रामचरितमानस मोतीः सुग्रीव केर दुःख सुनायब, बालि बध केर प्रतिज्ञा, श्री रामजीक मित्र लक्षण वर्णन

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

सुग्रीव केर दुःख सुनायब, बालि बध केर प्रतिज्ञा, श्री रामजीक मित्र लक्षण वर्णन

१. हनुमान्‌जी दुनू दिशक सबटा कथा सुना अग्नि केँ साक्षी राखि आपस मे दृढ़ताक संग प्रीति जोड़ि देलनि। यानि अग्नि केँ साक्षी राखि प्रतिज्ञापूर्वक हुनका लोकनिक मैत्री करबा देलनि। दुनू हृदय सँ प्रीति कयलनि, कनिकबो अन्तर नहि रखलनि। तखन लक्ष्मणजी श्री रामचंद्रजीक सारा इतिहास कहलखिन्ह। ई सब इतिहास सुनिकय सुग्रीव अपना आँखि मे नोर भरने बजलाह – “हे नाथ! मिथिलेशकुमारी जानकीजी भेटि जयतीह। हम एक बेर एतय मंत्री सभक संग बैसल किछु विचार कय रहल छलहुँ, तखन हम पराया (शत्रु) केर वश मे पड़ल विलाप करिते सीताजी केँ आकाश मार्ग सँ जाइत देखने रही। हमरा सब केँ देखिकय ओ ‘राम! राम! हा राम!’ चिकरैत अपन किछु निशानीरूपी वस्त्र सब खसा देने छलीह।”

२. श्री रामजी सुग्रीव सँ ओ वस्त्र सब मँगलखिन। ताहिपर सुग्रीव ओ वस्त्र सब तुरन्त हुनका दय देलखिन। ताहि वस्त्र सब केँ अपन हृदय सँ लगाकय रामचन्द्रजी बहुत सोच करय लगलाह। हुनक ई अवस्था देखि सुग्रीव कहलखिन – “हे रघुवीर! सुनू। सोच छोड़ि दिअ आ मोन मे धीरज करू। हम सब तरहें अहाँक सेवा करब। जाहि उपाय सँ जानकीजी अपने केँ भेटि जाइथ से सब उपाय हम सब करब।”

३. कृपाक समुद्र आर बल केर सीमा श्री रामजी सखा सुग्रीवक वचन सुनि हर्षित भेलथि। आर बजलाह – “हे सुग्रीव! हमरा बताउ, अहाँ वन मे कोन कारण सँ रहैत छी?” सुग्रीव कहलखिन –

“हे नाथ! बालि आ हम दुइ भाइ छी। हमरा दुनू मे एहेन प्रेम छल जेकर वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि।”

“हे प्रभो! मय दानव केर एक पुत्र छल, ओकर नाम मायावी छलैक। एक बेर ओ हमरा लोकनिक गाम मे आयल। ओ आधा राति केँ नगरक फाटक पर आबिकय हमरा सब केँ युद्ध करय वास्ते ललकारय लागल।”

“बालि शत्रु केर बल (ललकार) केँ सहि नहि सकल। ओ दौड़ल, ओकरा देखिकय मायावी भागल। हमहुँ भाइ के संगे लागल चलि गेलहुँ। ओ मायावी एक गोट पर्वत केर गुफा मे जा घुसल। तखन बालि हमरा बुझाकय कहलक – ‘तूँ एक प’ख (पंद्रह दिन) धरि हमर बाट देखिहें, यदि हम ओतेक दिन मे नहि आबी त बुझि लिहें जे हम मारल गेलहुँ।'”

“हे खरारि! हम ओतय महीना भरि ठाढ़ रहलहुँ। ओहि गुफा मे सँ रक्त केर बड़ा भारी धारा निकलि आयल। तखन हमरा लागल जे ओ मायावी निश्चित बालि केँ मारि देलकैक, आब बाहर निकलत त हमरो मारि देत, ताहि लेल हम ओतय गुफाक फाटक पर एकटा बड़का पाथर राखिकय ओतय सँ अपन गाम घुरि गेलहुँ।”

