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“हम बहुत मजबूर छी, तें बनल मजदूर छी”

— कीर्ति नारायण झा।     

“हम बहुत मजबूर छी, तें बनल मजदूर छी” दू सांझ के भोजन जुटेवाक पाहि में अपन खेलाइत धुपाइत बला समय में, जखन ओ जिनगी मे किछु बनवाक लेल पढ़ाइ लिखाइ कऽ कऽ किछु हुनर सीखवाक अवस्था में रहैत अछि ओ मजबूर भऽ कऽ मजदूर बनि सभटा के नहिं चाहितो त्यागि दैत अछि। ओ बच्चा जे देश नहिं अपितु संसारक भविष्य अछि मुदा ओ दुर्भाग्यवश ओ अपन भविष्य के विसरि लागल अछि दू सांझुक रोटी के लेल। एतेक कठिन परिश्रम छोट बच्चा के द्वारा एकटा चिंता के विषय अछि। बाल मजदूर के मजबूरी के नाजायज फायदा उठेनिहार के अपना सभक ओहिठाम कमी नहि अछि जे बाल मजदूरी के विरोध में झंडा उठा कऽ फोटो खिंचेवाक लेल सभ सँ आगू रहताह मुदा वास्तव मे हुनका ओहि बाल मजदूर सँ कोनो प्रकारक सहानुभूति नहिं छैन्ह। इ अत्यन्त दुर्भाग्यक विषय अछि। बाल मजदूरी देशक विकराल समस्या में सँ एक अछि जे देशक भविष्य आ उन्नति के नींव खसेबाक लेल जिम्मेदार अछि। एकरा लेल समाजक सभ वर्ग जिम्मेदार छैथि। सर्वप्रथम बच्चा के माय बाप जे बच्चा के मजबूरी मे मजदूरी करवा सँ रोकनाइ के स्थान पर ओकरा मजदूरी करवाक लेल धकेलि दैत छैथि दोसर पेटक भूख आ खराब हालत ओहि बच्चा के मजदूरी करवाक लेल मजबूर कऽ दैत अछि। केन्द्र सरकार सँ लऽ कऽ राज्य सरकार नियम कानून तऽ बना देलकै मुदा ओहि नियम कानून के लागू करवाक लेल धरातल पर कोनो काज नहिं कयल गेलैक। योजना मात्र बनाओला सँ नहिं होइत छैक ओकरा जमीन पर लागू कयनाइ सेहो आवश्यक होइत छैक। एकरा लागू करय बला तथाकथित अधिकारी लोकनि योजना के नाम पर अपन जेबी भरैत छैथि आ एहि कारणे बच्चा सभके मजदूरी करय पड़ैत छैक जकर प्रमाण सालो साल एकर संख्या में वृद्धि सँ लगाओल जा सकैत अछि। सभ सँ खराब स्थिति झोपड़ी झुग्गी आ सड़क के कात में बसल मजदूर जे ताड़ी आ देशी शराब पीबि कऽ अपन सख पूरा करैत अछि आ ओकर धिया पूता मजदूरी कऽ कऽ ओकरा लेल पाई जुटबैत अछि आ येएह कारण छैक जे बेसी बाल मजदूर घरक बदहाली आ नशेड़ी बापक कारणे मजदूरी करवाक लेल मजबूर रहैत अछि। गरीब आ मजदूर माय बाप मजबूरी मे अपन बच्चा के दलाल के हाथ सौंपि दैत अछि जे निर्दय भऽ कऽ ओहि बच्चा सभ सँ मजदूरी करबैत अछि। इ बाल मजदूरी सुशासन पर प्रश्नचिन्ह लगबैत अछि सरकार एहि बच्चाक अधिकार के लेल घोषणा तऽ करैत अछि मुदा जिम्मेदार अधिकारी ओहि योजना के लाभ जमीन धरि नहिं पहुंचा पबैत अछि। प्रशासन मात्र बाल दिवस मनेवाक लेल रहि गेल अछि। सरकार के लाख दावा कयलाक उपरान्तो सरकारी कार्यालय में चाहक कप प्लेट लऽ कऽ बाल मजदूरे पहुंचबैत अछि जाहि पर किनको ध्यान नहि जाइत छैन्ह ओना नियम कानून खूब सख्त बनल छैक जाहि में जुर्माना आ हथकड़ी के प्रावधान सेहो छैक मुदा ने ओ हथकड़ी कहियो सक्रिय होइत छैक आ जुर्माना के तऽ कोनो प्रश्ने नहिं।रोड पर अखवार के बंडल उठाओने अथवा घर बनेबाक लेल माथ पर ईंटा लादने बाल मजदूर प्रायः सभठाम भेटि जायत। पैघ पैघ होटल सभ में टेबुल साफ करैत, बर्तन माजैत बाल मजदूर हमर सभक आंखिक सामने अपन विबशता के नोर कनैत रहैत अछि आ हमरा लोकनि एकटा निर्दयी हृदय सँ ओकरा तकैत रहैत छी आ मानवीयता हमरा सभक मरि जाइत अछि ओहिठाम। आवश्यकता छैक मानवीय संवेदनाक जाहि के माध्यम सँ ऒकरा पढवाक लेल पुस्तक, विद्यालय आ अन्य साधन जुटा कऽ ओकरा ओहि दलदल सँ निकालवाक लेल। हजार रूपैया के गुटका, सिगरेट आ शराब पर सँ खर्च हँटा कऽ ओहि भटकल मजदूरक बच्चा के हाथ पकड़ि कऽ तमसो मा ज्योतिर्गमय करवाक।ई बात सर्वथा उचित जे ई काज एक आदमी सँ संभव नहिं छैक, एकरा लेल सामूहिक प्रयास आवश्यक छैक मुदा किनको ने किनको आगू बढय पड़त नहिं तऽ स्थिति दिनानुदिन विकराल भेल जा रहल छैक। सम्वेदना मरल जा रहल छैक आ क्रुरता के साम्राज्य पसरल जा रहल छैक।

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