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मिथिला मे बिहारी राजनीति आ मिथिला राज्य

बात जानू स्पष्ट!!

ब्राह्मण समुदाय कि अगड़ा-पिछड़ा कियो लोक सब जे मिथिला-मैथिली करैत छथि से या त अपन स्वार्थ सिद्धि लेल या फेर अपन जीवनक सुन्दर अभीष्ट के रूप मे, समर्पण भाव सँ करैत छथि। बाकी लोक व समुदाय सब जे नहि करैत छथि से राज्य कथी होइत छैक ततेक ज्ञाने नहि हासिल कय सकल छथि। हुनका सब लेल राज्य, राजनीति, गणराज्य, आदि धैन सन। पढ़थि-लिखथि-सिखथि, कहियो बुझता त राज्य ओहो सब मंगबे करता। आ, जँ बाकी समुदाय केँ वर्तमान बिहारहि के राजनीति आ परिपूर्ति सँ पोस खा रहल छन्हि, ओ सब प्रसन्न छथि त फेर मिथिला राज्य के कोनो आवश्यकता नहि छैक। भने बिहार मे रहू आ बिहारी बनल गाइर-माइर सौंसे भारत आ देश-विदेश मे घुमि-घुमि खाइत रहू।

मिथिला राज्य हुए एहि लेल संघर्ष एलिट्स धरि मात्र सीमित रहल। ई राजनीतिक एजेंडा रहितो राजनीतिकर्मी के चॉइस नहि बनल। कियैक?

१. कियैक त राजनीतिकर्मी केँ केवल अपन पद प्रतिष्ठा आ कमाय के चिन्ता रहल, जे मिथिलावादी राजनीति सँ नहि अपितु बिहार आ केन्द्र के राजनीति सँ मात्र भेटैत छैक। मिथिलावादी सब दिन गैर राजनीतिक लोक रहल। जे एकरा राजनीतिक बनाबय के चेष्टा कयलक ओ मुंहे भरे चुनाव में हरायल गेल। जनता टका लयकय वोट देलक, जाति के बात, धर्म के बात, जातीय आधार पर नेता के बात, अन्त में बाहुबल आ मनी पावर के जोरगर के नव जमीन्दारी के बात, यैह सब नेता बनिकय सरेआम अपन गोटी लाल कयलक। आँखि खोलिकय देख लियौक जे नेता के घर कि सब हासिल भेल आ जनता कतय छल आ कतय धरि गेल।

२. जखन दुनिया बुझि गेल जे राजनीतिक पार्टी ज्वाइन कएले सँ अपना लेल आ अपन बाल-बच्चा आ किछु हद तक जाति-समुदाय या धर्म समुदाय लेल नीक कय सकब त फेर मिथिलावाद के नाम पर आराम सँ खाली मैदान देखि अपना केँ नेता बनबाक घोषणा, कनी दिन संघर्ष आ फेर कोनो मलायदार राजनीतिक पोस्ट या दल के गतिविधि मे शामिल भ’ मिथिलावाद केँ तिलांजलि दैत सबटा दोष दोसर पर थोपैत अपन गोटी सुतारय लगबाक फैशन बढ़ि गेल। बड़का-बड़का लोक तक नहि थाम्हि सकलाह मिथिलावाद के प्रति समर्पण। नाम कि लिखू!

३. प्रदेश (बिहार) आ केन्द्र (भारत) के राजनीति सँ कनेक अलग हंटब आ पंचायती राज पर नजरि देब त फेर ग्रामीण जातिवाद, धार्मिक उन्माद आ भाइ-भतीजावाद, परिवारवाद, गुटवाद आदिक आधार पर स्थानीय राजनीति मे सेहो करोड़ के करोड़ फन्ड आ ताहि मे सँ लूट-खसोट आ जनता संग सीधे पंचायत स्तर पर धोखाधड़ी आ ठगी-धूर्तइ सब खूब चमकल। इन्दिरा आवास के नाम पर लूट, शौचालय, नाला, नल-जल, ढलैया सड़क, पोखरिक घाट, छोट-मोट निर्माणक कार्य सँ लैत विभिन्न योजना सब मे सिर्फ आ सिर्फ कमीशनखोरी, जे बिहार सरकारक पदाधिकारी सँ मंत्री धरिक हिस्सेदारी लूटल धन मे तय करैत अछि, वैह टा चमकल। त फेर ई मिथिलावादी राजनीति के कोन कमाय सिवाये थोड़-बहुत चन्दा-चुटकी के, सेहो जँ बड मुंहगर-जोरगर लोक छी त २ टा पैसा कियो बेगरतुते लोक चन्दा देत – ताहि जोरे ई मिथिला राज्य के मांग कि जोर पकड़त?

