‘हम आबि रहल छी’ – मैथिली धारावाहिक भाग १०

साहित्यः मैथिली उपन्यास ‘हम आबि रहल छी’

– रबीन्द्र नारायण मिश्र

हम आबि रहल छी – भाग दस

10

देखिते-देखिते लोकक करमान लागि गेल । लोककेँ देखि हम जोर-जोरसँ हाकरोस करए लगलहुँ । गौआँसभ मुखिआक गट्टा पकड़लक । ओहीमेसँ केओ युवक ओकर झोरा छिनि लेलक । सभ एतबे कहैक –

“जरूर तूँ किछु गलत काज केलह अछि जाहि कारण बूढ़ा एतेक कष्टमे छथि ।”

“हम किछु गलत नहि केलहुँ अछि । किछुदिन पूर्व हिनकर बेटा शंकर आएल छलाह । ओएह हमरा बहुत आग्रह कए अपन सभटा घर-घराड़ी आ बाधक जमीनक बेचबाक एकरार कए गेलाह। हम हुनका दस लाख रुपया अगाउ सेहो देलिअनि। हमर झोरामे एकरारनामा राखल अछि । ओकरा पढ़ि लिअ । अपने सभटा बात स्पष्ट भए जाएत ।”

युवक झोरामेसँ कागज बाहर करैत छथि आ ओकरा पढ़ैत छथि । सौंसे गामक लोक एकरार सुनि-सुनि छिआ-छिआ करए लागल ।

“शंकर ई की केलक?”

“ओकरा अपन पिताक ध्यान रखबाक चाही ।”

“अखन तँ मनोहर जीबिते छथि । बादमे जे करबाक छलनि से करितथि।”

“एकरार भेलासँ की हेतनि, हमसभ कोनो हालतिमे एकर पंजीकरण नहि होमए देबैक ।”

“मुदा हमर जे दस लाख टाका शंकर लेने छथि तकर की होएत? हमर टाका वापस कए देथि, हम अपने एहि सभसँ कात भए जाएब ।”

जतेक मुँह ततेक तरहक बात होमए लागल । हम हकासल-पिआसल अपने घरक बाहर ठाढ़ रही, असमर्थ, असहाय। हमर स्थिति देखि गौआँसभ परेसान छल। मुदा समाधान किछु फुरा नहि रहल छलैक। मुखिओक बातमे दम बुझाइत छलैक । आखिर शंकर ओकरासँ दस लाख टका टानि लेने छैक । लिखित एकरार कए लेने छैक । एतबेमे ओकील  कोर्टसँ वापस अएलाह । ओ संबंधमे  हमर पितिऔत लगताह। हमर पिता आ हुनकर पिता सहोदरे छलाह । लोककेँ एना जमा देखि हुनका चिंता भेलनि । ओ पुछैत छथि-

“की बात छैक? एतेक लोक किएक जमा भेल छथि?”

युवक मुखिआक झोरा हुनका पकड़ा देलक ।

एहिमे राखल कागजकेँ पढ़ि लिऔक । अपने सभटा बात बूझि जेबैक ।

ओकिल साहेब कागजकेँ पढ़ैत छथि । तामससँ हुनकर आँखि लाल भए जाइत छनि । देहमे जेना आगि लागि गेल होनि । ओ चिकरि उठैत छथि –

“मुखिआ! तोहर खेल खतम छौक । तोरा की बुझाइत छौक? हमसभ कोनो मसोमात नहि छी जे हमरा रहैत भैयाक जमीन-जायदाद दखल कए लेबैं । लड़ैत-लड़ैत जिनगी बीति जेतौक ।”

“मुदा हमर की गलती अछि? हम कोनो मगनीमे हुनकर चीज-वस्तु लेबनि ।”

“जकर संपत्ति छैहे नहि, तकरा संगे एकरार केलासँ की हेतौक? अखन तँ भैया जिबैत छथि । सभटा जमीन हुनकर अपन किनल छनि । मरौसी जमीन तँ नाममात्रक होएत ।”

“तखन अहीं कहू जे की कएल जाए? सभगोटे अपने छी। कोनो आनगामक बात तँ थिक नहि । हमरा शंकरक बातमे नहि पड़बाक चाहैत छल । मुदा आब तँ से भए गेल । आगूक समाधान निकालैत जाउ । साँपो मरि जाए आ लाठिओ नहि टुटए ।”

“हमरा संगे बुझौअलि नहि बुझाबह । तोरा सन-सन कतेकोकेँ हम देखि चुकल छी । ओकिल तँ काजे छैक फसादक हिसाब करब । अखन चुपचाप घसकि जो । भैया अपन घरमे जाथु। तकर बाद चैनसँ अबिहैं । तखन गप्प करब ।”

ओकील  युवककेँ इसारा करैत छथि । हमर घरक ताला तोड़ि देल जाइत अछि । झोरा आ ओहिमे राखल कागज ओकील  अपन कब्जामे लैत छथि । हम अपन घर दिस बढ़ैत छी । मुखिआ  तामसे आगि भेल अछि ।

“नीक चाहैत छह तँ हमर दस लाख टाका वापस करह । नहि तँ…”

“नहि तँ तूँ की कए लेबही । तोरा एकहु बेर ई विचार भेलौक जे एकटा बूढ़ आदमीक घर-जमीन सभ चीज लए रहल छी? हमरासँ पुछितैं । हे हमरापर विश्वास नहि रहौक तँ ककरोसँ तँ पुछितही । हमर परिवारक संपत्ति केओ लए लेत आ हम देखैत रहि जाएब? ई भए नहि सकैत अछि । आइ दिनसँ भैया कतहु नहि जेताह । हमर परिवारमे रहताह । जँ हुनकर बेटा अपाटक भइए गेल तैँ की? हमहूँसभ तँ हुनके अंग छी ।”

 हम ओकीलक बात सुनि कए बहुत प्रसन्न भेलहुँ । केओ तँ हमरा दिस बाजल। मुखिआ  असगर पड़ि गेल। केओ ओकरा दिस बजबाक हेतु तैयार नहि भेल । हालति खराप होइत देखि चुपचाप ओतएसँ खसकि गेल । हम ओकीलक संगे अपन घरमे प्रवेश करैत छी।

“हम अखन असगर पड़ि गेल छी । जकरा जे मोनमे होअए से बाजि लिअ । मुदा अंतिम विजय सत्येक होएत। सत्यमेव जयते। हम कोनो मामुली नहि छी । एहन-एहन सरिअल ओकिलकेँ के पुछैत अछि । काल्हि भोरे सभटा हिसाब चुकता भए जेतैक । जँ अपन नीक चाहैत छह बूढ़ा तँ हमर दस लाखटका काल्हि दसबजे धरि हमरा पठा दएह ।” मुखिआ ओहिठामसँ मोछ फरकबैत चलि गेल ।