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दशकों सँ लाखों युवा केँ अनागरिक बनेबाक खतरनाक राजनीति आ दुष्परिणाम

नेपाल मे अनागरिक के पीड़ा

विगत १६ वर्ष सँ नेपाल मे नागरिकता के नाम पर अनेकन राजनीति सँ लाखों नागरिक पीड़ित अछि । कहियो जन्मसिद्ध नागरिकता के वितरण मे विवाद सँ, कहियो जन्मसिद्ध आ एकल महिलाक सन्तान केँ नागरिकता के किसिम सँ, कहियो वैवाहिक अंगीकृत नागरिक केँ कतेक दिन धरि बसोवास कयला उपरान्त नागरिकता देल जाय ताहि पर… आदि अनेकों विवादक स्थिति आ राजनीति सब खूब जोर पर अछि एतय ।

सब सँ पैघ समस्या छैक नागरिकताविहीन सन्तान जे १६ वर्ष पूरा कय युवावस्था मे पहुँचि गेल छैक आ आइ कतेको वर्ष सँ ओकरा अनागरिक बनाकय बेरोजगार-बेकार बनि जिबिते मरणासन्न अवस्था मे पहुँचायल जेबाक खतरनाक नीयत के राजनीति कयल जा रहल छैक । राजनीति त छहिये, न्यायनीति (न्यायपालिका) मे सेहो अनागरिक के पीड़ा प्रति कोनो संवेदनशीलता नहि रहबाक आ कार्यपालिका के हाथ मे सब आधार रहितो जानि-बुझिकय लाखों युवा केँ अनागरिक बनेबाक दुष्चक्र रहल गेल छैक ।

एहि देश मे एकटा खास वर्ग अपना केँ मालिक बुझैत अछि, दोसर केँ रैय्यत । मालिक केँ लगैत छैक जे ई देश हमर बाप-पुरखा के अरजल छी । ओ इतिहास नहि पढैत अछि जे ओकर बाप-पुरखा केना-केना अरजलक ई देश । इतिहास गबाह छैक जे शासनाधिकार कोनो एक वर्ग के हाथ मे बेसी दिन नहि रहलैक ।

जेकरा मधेसी कहिकय, ‘भारतीय’, ‘बिहारी’, ‘धोती’, आदि कहिकय हेपैत छै, से एतुका मूलवासी छियै से बिसरि जाइत छै । हँ, सच छै जे मूलवासी के मूल धरातल केँ दुइ देश मे बांटि देलक । अंग्रेज आ राणा शासक छलपूर्ण गठजोड़ बनाकय, भारत पर ब्रिटिश हुकुमत केँ सैन्य सहयोग कय के सिपाही विद्रोह केँ दमन कय केँ – सीमा के बंटवारा अपना पक्ष मे कय लेलक । त कि १८६०-६५ मे अर्जित सीमा ‘बाप-पुरखा’ के अरजल भ’ गेलय आ सीमा के भीतर के लोक भारतीय-बिहारी-धोती भ’ गेलय ? ततबे राष्ट्रवादी अछि त एक भाषा-भेष-संस्कृति केँ एकजुट करय आ भारत सँ सम्पूर्ण मिथिला अपन सम्प्रभुताक सीमा मे आनय । जँ से नहि कय सकय त विभाजित राष्ट्रियता प्रति सम्मानक भाव राखि अपन सीमा के भीतर के लोक केँ सम्मान देनाय सीखय । एना वर्ण आ पहिचान आधारित विभेद कय के देश मे फेरो मधेश आन्दोलन जेहेन विस्फोट नहि आमंत्रित करय । बात बुझय ।

नागरिकताक समस्या – जन्मसिद्ध नागरिक के सन्तान सहित अन्य कतिपय लोक केँ संविधान द्वारा अधिकार देलाक बाद ‘नियमावली’ के अभाव मे नागरिकता सँ वंचित राखल गेल अछि । या त घोषणा करय जे जन्मसिद्ध नागरिकता प्राप्त लोक केँ अनागरिक मानल जायत या फेर नागरिक मानैत अछि त ओकर सन्तान आ देशक लाखों युवा केँ नागरिकता सँ वंचित करबाक षड्यन्त्र नहि करय । ई बेर-बेर चैत-कबड्डी खेल जेकाँ एहि घर सँ ओहि घर दौड़ेबाक जरूरत नहि ? आब बहुत भेल । यदि एहि ५-६ लाख सन्तान केँ नागरिकता नहि त समस्त जन्मसिद्ध नागरिक केँ सेहो अनागरिक घोषित कय केँ देश सँ बाहर करबाक कठोर निर्णय लियए नेपाल सरकार । रिफ्यूजी बनाबय एहि लाखों परिवार केँ आ अपनहि देशक बसोवासी नागरि केँ ।

जाहि तरहें अनागरिक बनाकय लाखों युवा के भविष्य संग खेलबाड़ भ’ रहल अछि, ई बहुत खराब संकेत दय रहल अछि । काल्हि एक युवा देह मे आगि लगा लेने छल । बचि गेल कोहुना । यदि ई खेल-बेल एहिना चलत त कतेको भविष्य जिबिते मृत् भ’ जायत । बात बुझय नेपाल सरकार आ एकर संविधान निर्माता, नीति-निर्माता आ न्यायपालिका खास कय । काल्हि ई अनागरिक लाखों युवा के मोन मे देश प्रति समर्पण के भाव नहि, जहर घोरा जेतय त ई शान्त प्रदेश नेपाल अशान्तिक एहेन तूफान देखत जे विगत के सारा इतिहास बदलि कय राखि देतय । ई जे जनयुद्ध आ जनान्दोलन के माला जपल जाइत अछि एहि देश मे तेकरा सँ बहुत भयावह विद्रोह ई लाखों अनागरिक युवा कय देतय एहि देश मे । समय पर होश करय नेपाल के ‘मालिक’ कहेनिहार ‘शासक वर्ग’ ।

हरिः हरः!!

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