स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
हनुमान्-विभीषण संवाद
१. ओ महल श्री रामजीक आयुध (धनुष-बाण) केर चिह्न सँ अंकित छल। ओ एतेक शोभनीय छल जे एकर शोभाक वर्णन शब्द मे नहि कयल जा सकैछ। ओतय नव-नव तुलसीक वृक्ष-समूह सब देखि कपिराज श्री हनुमान्जी बहुत हर्षित भेलाह। “लंका त राक्षस सभक समूह केर निवास स्थान थिक। एतय सज्जन (साधु पुरुष) केर निवास कतय?” हनुमान्जी मोन मे एहि तरहें तर्क करय लगलाह।
२. ताहि समय विभीषणजी जगलाह। ओ राम नाम केर स्मरण (उच्चारण) कयलनि। हनमान्जी हुनका सज्जन पुरुष जनलनि आ हृदय मे बहुत हर्षित भेलाह। हनुमान्जी विचार कयलनि जे हिनका सँ हठपूर्वक (अपनहि सँ जाकय) परिचय करब, कियैक तँ साधु सँ कार्यक हानि नहि होइत छैक, प्रत्युत लाभे टा होइत छैक।
३. ब्राह्मणक रूप धयकय हनुमान्जी हुनका आवाज देलखिन, शोर पाड़लखिन। सुनिते विभीषणजी उठिकय ओतय आबि गेलाह। प्रणाम कयकेँ कुशल पुछलनि आ कहलनि जे हे ब्राह्मणदेव! अपन कथा (अपन अयबाक विषय मे) बुझाकय कहू। कि अहाँ हरिभक्त मे सँ कियो छी? कियैक तँ अहाँ केँ देखिकय हमर हृदय मे अत्यधिक प्रेम उमड़ि रहल अछि। आ कि अहाँ दीन सब सँ प्रेम करयवला स्वयं श्री रामेजी छी जे हमरा बड़भागी बनेबाक लेल घरे-बैसल दर्शन दयकय कृतार्थ करय आयल छी?
४. ताहिपर हनुमान्जी श्री रामचन्द्रजीक सबटा कथा कहिकय अपन नाम बतेलखिन। सुनिते देरी दुनू गोटेक शरीर पुलकित भ’ गेलनि आ श्री रामजीक गुण समूह सभक स्मरण कयकेँ दुनू गोटेक मोन प्रेम आ आनन्द मे मग्न भ’ गेलनि।
५. विभीषणजी कहलखिन – हे पवनपुत्र! हमर रहनाय सुनू। हम एतय ओहिना रहैत छी जेना दाँत सभक बीच मे बेचारी जीभ रहैत रहैत अछि। हे तात! हमरा अनाथ जानि सूर्यकुल केर नाथ श्री रामचन्द्रजी कि कहियो हमरा उपर कृपा करता? हमर तामसी (राक्षस) शरीर भेला सँ साधन त कोनो बनैत नहि अछि आ न मोन मे श्री रामचन्द्रजीक चरणकमल मे प्रेमे अछि, परन्तु हे हनुमान्! आब हमरा विश्वास भ’ गेल जे श्री रामजीक हमरा पर कृपा अछि, कियैक तँ हरिक कृपा बिना सन्त नहि भेटैत छथि। जेँ श्री रघुवीर कृपा कयलनि अछि तेँ अपने हमरा हठ कयकेँ (अपने आप) दर्शन देलहुँ अछि।
६. हनुमान्जी कहलखिन – हे विभीषणजी! सुनल जाउ! प्रभुक यैह रीति छन्हि जे ओ सेवक पर सदिखन प्रेम कयल करैत छथि। भला कहू! हमहीं कोन बड़का कुलीन छी? जाति के चंचल बानर छी आ सब तरहें नीच छी, प्रातःकाल जे हमरा सभक (बानरक) नाम लय लियए त ओहि दिन भोजनो नहि भेटतय। हे सखा! सुनू! हम एहेन अधम छी, मुदा श्री रामचन्द्रजी त हमरो उपर कृपे टा कयलनि।
७. भगवान् केर गुण सभक स्मरण कयकेँ हनुमान्जीक दुनू आँखि सँ प्रेमाश्रुक नोर बहय लगलनि। जे ई सब बात जानितो एहेन स्वामी श्री रघुनाथजी केँ बिसराकय विषय सभक पाछू भटकैत फिरैत अछि, ओ दुःखी कियैक नहि होयत? एहि तरहें श्री रामजीक गुण समूह सब केँ कहैत ओ अनिर्वचनीय (परम) शान्ति प्राप्त कयलनि। तखन विभीषणजी, श्री जानकीजी जाहि प्रकारे ओतय लंका मे रहैत छलीह, से सब कथा कहलखिन। फेर हनुमान्जी कहलखिन – हे भाइ सुनू! हम जानकी माता केँ देखय चाहैत छी।
हरिः हरः!!