“मंत्री लोकनि नगर केँ बिना स्वामी (राजा) केँ देखलनि, त हमरा जबर्दस्ती राज्य दय देलनि।”

“एम्हर ओहि गुफा मे बालि मायावी केँ मारिकय घुरिकय घर आबि गेल। ओ हमरा राजसिंहासन पर बैसल देखलक। एहि सँ ओकर मोन मे हमरा प्रति गलत भाव आबि गेलैक।”

“अपना मोन मे भेद बढ़ा लेलक। बहुते विरोध मानलक आ ओ बुझलक जे एहि राज्य केर लोभ सँ हम ओकरा गुफा मे बन्द कय केँ घुरि गेल छलहुँ। ओ फाटक पर शिला राखल देखि हमरे द्वारा राज्यक लोभ मे एना कयल गेल से बुझलक, जाहि सँ ओ बाहर नहि निकलि सकत आ हम आबिकय राजा बनि गेलहुँ ओ से सोचि लेलक।”

“ओ हमरा शत्रुक समान खूब मारि मारलक आ हमर सर्वस्व छीनि लेलक, एतेक तक जे हमर पत्नी पर्यन्त केँ हमरा सँ छीनि लेलक।”

“हे कृपालु रघुवीर! हम ओकर डर सँ भरि संसार मे बेहाल भ’ कय घुमैत रहलहुँ। ओ शाप केर कारण एतय नहि अबैत अछि, तैयो हम मोन मे भयभीत रहैत छी।”

४. सेवक केर दुःख सुनिकय दीन पर दया करनिहार श्री रघुनाथजीक दुनू विशाल भुजा फड़कि उठलनि। ओ कहलखिन –

“हे सुग्रीव! सुनू! हम एक्के बाण सँ बालि केँ मारि देबय। ब्रह्मा आर रुद्र केर शरण मे गेलोपर ओकर प्राण नहि बचतय।”

“जे लोक मित्र केर दुःख सँ दुःखी नहि होइछ, ओकरा देखले सँ बड भारी पाप लगैत छैक।”

“अपन पहाड़ जेहेन दुःख केँ धूरा समान आ मित्रक धूरा समान दुःख केँ सुमेरु (बड़ा भारी पहाड़) के समान बुझय, जेकरा स्वभावहि सँ एहेन बुद्धि प्राप्त नहि छैक, ओ मूर्ख हठ कयकेँ कियैक केकरो सँ मित्रता करैत अछि?”

“मित्र केर धर्म छैक जे ओ मित्र केँ खराब बाट सँ रोकिकय नीक बाट पर चलबय। ओकर गुण प्रकट करय आर अवगुण सब केँ नुकबय, देब-लेब मे मोन मे शंका नहि राखय। अपन बल केर अनुसार सदा हित टा करैत रहय। विपत्तिक समय तँ आरो सौगुना बेसी स्नेह करय। वेद कहैत अछि जे सन्त (श्रेष्ठ) मित्र केर गुण (लक्षण) ई भेल।”

“जे सामने त बना-बनाकय कोमल बात सब बजैत अछि आ पीठ पाछाँ खराब बात बजैत अछि आ मोन मे कुटिलता सेहो रखैत अछि, हे भाइ! एहि तरहें जेकर मोन साँपक चाइल जेकाँ टेढ़ छैक एहेन कुमित्र केँ त त्यागे करय मे भलाइ अछि।”

“मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री आर कपटी मित्र – ई चारू शूल केर समान पीड़ा दयवला अछि।”

“हे सखा! हमर बल पर आब अहाँ चिन्ता छोड़ि दिअ। हम सब प्रकारे अहाँक काज आयब, अहाँक सहयोग करब।”

हरिः हरः!!