लेख
– संगीता मिश्र
महिला आत्मनिर्भरता
आइ अपन मिथिला समाज मे पुरुष पर आर्थिक उपार्जनक एकल भार (जिम्मेदारी) रहबाक कारण समाज मे असन्तुलन स्पष्ट अछि। एकर कतेको प्रकार के दुष्परिणाम सब सेहो सोझाँ अभैर रहल अछि।
मिथिला मे, खास कय केँ कथित बड़का जाति के लोक महिला केँ बाहरी संसार मे अन्य क्षेत्रक महिला सँ प्रतिस्पर्धा मे बहुत समय धरि रोकिकय कतहु न कतहु गलती कयलनि एना हमरा बुझि पड़ैत अछि। हमर आजुक लेख महिला समाजक आत्मनिर्भरता पर केन्द्रित अछि।
कुनु महिला के आत्मनिर्भरता तहने संभव छै जहन ओ आर्थिक रूप सँ आत्मनिर्भर हो। ओकरा अपना पर गर्व और विश्वास हेतय तखनहि ओ केहनो परिस्थिति आ केहनो वातावरण मे अपना आप केँ ढालि लैत अछि।
अहाँ अगर केकरो खराब नहि करबय त भगवान् आ पूरा समाज, परिवार अहाँक संग जरूर देत। बस जरूरत छैक जे हमरा सब अपन आस्तित्वक पहिचान करी आ अपना आप केँ आत्मनिर्भर बनाबय लेल उचित डेग आगू बढ़ाबी।
आत्मनिर्भरता बहुत जरूरी अछि। ई एहेन बॉडीगार्ड के काज करत जे समाज, परिवार या अन्य जगह अहाँ स्वयं केँ सुरक्षित और सम्मानित हेबाक अनुभूति करब। अहाँक अपनहि भीतर एतेक आत्मविश्वास भरल रहत जे हरेक क्षेत्र मे अहाँ केँ आगाँ बढ़य के ताकत देत। अहाँ अपन आर अपन संतान सभक भविष्य लेल उचित विकल्प आर निर्णय लेबय मे सक्षम होयब।
विषम परिस्थिति मे अहाँक अपनहि आत्मबल टा काज आओत। बुझले अछि जे हमर निजी जीवन मे हमरा उपर केहेन पहाड़ टूटल। जीवन भरि के साथ देबाक वचन देनिहार जखन जीवनक कठिन मोड़ पर संग छोड़य आ आश्रितजनक भावना सँ खेलबाड़ करय, अपन स्त्री केँ छोड़ि परस्त्री गमन करय, अपन ठोह भरिक सन्तानहु सभक मुंह नहि देखय – त कहू एक पारिवारिक स्त्री की करय? जँ ओ सबल नहि होयत त अनैतिक मार्ग पर चलनिहार घरक पुरुषक अत्याचार कोना झेलि सकत?
हम स्वयं एक सिंगल मदर छी। ३ टा संतान के मां छी। अपन बच्चा सब केँ आत्मनिर्भर बनेबाक लेल प्रयासरत छी। हम जॉब करैत रही। घर सम्हारैत, छोट-छोट बच्चा सम्हारैत आ ताहि पर सँ घरक मुखियाक कुकर्म – दबाव आ तनाव के कारण बहुत बीमार पड़ि गेलहुँ। डिप्रेशन के शिकार सेहो भ’ गेल रही। एखनहुँ धरि एहि रोग सभक शिकार छिहे। बीमारी स्वाभाविक होइत छैक कारण ओ महिला जखन देखैत अछि जे ओकर पति जतेक कमायत अछि से सबटा अपन ऐय्याशी पर उड़बैत अछि आ अपन निर्दोष अबोध बाल-बच्चा आ स्त्री सब केँ छोड़ि केवल अपन वासना आ भोग के कुकर्म मे लिप्त अछि, तखन बीमार त हेब्बे करत। ई अलग बात होइछ कि अपन एक बसल गृहस्थी छोड़ि कोनो दोसर स्त्री संग नया गृहस्थी आ फेरो सन्तान केर जीवन बर्बाद करबाक तैयारी तक के जुर्रत करैत छैक, आ ताहि मे एक स्त्रीक हक विरूद्ध दोसर व्यभिचारिणी स्त्री रहैत छैक। तहन कियो ककरो घर तोड़ि कय अपन महल बनायत त ओ सफल केना होयत? तथापि, बीमारी सँ लड़िकय सन्तान लेल जिबय पड़तैक ओकरा। बीमारी समाधान नहि थिकैक से बुझय पड़तैक ओकरा। आर्थिक आत्मनिर्भरता एकमात्र नीति, नैतिकता आ सर्वोपरि व्यवहार थिकैक ओकर।
सिंगल मदर (एकल माय) अपन बच्चा केँ ओ सुख-सुविधा नहि दय पाबैत अछि जेकर बच्चा सब हकदार होइछ, त ओ अपना केँ दोष देबय लगैत अछि। जँ कियो सिंगल मदर छी त अपन जीवन केँ एन्जॉय करू आ खुश रहू, हम यैह आह्वान करब।
भगवान् बच्चा सभक बागडोर ओकर हाथ मे दैत छथिन जे खुद मजबूत होय आ ओकर दिल मे माँ-पिता दुनू के ममता भरल रहय। कर्तव्य निर्वाह करय के ताकत होइ।
हमरा नजरि मे सिंगल माँ के पास स्टील के रीढ और सोना के दिल होइत अछि। हम अगरबत्ती के छोटछिन व्यवसाय अपन भाइ आर परिवार सँ मिलिकय करैत छी। और ऑफलाइन के संगे-संगे मांग अनुसार फ्लिपकार्ट, अमेजॉन जेहेन ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर बिक्री करैत छी। एखन शुरुआत अछि। विश्वास अछि जे समाज साथ जहिना दैत आयल अछि तहीना देत त निश्चित हमर उद्यम आर दूरी तय करत। आर, निश्चित हमरा सहित हमर सन्तान व परिवार लेल जीविकाक एकटा मजबूत सहारा ई सिद्ध होयत।
समय समय पर समाजहि के उचित सलाह काज अबैत छैक। अन्त मे, आजुक लेख पुनः महिलाक जीवन मे संघर्ष आ ताहि मे आत्मनिर्भरताक मिश्रित बात सब रखलहुँ… आशा अछि जे हमर अनुभव आ लेख बहुतो लेल उपयोगी जरूर होयत। धन्यवाद।