लोकसंस्कृति-पूजापाठ
– बिभा झा
अपना सभक सबटा पाबनि आस्था आ विश्वास सँ जुड़ल रहैत छैक। बरसाइत पाबनि सेहो अहिवातक लेल, विशेष कऽ मिथिलाक लोक करैत छथि। मिथिलाक सब पाबनिक विशेषता छैक जे इ पाबनि कोनो घटना अथवा कथा पर आधारित रहैत छैक। आजुक दिन होमय बला बट सावित्री व्रत सदा सोहागिन सँ सम्बंधित पाबनि केर माहात्म्य (कथा) सेहो एहने छैक। हम अपन बुढ़िया दीदी सँ ई कथा सुनने छी। ओ एहि प्रकार सँ अछि –
एक टा गाम मे एकटा ब्राह्मण अपना कनियाँ और सात टा पुत्र संगे खुशी-खुशी रहैत छलाह। हुनका घर के चौका मे चिनवार लग एक टा नाग-नागिन बिल बना कय रहैत छल। ब्राह्मणक कनियाँ साँपक डरे प्रतिदिन भात पसेलाक बाद ओकर गरम माँर साँपक बिल मे ढारि दैत छलथि जाहि सँ साँपक सबटा पोआ (बच्चा ) सब मरि जाइत छलैक। निरंतर अपन पोआ सब केँ मरला सं क्रोधित भय नाग–नागिन एक दिन ब्राह्मण केँ श्राप देलखिन जे “जेना अहाँ हमर बच्चा सब केँ मारलहुं तहिना अहाँक वंश के सबटा बच्चा सब साँप के कटला सँ मरि जायत“।
समयांतराल मे ब्राह्मणक बड़का बेटाक हर्षोल्लास सँ विवाह भेलनि। विवाहोपरांत ब्राह्मण बेटा कनियाँ के द्विरागमन करा अपना घर दिश बिदा भेलाह। रास्ता मे किछु काल सुस्तेवा लेल एक टा वट वृक्षक नीचाँ दुनू बर-कनियाँ बैसलाह। ओहि गाछक जड़ि मे एकटा धोधैर छल जाहि मे नाग-नागिन रहैत छलथि। नाग-नागिन धोधैर सँ निकलि दुनू बर-कनियाँ केँ काटि लेलखिन जाहि सँ दुनू गोटेक मृत्यु भय गेलनि। ब्राह्मणक घर मे दुःखक पहाड़ टूटि पड़ल। अहिना क’ ब्राह्मणक छ्हो पुत्र के एक-एक कय सर्प-दोष सँ मृत्यु भय गेलनि। ब्राह्मण–ब्राह्मणी चिन्तित रहय लगला आ अपन छोटका बेटा केँ हमेशा अपना आँखिक सोझाँ राखैत प्राण रक्षा करय लगलाह। बेटा केँ सदिखन झाँपि-तोपिकय राखथि जाहि सँ कतहु साँप–बिच्छु नहि काटि लैन्हि।
ब्राह्मणक बेटा जखन पैघ भेलाह त धनोपार्जन हेतु घर सँ बाहर जेबाक लेल जिद करय लगलाह। पहिने त हुनकर माता-पिता हुनका बाहर पठेबाक लेल तैयार नहि होइथ, फेर बेटाक जिद पर एकटा शर्त पर राजी भेलथि जे बेटा हमेशा अपना संग मे एकटा छाता आ जूता रखता। शर्त मानिकय ब्राह्मणक बेटा घर सँ बिदाह भेला। जाइत-जाइत एकटा गाम लग पहुँचला, गामक बाहर एकटा धार छल, ब्राह्मण बेटा जूता पहिर लेलथि आ धार केँ पार करय लगला। तखनहि गामक किछु लड़की सभक झुण्ड सेहो धार पार कय रहल छलीह। सब सखि लोकनि ब्राह्मणक बेटा केँ जूता पहिरि पानि मे जाइत देखि ठठाकय हँसय लगलीह आ कहय लगली जे – “हे देखू सखी सब! केहेन बुरबक छथि ई ब्राह्मण बेटा जे पानि मे जूता पहिरने छथि।“ ओहि झुण्ड मे एकटा ‘सोमा’ नामक धोबिनक बेटी सेहो छलीह, ओ सखी सबकेँ अपन तर्क देलीह जे – “हे सखी! नहि बुझलौं, ब्राह्मण बेटा पानि मे जूता एहि दुआरे पहिरने छथि जे एहि सँ पानि मे रहयवला साँप–कीड़ा हुनकर पैर मे नहि काटि लैन्हि।”
ब्राह्मण बेटा ओहि लड़कीक तर्क सुनि मोने-मोन खूब सन्तुष्ट आ प्रसन्न भेलाह। धार पार कय सब गोटा आगू बढ़ल, रौद बड बेसी छलैक, मुदा ब्राह्मण बेटा छाता अपना कांख तर दबने रहला। सब सखी लोकनि ई देखि मुँह झाँपि हँसैत रहली आ सोचैत रहली जे एतेक रौद रहितो ई केहेन मनुख छथि जे छाता काँख तर दबाकय रखने छथि। रौद बहुते छल, ताहि पर गामक ऊबर-खाबड़ रस्ता! सब गोटे चलैत-चलैत थाकि गेलथि। रस्ता कात मे एकटा विशाल बरगदक गाछ देखि सब गोटे ओहि छाया मे सुस्तेवा लेल गाछ तर बैसि रहलथि। ब्राह्मण बेटा गाछ तर बैसिते अपन काँख तर दबायल छाता खोलि अपना उपर तानि लेलनि। सखी लोकनि ई देखि फेर जोर-जोर सँ हँसय लगलीह आ कहय लगलीह – “देखियउ! ई मनुख केँ रौद छल त छाता कांख तर दबेने छलथि आ आब जखन गाछक छाहरि मे बैसल छथि त छाता तनने छथि।“
