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“नव मिथिलाक निर्माण करी,नव पीढ़ी सभकेॅं सुदृढ़ मिथिलाक दर्शन कराबी।”

— रिंकू झा। 

अहि में कनीयो दु राय नहीं अछि कि बौद्धिक रूप स सक्षम यानी धन, संपदा, शिक्षा आर संस्कार, बुद्धि हर तरह स शिक्षित आर सबल रहला के बावजूद मिथिला क्षेत्र ओहि मुकाम पर नहीं पहूंचल जकर ओ हकदार अछि । मिथिला में एक स एक महारथी, ज्ञानी, प्रकांड विद्वान, पंडित आर कलाकार, संगीतज्ञ आदी सब छैथ । बहुत नामी , गामी व्यक्तित्व सब छैथ ,छलैथ जिनका चाहने कि नहीं भऽ सकै छल या हओएत। ओना मिथिला के कोनो नाम आर पहचान के जरुरत नहीं छै कारण ई महाराज जनक के भुमी माता सीता के जन्मभूमि अछि जे के नहीं जनैया भगवान राम जाहि धरती पर पहुंचला ओहि पावनभुमी के शायऽदे कियो नहीं जनैत हेता ।
दरभंगा महाराज सऽ लय कऽ बहुतो एहन राजा ,रजवारा सब छलऐथ, मंडन मिश्र आर हुनकर पत्नी भारती सन विद्वान आर विदुशी सब छलैथ ,एक स एक जमींदार छलैथ , जे सब तरहे सबल रहला के बावजूदो मिथिला के तरक्की के लेल बहुत किछु नहि केलेथ। बहुतों एहन प्रशीद्ध नाम चिन्ह कलाकार सब छैथ जे अपन पहचान बरकरार राखै के चक्कर में अपना भाषा के ताख पर राखी दोशर भाषा के जरिए नाम कमा रहल छैथ।आर मुक बधीर भय मिथिला के बदहाली देखी रहल छैथ ,गाम घर जेनाय तक छोड़ी देने छथीन, बाप-दादा के सम्पत्ति आर मकान खण्डहर बनल छैन ।अपनही लोक के द्वारा मिथिला के उपेक्षा भऽ रहल अछि ई बात किनको स छुपल नहीं अछि।
मिथिला में उधोग के नाम पर किछू नहीं छै,जे पुरान उधोग सब छल चाहे ओ चीनी मिल होई या जुट मिल सब बंद परल अछि। जाहि सब चीज स उधोग कैल जा सकैया ओहि तरफ कियो ध्यान नहीं दै छथीन। मिथिला के पहचान आई के समय में केवल देश के दोशर हिस्सा में मजदूर उपलब्ध करेनाई रही गेल छै, कारण सब स बेशी लोक मिथिला स पलायन करै छैथ आर प्रवासी बनी दिल्ली, मुम्बई में जा बसै छैथ कोनो एहन शहर नहीं भेटत जाहि ठान मैथिल नहीं छैथ । मिथिला में बेरोज़गारी एते छै की रोजगार के कोनो साधने नहीं छै,जे सब सबल छैथ यानी अपन शिक्षा आर पहचान यानी सबलता स देश -विदेश में डंका बजा रहल छैथ,ओ सब अपना आप में सीमित छैथ,अपने टा सऽ मतलब राखै छैथ गाम घर सऽ मतलब नहीं रहै छैन, मैथिली बजीतो नहीं छैथ ।नाम चिन्ह व्यक्ति सब की नहीं कय सकै छैथ मुदा कहियौन तऽ कहता प्रशासन आर सरकार के अगा हम सब बेबस छी , सरकार किछु करबो करै छैथ तऽ अपने लोक सब आपस में बाँटी कक्ष खा लै छैथ आम जनता के सुबिधा स की मतलब छैन । आंहा चढु तऽ आंहा कही झुठक घमर्थन में समय काटि निकैल जाई छैथ। किछु चुनाव के समय में जरुर आश्वासन देता मुदा केवल झुठक खेती करै छैथ चुनाव के बाद सब बिसराए दै छथीन।नव पीढ़ी सब तऽ बेशी लोक गाम घर चिन्हतो नहीं छथिन,गाम घर स लगाव नहीं छैन अपना आप के मैथिल कहबै सऽ झीझकै छैथ दोशर के संस्कृति अपना गर्ब महसूस करै छैथ। तरक्की के नाम पर भेटत गाम -घर में सेपरेट आँगन आर दलान पर बैसल बुर्ह माय-बाप , किनको स किनको सामंजस्य नहीं,गाम में रहऽहे नहीं कियो चाहताऽ कहियौन तऽ कहता लाईट, पंखा के दिक्कत रहै छै अरे भाई ओहे तऽ अहां के करबाक अछि जे अहां के मिथिला में लोक आबे रोजी-रोटी लेल , नहीं की हम पलायन करी।पैघ -पैघ पद पर आसीन मैथिल जन सब छैथ चाहतैथ तऽ पुरा प्रशासन के हीला देथीन मुदा कियो अगा नहीं बढतैथ कहतैथ जे बड्ड लफरा छै असगर हम कीछु नहीं कय सकब ओना ईहो ठीक छै असगर बृहस्पति़ओ झुठ भय जाय छैथ। किछु तऽ प्राकृतिक चुनौती सेहो झेलै परै छै मिथिलावासी के जे तरक्की में बाधा बनै छै मुदा लोको सब परेशानी नहीं मोल लेबै चाहै छैथ आर जे करऽ चाहै छैथ ओ सक्षम नहीं छैथ सब तरहे हुनकर के सुनतैन । कहबी छै साथी हाथ बढ़ाना,एक अकेला थक जाएगा मिल कर हाथ बढ़ाना, यानी सब कियो मिली कय जदी करै चाहथीन तऽ कि नहीं भय सकैया। असगर भगीरथ अपन साठ हजार बंशज के आत्मा के तृप्ति के लिए गंगा मैया के मजबूर कऽ देने छथीन पृथ्वी पर अवतरित हुए के लेल ।हम आंहा मिथिला के उत्थान के लेल एतेक प्रयास तऽ कऽ सकै छी जे जे चीज हमरा अहा के अछी ओकरा सब मिली पुर्ण रुपे आरंभ करी आर बेरोज़गारी के हटा पलायन के रोकी ।नव मिथिला के निर्माण करी,नव पीढ़ी सब के सुदृढ़ मिथिला के दर्शन कराबी।

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