तखन त मिथिला राज्यक मांग टा जियैत रहय, राज्य बनय वा नहि बनय, कोहुना एकर बागडोर सम्हारने रहब त अपन हृदय मे आ अपना पकड़ के लोक लग एतेक प्रतिष्ठा त रहत जे फल्लाँ बाबू सेहो राजनीति मे सक्रिय छथि, ई मिथिलावादी राजनीति करैत छथि। फल्लाँ दिन हजमा चौराहा पर साइकिल बगल मे ठाढ़ कय केँ कार वला सब केँ रोकि-रोकि बुझबैत छलखिन्ह जे मिथिला राज्य परम जरूरी अछि, नहि त प्रतिष्ठा नहि बचत, आर्थिक विकास नहि होयत…. ओ कारवला लोक सब सोचैत अछि जे ई साइकिल चढैत छथि, हिनको कार चढ़बाक इच्छा हेतनि तेँ ‘मिथिला-मिथिला’ करैत छथि… धू, के पुछय एहेन-एहेन नेता केँ…! बस, पोन झाड़लथि आ उठिकय बगल के पान दोकान पर जाय भांग के गोली मुंह मे राखी पानि सँ गुलगुलाकय घोंटि गेलहुँ, फेर चाह के चुस्की आ सिगरेटक धुआँ उड़बैत कनिकाल मे पान खाय पिच्-पिच् दु-तीन बेर फल्लाँ बाबू दिश पिक-तिक फेकि तिरस्कारक दृष्टि सँ मिथिलावादी राजनीतिकर्मी केँ देखैत १०-२० टा गाइर-ताइर पढ़ैत अपन कार मे बैसि निकलि गेलहुँ…! बेटा दिल्ली-मुम्बई सँ माल पठेबे करत, अपन पेट आ घर ओहि सँ चलत। कि हेतय मिथिला राज्य लय के?

तथापि, ओ बेचारे मिथिलावादी नेताजी अपनहि सँ अपन तिरस्कार केँ धोएत-पोछैत साइकिल चढ़ि घर अबैत छथि। ऐगला दिन फेर झंडा लयकय बेंता चौक पर जाइत छथि, पुलिस त छोड़ियो दैत छन्हि… एकटा रविन्द्र निराला सनक छिटखोपड़ी अबैत अछि आ अनेरे बेंत चलबैत ‘हंटिये-हंटिये’ कहिकय हुनकर नेतागिरी बन्द करबा दैत अछि। रविन्द्र सँ लोक पुछैत छैक, अगल-बगल के दोकानवला सब… हौ भाइ, तूँ के छियह? त कहि दैत छथि… धू ई बभना आर हय, एकरा अरु के राजनीति से कौन लेना-देना हय… ईहे लागि बेता चौक पर बेंत सँ होंकि देली। भ’ गेल मिथिला आन्दोलन समाप्त!

जहिया लोक एहि व्यवस्था सँ, जाति के नाम पर ठक आ धूर्त राजनेता सब सँ, धर्मक ठीकेदार द्वारा विखंडन कय अपन गोटी सुतारयवला राजनेता सब सँ, पंचायती राज के ब्रह्मलूट मे फँसल सामाजिक पिशाच-दानव सब सँ आ विभिन्न बहन्ना मे दलाली आ कमीशनखोरी करयवला शासन-प्रशासन आ भ्रष्ट पदाधिकारी सब सँ, बिकायल थाना आ न्यायाधिकरण अन्यायी सब सँ अपने ऊबि जायत तखन होयत जनविद्रोह आ तखन फेर स्वतः जनक-जानकी के मिथिला अपन वैह सनातन रीति-नीति पर आबि जायत, जनक समाजवाद के जीत होयत आ मिथिला राज्य बनौने बिना जनकल्याण सम्भवे नहि होयत। तखन बनत मिथिला राज्य! एखन लागल रहू बिन पेन्दीक लोटा एक बिहारी सब पर भारी बनिकय अपन मुंह अपने सँ पोछय मे, पठबैत रहू धियापुता आ परिवार सब केँ पैनजाब-भदोही।

हरिः हरः!!

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