सोमा जे ब्राह्मण बेटा केँ बहुत ध्यानपूर्वक सब गतिविधि करैत देखि रहल छलीह, फेर अपन तर्क देलखिन – “हे सखी सब! अहाँ सब फेर नहि बुझलहुँ, ई ब्राह्मण बेटा गाछ पर रहयवला साँप-कीड़ा सँ अपना केँ बचेबाक लेल गाछ तर छत्ता तनने छथि।“ ब्राह्मणक बेटा जे बड़ीकाल सँ सोमाक तर्क सुनैत रहथि, ओकर बात सँ ततेक प्रभावित भेलथि जे सोचय लगलैथ कि अगर विवाह करब त एहि चतुर कन्या सँ करब। ब्राह्मण बेटा गामक धोबिन लग गेला आ कहलखिन जे हम अहाँक चतुर बेटी सोमा सँ विवाह करय चाहैत छी। धोबिन तैयार भय गेलीह आ खुशी–खुशी दुनू के विवाह कय देलखिन। जखन विदागरीक समय आयल त सोमा धोबिन कहलखिन जे – “हे बेटी! हम त गरीब छी, हमरा लग धन–सम्पत्ति त किछु नहि अछि, अहाँ केँ हम विदागरी मे कि दिय’?” सोमा ताहि पर उत्तर मे कहलखिन जे – “हे माय! अहाँ हमरा किछु नय मात्र कनि धानक लाबा, कनी दूध, बोहनी आ एकटा बिऐन दिय’ आ आशीर्वाद दिय’ जे हम अपना पति आ हुनकर वंश वृद्धि मे सहायक होइयनि।”
सोमाक माय सब चीज जे हुनकर बेटी कहने रहथिन से ओरियान कय केँ देलखिन आ आशीर्वाद दय दुनू वर-कनियाँ केँ बिदा केलखिन। ब्राह्मण बेटा अपना कनियाँ केँ लय अपन गाम दिश चलय लगलाह। चलैत-चलैत जखन दुनू गोटा थाकि गेला त सुस्तेवाक लेल एक टा बरगदक गाछ केर नीचाँ मे रुकि गेलाह। सोमा अपन माय के देल सबटा समान गाछक नीचाँ मे राखि अपना वर संगे आराम करय लगलीह। ओहि बरक जड़ि मे एकटा नाग अपन नागिन संगहि बिल मे रहैत छल। गाछक जड़ि लग दूध, लाबा, आ बोहनी मे राखल पानि देखि नाग केँ भूख आ प्यास जागि गेलनि। नाग अपना बिल सँ निकलि बाहर जेबाक लेल व्यग्र भ’ गेलाह। नागिन बेर-बेर मना कयलथि मुदा नाग नहि मानलनि आ बाहर आबि जहिना बोहनी मे राखल पानि केँ पिबाक लेल मुंह देलखिन, आ कि सोमा नाग समेत बोहनी केँ हाथ सँ पकड़ि अपन जाँघ त’र दाबिकय राखि लेलीह। नाग कतबो प्रयास कयलथि मुदा ओहि सँ नहि निकलि पेलाह।
जखन बहुत काल बिति गेलाक बादो नाग घुरिकय नहि अयलाह तखन नागिन बाहर निकलली आ देखली जे नाग केँ एकटा नव कनियाँ पकड़ने अछि। नागिन ओकरा सँ कहलखिन जे नाग केँ छोड़ि दियौन, मुदा सोमा नहि मानलखिन। नागिन केर निरन्तर अनुनय-विनय उपरान्त सोमा एकटा शर्त रखलखिन। “हे नागिन! हम अहाँक पति नागराज केँ तखनहि छोड़बनि जखन अहाँ हमरा पति आ हुनकर वंश केँ सर्प-दोष सँ मुक्त करब। संगहि हुनकर छबो भाइ केँ जे सर्पदोषक कारण मरि गेल छथि हुनका सब केँ पुनः जिबित कय देबनि।“ नागिन विवश छलीह। सोमाक शर्त मानि लेलीह। नागिन स्वर्ग सँ अमृत अनलीह आ ब्राह्मणक छ’बो पुत्र, पुत्रबधू केँ जिबित कय सर्प–दोष सँ मुक्त कय सब केँ आशीर्वाद देलखिन। तखन जा कय धोबिन बेटी नाग केँ छोड़लखिन। और अपन करनी लेल क्षमा माँगि नाग–नागिन केँ प्रणाम कयलखिन। तखन नाग-नागिन ब्राह्मणक सबटा पुत्र आ पुत्रबधू सबकेँ आशीर्वाद दैत कहलखिन – “जेठ मासक अमावश्या दिन विवाहित कनियाँ सब जँ बरक गाछ केर पूजा करती आ विष-विषहरा केँ दूध-लाबा चढ़ाकय पूजा करती तँ हुनका लोकनिक सोहाग अखण्ड रहतनि। “
नाग-नागिन सँ आशीर्वाद लय ब्राह्मणक सातो पुत्र आ सातो कनियाँ जखन अपना घर पहुँचलथि त ब्राह्मण–ब्राह्मणीक खुशीक ठिकाना नहि रहलनि, दुनू गोटे धोबिनक बेटी सोमा केँ बहुते रास आशीर्वाद देलीह। आर सब गोटे प्रसन्नतापूर्वक रहय लागलथि। जय मिथिला जय मैथिली!!