबितय, से मात्र आ मात्र घरक जबान-जहान लोक बाहर जाय, अपन देह गलाकय किछु टका कमाबय आ गाम आबिकय छहर-महर तीन पहर करैत आजादीक अमृत महोत्सव अपनहि अन्दाज मे मनाबय, बस यैह टा रहि गेल अछि।
मिथिला राज्य अलग भेने बिना कल्याण नहि
विगत एक दशक सँ ‘मिथिलावाद’ अपन पैर पसारि रहल अछि। आमलोक के मन-मस्तिष्क मे बिहार आ बिहारी राजनीति सँ कोनो आशा नहि रहि गेल अछि। बामोश्किल १% लोक ‘मिथिला राज्य’ अलगे भेने कल्याण होयत, कम सँ कम अपन क्षेत्रक मुद्दा पर सरकारी योजना बनायल जायत आ बजट के खर्च सँ वर्तमान बिहार सँ भिन्न अलग तरहक विकास जरूर होयत, ई समझ विकसित भेल अछि। खुदरा-खुदरी गोटेक समूह ‘मिथिला राज्य हमर जन्मसिद्ध अधिकार’ कहिकय बोलेरो-स्कोर्पियो गाड़ी सँ प्रचार करैत देखेला अछि। रथयात्रा, जनजागरण यात्रा, जनसभा, विचार गोष्ठी, चिन्तन शिविर आदि यदाकदा मिथिला राज्य लेल भेल अछि। दिल्ली, पटना, दरभंगा, अहमदाबाद, बंगलुरु, गुआहाटी, व अन्यान्य जगह सब पर मिथिलावादी विमर्श सब खूब भेल अछि एहि बीच मे। गत वर्ष २०२२ के आरम्भहि मे मिथिला राज्य निर्माण सेना द्वारा २०२१ सँ आरम्भ ‘मिथिला जगजागरण यात्रा’क दोसर चरण द्वारा ‘जनगणना मे मैथिली, संविधान मे मिथिला राज्य’ अभियान चलायल गेल। कोरोना महामारीक कारण जनगणना मे भेल देरी प्रति लोक मे जागरुकता आनि अपन मातृभाषा मैथिली लिखेबाक आह्वानक संग संविधान मे मिथिला राज्य स्थापना लेल अपन जनप्रतिनिधि चयन करबाक आग्रह कयल गेल छल। सहरसा, मधेपुरा, सुपौल आ झंझारपुर (मधुबनी अन्तर्गतक एक लोकसभा क्षेत्र) केर ५ दिवसीय भ्रमण मे जनसम्पर्कक माध्यम सँ ई जनजागरण अभियान चलायल गेल छल। लोकक प्रतिक्रिया यैह रहैक जे परम्परावादी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय राजनीतिक दल सभक विकल्प मिथिलाक्षेत्र मे जरूरी अछि। एहि लेल मिथिलावादी राजनीतिक दल संसदीय चुनाव मे आगू आबथि आ चुनाव लड़थि। जा धरि मिथिलावादी राजनीतिक शक्तिक रूप मे जनप्रतिनिधि बनि दिल्ली-पटना नहि पहुँचता, ई मिथिला राज्य मात्र एकटा कागजी नारा बनिकय रहि जायत। अतः निर्णीत स्वर मे मिथिलावादी राजनीतिक शक्तिक विकल्प उपलब्ध करेबाक वचनबद्धता व्यक्त कयल गेल छल।
त कि २०२४ के आम निर्वाचन लेल तैयार छथि मिथिलावादी?
आब यैह सवाल पर चर्चा करबाक बेर भेल। एक दिश राष्ट्रीय राजनीतिक शक्ति सब चुनावी गठबन्धन लेल जोर-तोड़ करब आरम्भ कय देलनि। विपक्षी एकता लेल महागठबन्धन पर बिहारहि के पटना मे एकटा महत्वपूर्ण बैसार सम्पन्न भ’ गेल अछि। लेकिन मिथिलावादी शक्ति ऐन वक्त मे गुम छथि। हिनका सभक चुप्पीक दुइ कारण अछि। पहिल, ई लोकनि विगत के अनुभव सँ बहुत बेसी सकपकायल छथि, डरायल छथि। हिनका पास नहिये पूँजी छन्हि आ न तेहेन जनशक्ति जाहि के बल सँ लोकक मन-मस्तिष्क केँ मिथिलावादक पक्ष मे आनि सकता। दोसर, मिथिलावादी अधिकांश लोक राजनीतिक तौर पर अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल या क्षेत्रीय राजनीतिक दल के पिठ्ठू बनिकय अपन राजनीतिक महात्वाकांक्षा पूरा करबाक सपना देखैत छथि। ई सब धोबीक कुकूर जेकाँ न घर के रहैत छथि आ न घाटे पहुँचि पबैत छथि। हिनका सब सँ बहुत नीक ओ पिठ्ठू सब सफलता हासिल करैत छथि जे राजनीतिक दलाली आ पूँजीपति दलाल सभक संग कमीशनखोरी करैत अपन जेबी मे माल भरिकय चुनाव मे खूब जमिकय खर्च करैत छथि आ चुनाव पाबि निर्वाचित भ’ पद व प्रतिष्ठा संग मंत्रीमंडलक सदस्य आदि सेहो बनि गेल करैत छथि। जनताक हित त एहि तरहक पिठ्ठू सब सँ नहिये टा होयत, हँ, जनता सेहो टका लयकय वोट करता, जाति देखिकय वोट करता आ धार्मिक उन्माद मे फँसिकय वोट करता त एहने नेता सब चुनता आ जिनगी भरि अपने आ अपन क्षेत्र केँ झाम बूड़य लेल बाध्य करता।
