विचार
– अंजू झा
आइ आदरणीय भाइ प्रवीण नारायण चौधरीक एकटा लेख “अपने सब मिथिला सँ छी, लेकिन ई की?” शीर्षक सँ दहेज मुक्त मिथिला समूह मे पढ़लहुँ। एहि लेख मे मैथिल ब्राह्मण समुदाय ओतय भ’ रहल ब्राह्मणक संस्कार मे अश्लील-फूहड़ गीतक व्यवहार पर किछु आक्रोश दृष्टिगत भेल जे स्वभाविक बुझायल। एक दिश वेदारम्भक उच्च संस्कार ‘उपनयन’ आ दोसर दिश अपभ्रंश सँ भरल आडम्बरी व्यवहार – अपन संस्कृति लेल समर्पित मनुष्य केर आवेशित-आक्रोशित होयब स्वाभाविके छैक। समाज मे आबि रहल एहि तरहक बदलाव पर ओ किछु समाज सँ सवालो पुछलथि अछि। आखिर एकर जिम्मेदार के? मिथिला समाज पर अपन शोध-अध्ययन अनुरूप हमहुँ किछु कहय चाहैत छी।
हम आइ अपन जीवनक लगभग 30-35 सालक अनुभव अपन मिथिला समाजक संस्कार आ आबि रहल बदलाव बारे मे लिखि रहल छी। ई हमर निजी अनुभव अछि, सबगोटे एहि सँ सहमत होइथ से जोर नहि देब। तथापि अपन अनुभव साझा कय रहल छी। एक बात जरूर कहब जे हम सब आधुनिकता मे जिबय के संग अपन संस्कृति प्रति समर्पित आर ओकरा जिबन्त रखबाक पक्षधर छी।
जतय धरि मैथिली साहित्यक बात अछि त ओहि पर सतत कार्य होइत रहल, पहिले यात्री जी, हरिमोहन झा, आदि समान महान लेखकक संग वर्तमान पीढ़ीक लेखक-लेखिका अपन लेखनीक माध्यम सँ मिथिला समाजक वस्तुस्थिति, कला-संस्कृति, लोकव्यवहार आदि विभिन्न पक्ष पर निरंतर लेखन करैत आबि रहल छथि। लेकिन जतय अपन धरोहर (संस्कृति) केँ बचेबाक बात अछि ताहि ठाम बड पैघ प्रश्नचिन्ह लागि गेल, एना हमरा लगैत अछि। हम ओहि सम्बन्ध मे किछु लिखय चाहब।
सब सँ पहिने एहि सोशल मीडिया केँ धन्यवाद देबय चाहब, बल्कि हम एकर ऋणी छी जे एहि के माध्यम सँ बहुतो लोक अपन रीति-रिवाज, अपन ललित कला, अपन संस्कृति आदि सँ अवगत भऽ रहल छथि। आ, किछु लोक अपन परिवारक संग लगभग मृत अबस्था मे पहुँचि चुकल अपन रीति-रिवाज केँ बचेबाक कोशिश मे सेहो लागि गेल छथि।
पुरुष तँ पहिनहुँ अपन नौकरीक चक्कर मे देश कि विदेशहु धरि पहुँचि चुकल छलाह, किछु अपनहि देशक विभिन्न भाग मे नौकरी कयलनि त किछु परिवारक बाकी सदस्यक संग गामहि मे रहलथि। धरि हमरा याद अछि, करीब 30-40 वर्ष पूर्वक कालक्रम मे हमरा जनैत अपन मिथिला सँ मैथिल ब्राह्मण सहित विभिन्न अगुआ समुदाय सभक पलायन तीव्र गति पकड़ि लेलक। एक सँ दू, दू सँ चारि आ फेर गामक-गाम खाली होमय लागल। कनियाँ-बच्चा सबकेँ सब संग राखय लागल। गाम छोड़ि लोक नव-नव शहर सब मे अपन नव बसेरा बसाबय लागल। एहि तरहें मिथिलाक गाम-समाजक लोक शहरक बासिन्दा बनि गेल।
एहि लोकपलायनक आर असरि त जे सब पड़ल से सामाजिक विमर्श मे चर्चा कयले जाइछ, हम अपन नजरि सँ जे खास परिवर्तनक नोटिस (संज्ञान) लेललहुँ तेकर एक झलक पाठक लोकनिक समक्ष राखि रहल छी। भेल ई जे गाम छोड़ि शहर के बासिन्दा बनली कनियाँ-मनियाँ सब जखन काजे-प्रयोजने कहियो गाम-समाज घुरिकय आबथि त हुनका सभक भाव-भंगिमा एकदम बदलि गेल करन्हि। हुनका सभक प्रस्तुति सँ हुनक स्थिति एहेन बदलि गेलनि जेना ओ मिथिलाक गाम-समाज आ एकर परिवेश सँ एकदम अन्जान (अनभिज्ञ) होइथ।
मिथिलाक अपन मौलिक संस्कृति मे गीतनाद तक सँ ओ लोकनि किनार भ’ गेलीह। कोनो अवसर पर गीतनाद होइ त ओ सब बाजल करथि जे हम गाम मे नै न रहैत छी, तेँ ई गमैया गीत गेनाय नहि अबैत अछि। अरिपन पाड़ब या आने कोनो विधक जानकारी पर्यन्त सँ ओ सब असमर्थता जतायल करथि। हुनका सभक बॉडी लैंग्वेज (शारीरिक अभिव्यक्ति-भाव) बिल्कुले बदलि गेल रहनि। ओ गाम सँ जुड़ल कोनो बात मे अपन सहभागिता देनाइ मतलब देहाती भेनाइ बुझथि। जे अपन जीवनक 25-30 सालक गृहस्थी चुल्हा पर भानस करय मे, चिपड़ी पाथय मे, मालजाल आदिक रेख-देख करय मे बितौलनि, ओहो सब साल-दुइ-साल मे बेलायती (अंग्रेज) बनि जाय गेलीह। बच्चा सब सँ त मैथिली मे बाजय के मतलब गंवारपन के पराकाष्ठा भेलैक, तेहेन चारित्रिक प्रस्तुति राखय लगलीह।
