रामचरितमानस मोतीः तारा केँ श्री रामजी द्वारा उपदेश आर सुग्रीव केर राज्याभिषेक तथा अंगद केँ युवराज पद

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

तारा केँ श्री रामजी द्वारा उपदेश आर सुग्रीव केर राज्याभिषेक तथा अंगद केँ युवराज पद

१. बालि केँ अपन लोक पठेबाक गति देलाक बाद श्री रामचन्द्रजी बालिपत्नी तारा केँ व्याकुल देखि हुनका ज्ञान देलनि आर हुनकर माया (अज्ञान) हरि लेलनि। ओ कहलखिन – “पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश आ वायु – एहि पाँच तत्व सँ ई अत्यन्त अधम शरीर रचल गेल अछि। ओ शरीर तँ प्रत्यक्षे अहाँक सोझाँ सुतल अछि, आर जीव नित्य अछि। फेर अहाँ केकरा वास्ते कानि रहल छी?” जखन ज्ञान उत्पन्न भेलनि त ओ भगवान्‌ केर चरण लगलीह आ ओहो परम भक्ति केर वरदान माँगि लेलीह।

२. शिवजी कहैत छथि – “हे उमा! स्वामी श्री रामजी सब केँ कठपुतली जेकाँ नचबैत छथि। तदनन्तर श्री रामजी सुग्रीव केँ आज्ञा देलथिन आ सुग्रीव विधिपूर्वक बालिक सब मृतक कर्म कयलनि।

पुनः श्री रामचन्द्रजी छोट भाइ लक्ष्मण केँ बुझाकय कहलखिन्ह जे अहाँ जाकय सुग्रीव केँ राज्य दय दियौन। श्री रघुनाथजीक प्रेरणा (आज्ञा) सँ सब कियो श्री रघुनाथजीक चरण मे मस्तक नमाकय चललाह। लक्ष्मणजी शीघ्रहि समस्त नगरवासी सब केँ आ ब्राह्मणक समाज केँ बजौलनि आ हुनका सभक सोझाँ सुग्रीव केँ राज्य आर अंगद केँ युवराज पद दय देलनि।

हे पार्वती! जगत मे श्री रामजीक समान हित करयवला गुरु, पिता, माता, बंधु आर स्वामी कियो नहि अछि।

देवता, मनुष्य आ मुनि सभक यैह रीति छैक जे स्वार्थ लेल टा सब प्रीति करैत अछि।

जे सुग्रीव दिन-राति बालिक डर सँ व्याकुल रहैत छल, जेकर शरीर मे बहुते रास घाव भ’ गेल छलैक आ जेकर छाती चिन्ताक मारे जरि रहल छलैक, वैह सुग्रीव केँ ओ समस्त बानर समाजक राजा बना देलनि।

श्री रामचन्द्रजीक स्वभाव अत्यंतहि कृपालु छन्हि। जे लोक जनितो एहेन प्रभु केँ त्यागि दैत अछि, ओ कियैक नहि विपत्तिक जाल मे फँसता?”

३. फेर श्री रामजी सुग्रीव केँ बजौलनि आ बहुते प्रकार सँ हुनका राजनीति केर शिक्षा देलनि। प्रभु कहलखिन – हे वानरपति सुग्रीव! सुनू, हम चौदह वर्ष धरि अपन गाम (बस्ती) नहि जायब। ग्रीष्मऋतु बिति वर्षाऋतु आबि गेल अछि। तेँ हम एतहि नजदीकक पहाड़ ठहरब। अहाँ अंगद सहित राज्य करू। हमर काज केँ हृदय मे सदिखन ध्यान राखब। तदनन्तर जखन सुग्रीवजी घर लौटि गेलाह, तखन श्री रामजी प्रवर्षण पर्वत पर जाकय रुकि गेलाह।

हरिः हरः!!