हिन्दी फिल्म ‘आदिपुरुष’ आ लोक आपत्ति
(हमर दू टूक विचार)
एखन जहिं-तहिं एक्केटा चर्चा अछि – ‘आदिपुरुष’ मे रामायणक स्वरूप बिगाड़िकय मनोरंजनक बदला आस्थावानक आस्था केँ आवेशित करयवला अछि। एहि फिल्म मे श्रीराम आ श्रीसीताक स्वरूप व प्रस्तुति मे सेहो कय गोट बात लोकमानस मे स्थापित स्वरूप के विपरीत अछि। आदि।
हमरा मोन पड़ैत छथि बुद्धू भाइ, ग्राम देवडीहा, जिला धनुषा, नेपाल। बुद्धू भाइ रामायण पर बहुत रास फकड़ा गढ़लनि। ओ लोक सब केँ रामायण अपना अन्दाज मे सुनबथि। हमर विवाह १९९८ ई. मे भेल छल आ ताहि समय पहिल बेर हम सुनलहुँ त हमरा हुनकर रामायण पर आधारित चउल ओतेक पसिन नहि पड़ल। जखन कि हुनकर रामायण सुनिकय लोक सब कुर्कुट भ’ कय हँसैत छल। आब जेना उदाहरण स्वरूप – जखन फुलबारी मे श्रीरामचन्द्रजी जानकीजी केँ पहिल बेर देखलखिन्ह आ हुनका जानकी संग नयनाचार भेलन्हि, ताहि पर लखनजी केँ पात्र बनाकय बुद्धू भाइ कहल करथिन – लड़ाइ ल’ अँखिया हो लौन्डे राजा…. – हिन्दीक ई चर्चित गीत गाबिकय लोकक मनोरंजन करथिन। तहिना, आर-आर प्रसंग सब केँ बक्रोक्ति सँ अलंकृत कय ओ लोक सब केँ हँसेबाक काज कयल करथिन। हुनकर उद्देश्य श्रीराम व श्रीसीताक मानुसिक लीला या ऐश्वर्य-चमत्कार आदि सँ लोकमानस मे आध्यात्मिक उन्नतिक सन्देश प्रसार नहि रहनि, बल्कि लोकचर्चित रामायण के आधार पर अपन प्रहसन सँ लोकरंजना मात्र उद्देश्य रहनि।
अहाँ सब कतेको गोटे ‘रामलीला’ देखने होयब। मिथिलाक गाम-ठाम पर महीनों धरि रंगमंच के माध्यम सँ रंगकर्मी सब केँ श्रीराम व श्रीसीता सहित रामायणक अन्य पात्र बना अपना हिसाब सँ संवादक गढ़नि कय ‘रामलीला’ प्रस्तुत कयल जाइत छल। अलग-अलग रामलीला टीम के अलग-अलग संवादक गढ़नि! बीच मे ‘जोकर’ (हास्य कलाकार) सब के मार्फत लोक सब केँ हँसेबाक काज सेहो एहि रामलीला मे भेल करैक। लोकमानस मे रामायणक सन्देश पहुँचेबाक एकमात्र उद्देश्य निहित रहितो बीच-बीच मे लोकरंजना करबाक एकटा मंचीय शैली होइक, से हमरा बुझा रहल अछि। बाद मे त एहि रामलीलाक टोली सब मे ‘छकड़बाजी’ (लौन्डा नाच) के टोली द्वारा फिल्मी गीत सेहो गबबैत-नचबैत देखल गेल। ताहि मे जोकरक जोकरइ आ १ टका, २ टका, ५ टका के पुरस्कार पर ‘मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ’ कहिकय टका देनिहार दिश ओहि लौन्डारूपी छोकड़ी (छकड़बाजीक नर्तकी) केँ बड़ा अदा सँ डाँर्ह लचकाबैत सेहो देखल गेल। कहबाक तात्पर्य यैह जे ‘मूल उद्देश्य श्रीसीताराम चरितगान’ मार्फत रामायणक मूल सन्देशक प्रसार आ तेकरा संग-संग कलाकार सभक वास्ते रोटी-कपड़ा-मकानक आर्जन-निर्वहन केर माध्यम छल रामलीला।
ई ‘आदिपुरुष’ बिल्कुल वैह ‘बुद्धू भाइ के प्रहसनरूपी रामायण’ आ ‘रामलीलाक अलग-अलग संवादक गढ़नि संग बीच-बीच मे छकड़बाजी के लौन्डा नाच’ जेकाँ सिर्फ फिल्मक दर्शक सँ टका असूली लेल बनायल गेल फिल्म थिक, ताहि सँ बेसी किछु नहि।
बुद्धू भाइ के प्रहसन आ रामलीलाक ओ लोकरंजक प्रस्तुति – दुनू के दिन लदि गेल। बुद्धू भाइ बूढ़ भ’ गेलथि, गाम सँ परदेश जाय पड़ि गेलनि आ आइ दिल्ली मे लाखों भक्त-श्रद्धालू केँ भोलेनाथक भक्तिक महिमा उपदेश करैत छथि। लोकहित मे सोचैत छथि। रामलीला सेहो विलुप्त भ’ गेल। लौन्डा नाच सेहो समाप्त। आब त लौन्डी सब अपने नाचय लेल तैयार, सेहो अश्लील आ फूहड़ गीत-संगीत पर लौन्डा सब केँ धरती सँ ३-३ हाथ कुदाबय वला शैली मे….! आर, आब चलि रहल अछि ‘रील’, ‘यूट्यूब पर लोकरंजना’, ‘सामाजिक संजाल पर लाइव’, आदि। एहेन अवस्था मे ‘आदिपुरुष’ जेहेन फिल्म अपन टका कमेबाक उद्देश्य सँ लोकरंजनाक अतिरंजना मे फूहड़ संवाद, फूहड़ साज-सज्जा (मेक-अप), लोकमानस केँ भड़काबय वला दृश्य परिकल्पना आदिक सहारे भले करोड़ों टका कमा लियए, लेकिन ई ‘रामचरितमानस’ आ श्रीसीतारामजीक चरित्र केँ बदनाम करबाक, सनातन धर्म केर तौहीनी आदिक लक्ष्य किन्नहुं हासिल नहि कय सकत। एखन जे लोक भड़कल अछि, ओ एहि बातक ठोस प्रमाण अछि जे ‘सीताराम’ कतेक जिबन्त आ सनातन रूप सँ लोकमानस मे सर्वोच्च सम्मानक भावरूप मे स्थापित छथि।
एकर अतिरिक्त कोनो खास विन्दु पर, संवाद पर, दावी पर या आन कोनो फिल्मी बात पर चर्चा करब हमरा शोभा नहि देत। शायद अहुँ केँ नहि दियए! रामचरितमानस त हमरा लेल ज्ञानक अथाह महासागर छी आ हम नित्य किछु न किछु मोती चुनैत रहैत छी। बस, हमर अपन श्रद्धा आ भावनात्मक समर्पण बनल रहबाक चाही, गलत चीज नजरि पर पड़ियो जाय त पुनः श्रीसीताराम-श्रीसीताराम करैत हम स्वयं केँ निर्मल बनाबी।
हरिः हरः!!