सन्तान आ जनक – एक छोट परञ्च महत्वपूर्ण दर्शन

सन्तान आ जनक
 
जखन-जखन चिन्तन करब आ स्वयं पर केन्द्रित होयब त पता लागत जे हम-अहाँ वास्तव मे के छी। के छी हम-अहाँ? हम प्रवीण, हम वन्दना, हम पंकज, हम कल्पना, हम रूबी त हम रंजना… ई ‘हम आ विभिन्न नाम’ यथार्थतः एहि सुन्दर संसारक सुन्दर सन्तान सब छी। सन्तान जँ अपन कर्तव्य बुझि जाय जे हमरा कि करबाक अछि त माता-पिता कतेक खुश भ’ जाइत छथि सेहो अनुभव हम-अहाँ करिते छी। यदि सन्तान माता-पिताक कहल मे नहि रहैछ त माता-पिता कतबा कष्ट के अनुभव करैत छथि सेहो अनुभूति अछिये। बस, यैह थिकैक आत्मचिन्तनक प्रखर रूप! जँ हम सन्तान अपन परमपिताक प्रसन्नताक ख्याल नहि राखब त कहू ओ परमपिता परमेश्वर जिनका हम-अहाँ अनेकों रूप मे पूजा-पाठ आ विनती-अर्चना सब करैत रहैत छी से कहियो खुश हेता? जखन हम साधारण मानव माता-पिता अपन मानवीय सन्तानक अमानवीयता सँ एतबा कष्ट पबैत छी, एकदम तंग-तंग भ’ बेचैन भ’ गेल करैत छी, बच्चा सब केँ बेर-बेर बुझाबय लगैत छी – तहिना अदृश्य शक्तिरूपी परमपिता परमात्मा सेहो हमरा सब सन सन्तान केँ अल्टर-फल्टर करैत देखि बेचैन होइत छथि, ओ नहि चाहैत छथि जे हम-अहाँ कखनहुँ मर्यादाक विपरीत कोनो काज करी… ओ बेर-बेर चेतबैत छथि, बुझेबाक चेष्टा करैत छथि, नीक सत्संग प्राप्ति लेल प्रेरित करैत छथि, छोट-मोट दण्ड सेहो दैत छथि… आ जखन एहि सब के बादो हम-अहाँ अपन कर्तव्य सँ विमूख रहब त फेर रूग्णता आ क्षीणता आबि बुद्धि-स्मृति केँ सर्वनाश करैत पतनोन्मुख बनेबे टा करत।
 
ई सूत्र कहैत छैक जे स्वयं केँ सन्तान आ परमपिता परमेश्वर केँ पूज्य माता ओ पिताक रूप मे सदिखन राखू। कखनहुँ हुनका (मातापिता केँ) दुःखी नहि करू।
 
एकटा स्थिति आर बहुत मननीय अछि। की? जहिना अबोध बच्चा सदिखन अपन माय-बाबू पर निर्भर रहैछ आ कनियो टा बात लेल ‘म्या-म्या’ चिचियाइत अछि, ‘बाप-बाप’ करैत अछि, आ ओ म्या या बाप तुरन्त ओकर आकांक्षा केँ पूरा करैत छथि; ठीक तहिना एक अबोध आ निरीह जेकाँ परमपिता परमात्मा सँ हम आत्मारूपी जीव सम्बन्ध केर जड़ि केँ खूब नीक सँ बुझी। फर्क एतबे छैक जे एक माता-पिता शरीरधारी सगुण रूप अनिवार्य ईश्वर छथि, दोसर अदृश्य लेकिन परम शक्तिशाली आ सम्पूर्ण सिस्टम केर संचालनकर्त्ता भगवान छथि जिनका ऐच्छिक ईश्वर कहल जाइत छन्हि। आब बात आयल अनिवार्य (कम्पलसरी) आ ऐच्छिक (औप्शनल) ईश्वर केर – त कहि दी कि अनिवार्य प्रथमतः पूज्य छथि लेकिन ऐच्छिक सेहो अनिवार्य रूप सँ पूज्य बुझि जीवन जियब त जीत आ सफलता तय अछि। ओना, अनिवार्य ईश्वर प्रति सम्पूर्ण आस्था आ विश्वास रखनिहार स्वाभाविक रूप सँ परमपिता परमेश्वर केर दुलार पेबे करत, कारण अनिवार्य ईश्वरक विधान केर निर्माता वैह छथिन। अस्तु!
 
आइ शनि दिन थिकैक, २७ मई २०२३ ई.। हम मैथिल सन्तान अपन मैथिल पिता आ परिजन प्रति पूर्ण वफादार बनि जे कय सकब से नीक होयत। केकरो संसार मे अपना सँ इतर नहि बुझब। हम सब आत्मारूपी जीव एक पिताक सन्तान छी। लेकिन, सच ईहो छैक जे अफ्रीका के कौम्बो मे जन्म लेल हमर सहोदर अफ्रीकन सँ हमरा भेंट कहिया होयत, ताबत अपन मिथिलाक सहोदर मैथिल सन्तान लेल किछु जरूर करब से संकल्प लय ली। दहेज कुप्रथा सँ त्रस्त समाज केँ बचेबाक लेल कनी अपन कर्तव्य सब कियो बुझि लेब आ तदनुसार किछु काज कय देबय त अपन मातृभूमि जय-जय भ’ जायत। ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!