संस्कृति-परम्परा
साभारः मिथिला धरोहर एवं सुजीत मिश्र केर फेसबुक पोस्ट (दहेज मुक्त मिथिला)
खोंइछ : मिथिलाक एकटा पुरान बिध
मिथिलाक एकटा पुरान परंपरा जे पता नै कहिया सं चलि आबि रहल अछि - एहि परंपराक शुरुआत होइत अछि जहन लड़की बियाहक बाद पहिल बेरा दुरागमन भऽ सासुर जाइत अछि तऽ माँ हुनकर आंचर मे अरवा चाउर, हरैदक पाँच टा गाँठ, हरीयरका दूइभ आ यथाशक्ति रूपया राखि कऽ बांधैत छथि – एकरे मिथिलांचल मे खोंइछ (खोंइछा) कहल जाइत अछि।
खोंइछ हमेशा बाँसक सूप या चंगेरा सं देल जाइत अछि। कन्या खोंइछ मे सं पाँच चुटकी वापस सूप मे राखैत अछि। इ खोंइछ बेटीक नव जीवनक शुरुआतक आशीष होइत अछि। चाउर ओकर भंडार भरल रहबाक, हरैद ओकर घर मे मंगल होयबाक, हरैदक गाँठ जंका कनियाँ पूरा परिवार के संग बांधने रहय - एहि भाव निहित हेबाक बात खोंइछ सँ जुड़ल कहल जाइछ। दूइभ परिवार के संजीवनी देबाक लेल आ पैसा ओकर मजबूत आर्थिक स्थिति के शुभकामना दइत अछि। अहि खोइछाक खोलबाक हक ननैद केँ रहैत छन्हि आ ओहि पैसा पर सेहो हुनकहि अधिकार होइत छन्हि आ नयहर मे बहिन के भेटल खोंइछ केँ छोटकी बहिन खोलैत छथि। खोंइछ हमेशा पूजा घर मे खोलल जाइत अछि।
आब समय बहुत बदैल गेल अछि। दुरागमन उपरांत आब खोंइछ लेबाक परंपरा कमे बेस होइत अछि जल्दी सं लिक्विड सिनुर सौंथ मे लगा कऽ खोंइछ छोट-छोट रंगबिरही पोटरी मे भेटैत अछि ताकि जींस या सूट पहिरय बाली बेटी – पुतौह आसानी सं एकरा अपन पर्स मे लऽ सकै। खोइछ चाहे आंचर मे होय या पोटरी मे मुदा भेटैत रहबाक चाही कियाकि एहि सुंदर सन परंपरा हमर धरोहर अछि आ ढेर रास याद सं जोड़ने राखैत अछि।
खोंइछ भरबाक धार्मिक महत्व सेहो अछि :-
दुर्गा पूजा आ काली पूजाक अवसर पर दुर्गा माता, काली माता के खोंइछ भरबाक परंपरा सेहो अछि। मानल जाइत अछि जे मां केँ खोंइछ भरला सं माता के असीम कृपा प्राप्त होइछ। लोक धन-धान्य सं संपन्न होइत अछि। महाष्टमी मे मां के सोलह श्रृंगार क’ महिला लोकनि मां के खोंइछ भरैत छथि। खोंइछ भरबाक लेल पान, सुपारी, फूल, हरैद, अक्षत, दूइभ, मिठाई आदि लागैत अछि।