मिथिलावादी शक्ति केँ एकजुटता संग राजनीतिक विकल्प तैयार करबाक समय के मांग
उपरोक्त कमी-कमजोरी आ समस्या सभक एकमुष्ट निदान अछि ‘मिथिलावादी राजनीतिक शक्ति केँ एकजुट भ राष्ट्रीय राजनीतिक दल व क्षेत्रीय राजनीतिक दल सँ स्वस्थ चुनावी प्रतिस्पर्धा’। मिथिलावादी शक्ति जे छिटकल-फुटकल अवस्था मे अपन समय, साधन आ सोच केँ मिथिलाक विकास लेल लगा रहल छथि से प्रभावहीन भेल करैत अछि। यैह शक्ति सब जँ एकजुट भ’ जाइथ, सब कियो अपन-अपन समूह लेल निश्चित लक्ष्य आ चुनावी प्रतिस्पर्धाक तकनीकी व्यवस्थापन मे लागि जाइथ त सफलता बहुत बेसी दूर नहि अछि। लोकक मोन आजिज भ’ चुकल छैक विद्यमान राजनीतिक शक्ति आ सूत्र सब सँ। जाति, धर्म, वर्ग आदिक नाम पर बड भेल राजनीति, आब अपन क्षेत्र, भाषा, भेष, भूषण आ भूमिक समग्र विकास लेल आ सब सँ बेसी लोकपलायन केँ बिना विलम्ब रोकिकय अपनहि क्षेत्र मे रोजी-रोजगार आ समृद्ध कृषि पैदावार लेल राजनीतिक शक्ति केँ समर्थन दैत ‘मिथिला राज्य’ निर्माण करैत सदा-सनातन पहिचान केँ आबाद करैत आर्थिक समृद्धिक बाट खोलथि एतुका लोक। एहि लेल आब समयक मांग केँ बुझैत सब मिथिलावादी शक्ति एकजुटता देखबैत शीघ्रातिशीघ्र एक गठबन्धन तैयार करथि। चुनावी कोष संकलन आ संगठन विस्तार के कार्य यथाशीघ्र पूरा करथि। वर्तमान बयमान राजनीतिक शक्ति आ सूत्र केँ भण्डाफोड़ करैत मजबूत उम्मीदवार उतारथि। ठोस घोषणापत्र आ व्यवहार मे ओ सब केना लागू होयत ताहि सब लेल एकटा रणनीति तैयार करथि। आ ई सब बिना कोनो बेसी विलम्ब कएने करथि। नहि त कागजी नारा मात्र मे मिथिला राज्य केँ जियेबाक काज होइत रहत जाहि सँ आमलोक मे निराशा आरो बढ़त, लोक असहाय आ निरीह बनि वैह शक्ति मे सँ प्रतिनिधि चयन करत आ प्रगतिक नाम पर ढ़ाकक तीन पात वला खेल होयत। मिथिलावादी शक्ति एहि बात केँ आत्मसात करैत ईमानदारिता साथ आगू आबथि।
२०२४ के आम निर्वाचन मे मिथिलावादी शक्तिक उम्मीदवार प्रथमतः निर्वाचित माननीय संसद सदस्य बनबाक लक्ष्य राखथि, कम सँ कम हुनका द्वारा प्राप्त मत के संख्या एतबा जरूर हो जे ई परम्परावादी-यथास्थितिवादी बिहारी राजनीतिक दल या राष्ट्रीय राजनीतिक दल सभक उम्मीदवार लोकनिक बाट केँ सहज नहि रहय दैक। जतबे मत हासिल करब ओ अन्य उम्मीदवारक उम्मीद केँ जरूर प्रभावित करय आ ओकरा सब केँ ई अनुभूति कराबय जे आब ओ दिन आ सत्ताक सुख नहि रहत यदि मिथिलावादक मांग पर अहाँ गौर नहि करब, बिहारक उपेक्षा आ उत्पीड़न विरूद्ध अहाँ या अहाँक समर्थित राजनीतिक दल ध्यान नहि देत त लोक अहाँक पक्ष मे मतदान नहि करत। बाहुबल आ मनी पावर सँ वोट कीनबो करब त मिथिलावादक मुद्दा केँ समर्थन करनिहारक वोट अहाँक सबटा सपना चकनाचुर कय देत। बस, एहि तैयारीक संग २०२४ के चुनावी मैदान मे कम सँ कम १० टा सीट पर जीतबाक आ अन्य सीट पर प्रभावित कय केँ यथास्थितिवादीक समीकरण बिगाड़बाक काज मिथिलावादी केँ करय पड़त। एकर तैयारी मे आब कोनो विलम्ब नहि होयबाक चाही।
हरिः हरः!!