शुद्धता-अशुद्धताक प्रसंग
मैथिली बोली आ लेख्यरूप मे फर्क के चर्चा सरेआम चलैत छैक। जे विधिवत् पढाइयो नहि कयलक ओहो सब शुद्ध-अशुद्धक फेरा मे पड़ि गेल करैत अछि। पढाई करबय हिन्दी, अंग्रेजी, नेपाली, बंगाली, आदि आन-आन भाषा के आ बुद्धि बघारबय मैथिली के त दुर्घटना हेब्बे करत। हमर मानब अछि जे विधिवत् पढाई कयल लोक जँ शुद्ध-अशुद्ध के विमर्श मे फँसैत छथि त हुनका फँसय देल जाय, अपने लोकनि सामान्यजन एहि मे नहि ओझराउ। ओझरेबाक प्रयास किछु लोक करबो करथि त नहि ओझराउ। ई अहाँक मातृभाषा छी। अहाँ जेना लिखि सकी, लिखू। आइ सोशल मीडिया मे लेखन बेसी भ’ रहल छैक आ मैथिलीक दिन सेहो नीक भ’ रहल छैक। किताब मे लिखलहबा वस्तु समुचित बाजार, वितरण, प्रचार-प्रसार, मैथिली साहित्यक महत्व सँ कम जुड़ाव आदिक कारण अत्यल्प या नगण्य मात्रा मे मात्र पढ़ल जाइत देखबय। लेकिन सोशल मीडिया आ वेब पत्रिका सभक कारण मैथिली सामग्री सब खूब पढ़ल जा रहलैक अछि। मैथिलीभाषी मे एकटा नव प्राण के संचरण भ’ रहल अछि। ताहि समय किछु सुविज्ञ सब भाषाक स्तर मे ह्रास आदिक शिकायत एम्हर-ओम्हर दर्ज करबैत छथि, से हुनकर चिन्ता हुनका जगह पर नीक अछि। अहाँ-हम जे सामान्य पढ़ल-लिखल लोक अपन मातृभाषाक प्रेम मे समर्पित छी, से कृपया एहि शुद्ध-अशुद्ध के चक्कर मे नहि पड़ी।
हमरा आदि शंकराचार्यक एकटा महत्वपूर्ण आख्यान मोन पड़ैत अछि – अपन काशी यात्रा मे रहबाक क्रम मे अपन सम्बोधन देलाक बाद कियो व्याकरणाचार्य आ किछु विद्वान् लोकनि आपस मे खुसर-फुसर बात करैत देखलखिन जे भाषिक शुद्धता पर केन्द्रित रहैक। ओहि व्याकरणाचार्य व विद्वान् लोकनिक मतानुसार आदि शंकराचार्यक भाषा मे वैयाकरणिक शुद्धताक अभाव रहैक, ताहि पर ओ सब विस्मित भ’ आपस मे चर्चा कय रहल छलथि। बात शंकराचार्यक समझ मे आबि गेलनि। ओ व्याकरणाचार्यक अवस्था देखलखिन, लगभग जीर्ण भ’ चुकल वृद्ध रहितो अपन विषय प्रति हुनकर ध्यान केन्द्रित हेबाक बात केर प्रशंसा करितो शंकराचार्य बड़ा विनम्र भाव सँ भरि हुनका संग समस्त सभासद समक्ष एकटा सुन्दर भजन गओलनि।
“भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते”
एहि सम्पूर्ण भजन मे ओ बहुत रास बात अपन जीर्ण अवस्था आ ताहि मे विषय संग लगाव, विषय प्रति अतिशय ममत्व-महत्व आदिक चर्चा करैत शुद्धता-अशुद्धताक सीमा सँ ऊपर केवल भजबाक भाव प्रधान हेबाक सन्देश देलखिन।
आब जखन हम सब अपन मातृभाषाक अत्यन्त दुर्दिन देखिये रहल छी जे लोक अपन सन्तान सँ अन्य भाषा मे बाजि रहल छथि, बाजार आ व्यवहार मे आन भाषा बाजि रहल छथि, अपन आत्मा पर्यन्त सँ आत्मीयता छोड़ि आन भाषा मे रिझेबाक कुचेष्टा कय रहल छथि, तेहेन जीर्ण अवस्था मे शंकराचार्यक सन्देश भरल ‘भजन भाव प्रधान’ केर सन्देश मात्र ग्रहण करू आ अपन मातृभाषा – एक अत्यन्त प्राचीन ओ समृद्ध भाषा ‘मैथिली’ केँ बचाउ।
दुर्दिन त एहेन अछि जे अपना केँ बड़का नेता कहबैका सब समाज केँ जातीयता के नाम पर तोड़ि अपन गोटी सुतारि रहल अछि आ ओ महामूढ़ लोक भाषा पर अनधिकृत भाषणबाजी करैत भाषा केँ जातीय आधार पर वर्गीकृत कय रहल अछि। अहाँ मनन करू – बिना समुचित योग्यता के कियो अधिकारी नहि बनैत अछि कोनो अधिकृत बात (बयान) बजबाक। लेकिन आइ त सब बात होइत छैक वोटबैंक सँ, सत्ता के खेल-वेल वोट सँ होइत छैक। तेँ धूर्तइ करू, षड्यन्त्र करू, चुगली करू, निन्दा करू, समाज केँ तोड़ू-फोड़ू, जे करबाक हो से करू… बस सींग मे तेल ढारि समाज मे सामान्य लोकक मन-मस्तिष्क मे आगि लगेने रहू। सभक माथा केना गरम हेतैक, केना ओहि लोकरूपी गरम माथाक त’व पर सत्ता हासिल करयवला रोटी पाकत, ततबे मे ओ बेहाल रहत। सार, अपने मे लड़िकय नहि मरल त कहब अहाँ सब। आबि गेल छय ओहो दिन। बहुत जल्दी समाज मे ओकर केलहा के दुष्परिणाम सब देखबय। लेकिन, नीक लोक सब दिन बचल आ बचबे करत। से सोचि अपन मातृभाषाक रक्षा लेल आगू आउ। बस।
हरिः हरः!!