“मिथिला अपन समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर,जीवंत परंपरा आ एकटा अद्वितीय कलात्मक विरासतक लेल प्रसिद्ध अछि |”

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— भावेश चौधरी।     

मिथिलांचल अपनऽ समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर,जीवंत परंपरा आ एकटा अद्वितीय कलात्मक विरासत के लेलऽ प्रसिद्ध अछि | मिथिलाक लोक में परंपरा आ आधुनिकताक संग एकटा प्रगाढ़ संबंध अछि,जे हुनक सामाजिक, सांस्कृतिक आ कलात्मक प्रथा मे परिलक्षित होइत छनि| ई क्षेत्र अपनऽ विशिष्ट कला रूप लेल प्रसिद्ध भेल, जेकरा “मिथिला पेंटिंग” के नाम स॑ जानलऽ जाय छै। ई लोक कला केऽ एकटा वृहद रूप छै ,जेकरा विश्वव्यापी रूप स॑ पहचान भेटलऽ छै ।
मिथिला समाज परंपरा मे गहीरगर पैर जमा लेने अछि आ ऊपर सऽ समुदायक भाव प्रबल अछि । मिथिलाक लोकक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर अछि जे पीढ़ी दर पीढ़ी चलैत आबि रहल अछि । मुदा हाल के समय में आधुनिकीकरण आ वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण मिथिला में बेसी परिवर्तन भेल अछि |आधुनिकता आ परंपराक बीचक संबंध मे गहराई स उतरबा लेल दुनू अवधारणा कए परिभाषित करब बहुत जरूरी अछि । आधुनिकता प्रगति, तकनीकी उन्नति, आ नया विचारऽ के अपनाबय स चिह्नित समकालीन युग के प्रतिनिधित्व करैत छै । दोसरऽ तरफ परंपरा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलै वाला रीति-रिवाज, मान्यता, आर प्रथा के मूर्त रूप देलऽ जाय छै, जेकरा स॑ कोनो समाज के सांस्कृतिक आधार बनी जाय छै ।
पारंपरिक जीवन पद्धति धीरे-धीरे आधुनिकता के जगह द रहल अछि,आ एहि स परंपरा आ आधुनिकता के बीच एकटा जटिल संबंध के जन्म भेल अछि।
एक दिस एहन लोक छथि जे अपन पारंपरिक मूल्य स मजबूती स जुड़ल छथि आ परिवर्तनक प्रतिरोधक छथि। दोसर दिस एहन लोक छथि जे आधुनिकता केँ अपनाबैत छथि आ नव विचार आ व्यवहार अपनाबय लेल आतुर छथि । परम्परा आ आधुनिकताक ई दूविधा मिथिला समाज मे तनाव उत्पन्न केने अछि। आ कतेको एहन लोक छथि जिनका डर होइत छनि जे एहि क्रम मे एहि क्षेत्रक सांस्कृतिक पहिचान हेरा सकैत अछि ।
मुदा, ई ध्यान राखब जरुरी अछि जे परंपरा आ आधुनिकता असंगत होयब जरूरी नहिं. दुनूक बीच संतुलन बनेबाक आवश्यकता अछि, आ एतहि सँ संजस्य(सद्भाव) वा सामंजस्यक अवधारणा काज मे अबैत अछि । सामंजस्य परम्परा आ आधुनिकताक बीच संतुलन ताकबाक विचार अछि, आ ई मिथिला समाजक एकटा प्रमुख तत्व थिक |

मिथिला समाज मे संजस्यक एकटा उदाहरण अछि मिथिला चित्रकला के, जे तरीका स समय के संग विकसित भेल अछि | ई पेंटिंग एकटा पारंपरिक कला अछि जे मिथिला मे सदियो स प्रचलित अछि। लेकिन हाल के समय में कला रूप के आधुनिक बनाबै के आर एकरा व्यावसायिक रूप सऽ अधिक व्यवहार्य बनाबै के प्रयास करलऽ गेलऽ छै । एहि सँ नव तकनीक आ सामग्रीक प्रचलन भेल अछि, आ एकर परिणाम मधुबनी चित्रकलाक बेसी समकालीन शैलीक निर्माण भेल अछि | मुदा, कला रूप जेना-जेना विकसित भेल अछि, तहिना ई अपन पारम्परिक तत्व केँ बरकरार रखने अछि आ मिथिला संस्कृति मे गहीर जड़ि जमा लेने अछि ।
संजस्यक एकटा आओर उदाहरण, मिथिला समाज जाहि तरहें तकनीक केँ अपना लेलक अछि ,ताहि मे देखल जा सकैत अछि । जेतय एक तरफ एहन लोग छैथ ,जे बदलाव के प्रतिरोधी छै आर तकनीक के पारंपरिक जीवन पद्धति लेल खतरा के रूप में देखै छैथ, ओतय एहनो लोग सेहो छैथ ,जे तकनीक के अपनऽ जीवन आरू दोसरऽ के जीवन के बेहतर बनाबै के अवसर के रूप म॑ देखै छैथ। जेना मोबाइल फोन आ सोशल मीडिया के प्रयोग स मिथिला के लोक के एक दोसरा स जुड़ब आ सूचना आ सेवा तक पहुंचब आसान भ गेल अछि।आधुनिकीकरणक बादो मिथिला समाज अपन पाबनि-तिहार आ समय-सम्मानित संस्कारक निर्वाह करैत रहैत छथि। छठि पूजा आ दुर्गा पूजा सन पावनि सामाजिक ताना-बाना के अभिन्न अंग बनल अछि, जतय समुदाय एक संग आबि अपन देवता के सम्मान करैत आ बंधन के मजबूत करैत छथि ।
निष्कर्षतः याह संतुलन अछि जे मिथिला समाज के अपन विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर के रक्षा करैत आगू बढ़ैत रहय मे सक्षम बनाओत।