लेख
– अखिलेश कुमार मिश्र
पति-पत्नीक सम्बन्धविक्षेद मे दोसर स्त्री (ओ) के भूमिका
हम अपन मंच “दहेजमुक्त मिथिला” पर श्रीमती संगीता मिश्रा जीक लिखल दू तीन टा लेख पढ़लहुँ अछि जाहि मे “महिले महिलाक दुश्मन”, “सिंगल मदर के आंतरिक पीड़ा आ संघर्षक कथा” आ “गृहस्थीक अवलंबा स्त्री शक्ति: दुराचारिणी सं सावधान” आदि अछि। संगीता जी कें साधुवाद जे अतेक नीक आ स्पष्ट ढंग सं सभ किछु लिखने छैथि। हुनकर लेखन मे वर्तनीक शुद्धि सेहो छैन्ह जे हमरा प्रभावित केलक। हुनकर पीड़ा कें त हम बांटि नै सकब, मुदा हुनकर लेखन के आगाँ बढ़ाब’ के प्रयास करब। हुनकर लेखन मे पीड़िता स्त्रीक पीड़ाक संग अन्य कठिनाइ के सामना आ खराब स्थिति सं बाहर कोना निकलल जाय ताहि बारे मे लिखल गेल अछि। एहि मे दोसर पक्ष (हुनकर पति) के तरफ सं किछु नै कहल गेल अछि। तैँ हम दुनू पक्ष के दृष्टिकोण राख’क प्रयास केलहुँ अछि। ओना हम दांपत्य जीवन आ पति-पत्नीक आपसी सम्बन्ध के बारे मे पहिलुका समूह मे लिखने छलहुँ, हमर मोबाइल मे सुरक्षित होयत (शायद), से हम फेर कहियो पोस्ट करब। एखन त’ बस यैह! ओना हम स्पष्ट क’ दी जे नै हम एहि तरहक पीड़ित छी, अथवा कुनो पीड़ित या पीड़िता सं विमर्शे कएने छी। जे अछि से हमर निजी विचार अछि। बस अपन सोच के आधार पर लिखलहुँ अछि।
सब सँ पहिले बात करी जे विवाह कि अछि। अपन सनातन धर्म मे विवाह दू जान नै दू आत्माक मिलन के कहल गेल अछि। पति-पत्नीक बीच के संबंधक मूल कारण विश्वास अछि। विश्वासक आधार अछि सत्य। कहक तात्पर्य जे एक दोसरक लेल कतेक हद तक सत्यनिष्ठ छी। यदि एक-दोसर सं सत्यनिष्ठ नै रहब त’ रिश्ता मे भेद होइ के संभावना बहुत बढि जाइत छैक। एकर अतरिक्त पति-पत्नी के बीच मे भेद होइ के कारण निम्न अछि:
1. पुरुषक लोलुपता: देखल गेल अछि जे जतेक युद्ध भेल तकर कारण या त स्त्री (पाबै के इच्छा) रहल या धन। ओना स्त्री कें रत्न (धन) सेहो कहल गेल अछि। पुरुषक सभ सं पैघ अवगुण/गुण अछि जे ओ स्त्री के तरफ सहजहि आकर्षित भ जाइत अछि। एकर वर्णन धर्मग्रंथ में सेहो भेल अछि। अपन पत्नी बेशक कतबो सुंदर या गुणवंती होइथ, मुदा दोसर स्त्री बेसी नीक (एकरो कारण पर दोसर दिन चर्चा करब)। इ स्वाभाविक गुण अछि। तहन कर्तव्यनिष्ठ पुरुष अपन सामाजिक मर्यादा कें बुझैत अपन वैवाहिक जिनगी सुखपुर्वक बितबैत छैथि।
2. पति-पत्नी के बीच मे दोसर स्त्री (ओ) के प्रवेश: देखल गेल अछि (90% सं बेसी केस मे) जे पुरुषक विवाहेतर सम्बन्ध ओहि स्त्री सं रहल जे या त अविवाहिता होइथ, या परित्यक्ता या विधवा। कहक तात्पर्य इ जे ‘ओ’ के भूमिका मे ओ स्त्री बड़ कम छथि जिनकर अपन वैवाहिक स्थिति नीक रहैत छन्हि। पुरुष के बारे मे त’ पहिले कहि देलहुँ जे हुनका सब कें स्त्री कतेक पसिन्न। तहन परस्त्री (ओ) प्रति पीड़िता बुझि पहिले पुरुष (पति) कें सहानुभूति रहैत छन्हि आ तकर बाद फेर ओ सहानुभूति अन्य रूप ल’ लैत अछि जेकर परिणाम सम्बन्ध विच्छेद तक पहुंच जाइत अछि।
3. पत्नीक स्वभाव: बहुते केस मे देखल गेल जे पति-पत्नीक सम्बन्ध बड़ नीक अछि। मुदा बात-बात पर पत्नी लड़ाइ ठानि लेल करैत छथिन। जाहि बात कें पूर्णतया अनदेखा (इगनोर) कयल जा सकैत अछि ताहि पर सेहो पत्नी द्वारा टंटा ठाढ़ कय देल जाइछ। ताहि मे, यदि पत्नी द्वारा देल ताना कुनो परस्त्री केँ लगा कय होइ त इ आगि मे घी के काज करैत छैक। यदि पत्नी शंकालु स्वभावक छथि त ओ दिन भरि यैह राग अलापैत रहैत छथिन। तहन पति बेसी गति सं ओहि परस्त्री (ओ) के तरफ झुकैत चलि जाइत अछि, कियैक त ओहि स्त्री सं पुरुष कें सेहो बेसी सहानुभूति भेटैत रहैत छन्हि।
4. स्त्रीक महत्वाकांक्षा: किछु केस मे देखल गेल अछि जे स्त्री बड़ महत्वाकांक्षी होइत छथिन। खूब नीक पहिरी, खूब नीक खाइ, खूब घूमी-फिरी आदि। जे हुनका अपन पति सं नै भेटि पबैत छन्हि त ओहो ई सब अर्जित करबाक प्रयास करैत छथि। कुनो-कुनो केस मे यैह सब पाबय के हुनकर चाहतक परिणति हुनका कोनो परपुरुष केर “ओ” के भूमिका मे ठाढ़ क’ दैत छन्हि।
मिलाजुला क’ एहने किछु कारण रहैत अछि। किनको संग किछु त किनको संग किछु आर! यैह घटना-दुर्घटना बसल गृहस्थी केँ उजाड़ि दैत छैक। ताहि मे ओ तीनू अथवा चारू (पति-पत्नी आ ओ तथा ओ के पति/पत्नी) त कष्ट भोगिते छथि, संग-संग हुनका लोकनिक बच्चा सभक स्थिति बहुत बेसी गड़बड़ भ’ जाइत अछि। एहि मे दोषी बेसी के से कहनाइ सम्भव नहि होयत। सब केस मे स्थिति/परिस्थिति भिन्न-भिन्न होइत अछि। मुदा बसल गृहस्थी टूटला सँ सब कें कष्ट त’ जरूर होइत अछि। सब कें चाही जे “जैह प्राप्त वैह पर्याप्त” केर सिद्धांत केँ मानी आ अपन जिनगी कें हँसी खुशी ब्यतीत करी। भगवान सं प्रार्थना जे एहेन स्थिति किनकों संग नै आबन्हि। धन्यवाद!