आधुनिकताक देखाबा मे अपन मौलिक (मूल) संस्कार केँ जानि-बुझि कय बिसरा देलीह। अपन विध-व्यवहार करय मे, पारंपरिक गीतनाद गाबय मे, लाज लगैत छलन्हि, शहरीपन पर धब्बा बुझाइत छलन्हि। ई होइत छलन्हि जे शहर मे रहबाक प्रतिष्ठा पर बट्टा लागि जायत। एहि सब बदलाव केर मुख्य जिम्मेदार 99% स्त्री समाज छलीह। अपनो लोक संग मैथिली मे बाजय मे हीनताबोध होइत छलन्हि हिनका सब केँ। मैथिल मैथिलानी कहबय के मतलब सबसँ पिछड़ल होयब – एहेन सोच भऽ गेल छलन्हि। ओकरे परिणाम अछि जे आब “मैथिली बाजू – मैथिली पढ़ू”, ताहि सभ लेल अभियान (मुहिम) चलेबाक जरूरत भ’ गेल अछि आइ। कतेको लोककला आ लोकपाबनि सब जेना सामा चकेबा, जट-जटिन, अनन्त पूजा, चौरचन, आदि आब अपन आखिरी साँस लय रहल अछि। नवान्न (लवान) लेल चीपड़ी, लवानक चूरा, जीतियाक ओठगन, ई सब तऽ लगैया पुरान नानीक खिस्सा भ’ भेल।
विडंबना ई जे पंजाबी, मराठी, बंगाली, मद्रासी आदिक संस्कृति केँ अपनेलहुँ, ओकर ढ़मढ़म ढोल बाजे पर 60 बरिस केर दादी-काकी केँ ई कहिकय नचेलहुँ जे तोहूँ देहातिये रहि गेलें, लेकिन अपन शुभ अवसर परक गीतनाद, सोहर, समदाउन, समर, चैती, लगनी, बटगवनी सभक भास बिसरि गेलहुँ, ओ गाबय के मतलब गंवारपन, देहाती महिला छथि, से बुझल जायत। कखन मिथिला केँ नव वरक परिधान ललका धोती-कुर्ता आ पाग-दोपटा उतरि गेल आ शेरवानी-सेहरा ओकर जगह आबि गेल से कियो नहि बुझलहुँ। अपन संस्कृति-संस्कार केँ एहेन दुर्गति भेल जेकर भरपाई करय मे आब बुझाइत अछि जे कतेको पुश्त लागि जायत।
तखन त ओ कहबी छैक न जे सभक दिन घुरैत छैक, से आब मिथिलोक संस्कार केर दिन घुरि रहल बुझाइत अछि। जँ स्त्रीगण एकरा मारलैथ तऽ स्त्रीगणे सब मिलिकय एकरा फेर सँ जियेबाको कोशिश मे लागल छथि। पुरुष सब सेहो अपन संस्कृति संस्कार बचेबाक मुहिम चलबैत देखा रहल छथि। जेतय 30 साल पहिने अपन रीति-रिवाज मनेनाय गंवारापन छल ओतहि आबक पीढ़ी विधिवत पूजा होबय लागल अछि, सब विध बड़ा ढंग सँ निभायल जा रहल अछि। हँ, तखन सोशल मीडिया पर फोटो देबाक लोभ सेहो एहि मे पैघ भूमिका निभा रहल बुझि पड़ैत अछि। आब त अपना आप केँ सबसं पैघ मिथिलानी देखेबाक होड़ मचल बुझि पड़ैत अछि, ई अपन मूल-मौलिक संस्कार केँ बचेबाक लेल नीक मानि सकैत छी। एखुनका बच्चा सबमे अपन संस्कृति प्रति जागरूकता संग-संग आत्मगौरवक बोध बढ़ा रहल अछि। आब सब कियो अपन-अपन सामर्थ्य अनुसार एकरा बचेबाक कोशिश करय मे लागि गेल छथि। नवतुरिया सब नव-नव व्यवहारिक गीतक रचना सेहो करय लागल छथि। आबक बच्चा सबमे अपन मिथिला-मैथिली प्रति जागरूकता देखल जा रहल अछि। अपन संस्कार केँ बचेबाक लेल ई परिदृश्य बहुत नीक मानि सकैत छी। एहि सब केँ बढ़ावा भेटल सोशल मीडिया पर एक-दोसर संग विचार आदान-प्रदान आ प्रेरणाक संचरण सँ, अपन समाजक उत्थान लेल देल गेल नव संकल्प आ नव ऊर्जा सहितक इच्छाशक्ति सँ।
अंत मे यैह कहब जे आब बहुत लोकक मानसिकता मे परिवर्तन एलन्हि अछि। जे बीति चुकल ओकर भरपाई आबयवला समय मे सब मिलिकय करी, समय जरूर लागत, लेकिन विश्वास अछि जे अपन कला-संस्कृति केँ बचबय मे हम सब सफल जरूर होयब। जय मिथिला जय माँ जानकी!! 🙏