व्यंग्य प्रसंग
– संतोष कुमार संतोषी
बरकी भौजी -चाहक कप हाथ में पकरेलैनि कि अकस्मात् हम पुछि देलियैन…..
हम–: भौजी बच्चा सब स्कूल जाई अई की नै….
भौजी –: उँ,,,जाऊ जरलाहा के….
. जेहने गेने -तेहने विनु गेने,
ओ त, दू दू टा टीशन लागल छै तैँ बड बढियाँ ..
स्कूल भरोसे त नामो गामो नै लिखल पढल हेतै धिया पुताके…
हम –: से की…
भौजी –: मास्टर सबके खिच्चैरि आ पलाऊ के हिसाब किताब सँ फुर्सत हेतै तहन ने विद्यार्थी सब के पढेतै बौआ…
मास्टर मास्टरनी बैसल गफ लरेलक,आ धिया पुता सब थारी छीपली पीटलक…
बनैबिते खाईते टाईम पुईर जाई छै, सब अपन अपन घर गेल…. से भेल स्कूल…
हम –: तहन त खाईये खातिर धिया पुता के स्कूल पठबै छियै भौजी….
भौजी–:त की करबै बौआ… ओनाहियो त ई सब घर में आँधी विहैरि जेना करैते रहैये..
स्कूल पठा देने किछु काल त मोन चेन रहैये ने…
नै त भुका क खा जाएत ई हेहरा सब….
(निरूत्तर भेल विद्यालय दिश प्रस्थान केलौंह )
विद्यालय प्रसंग…….
हम –: श्री मान्.. स्कूलक पढाई लिखाई संबंध में बेसी घ्यान देबक चाही अपने सब के…
लोक अपना बच्चा सब के पढाई लिखाई लेल स्कूल पठबै छै,
आ एहि ठाम त,
थारी छिपली प्रतियोगिता सन… केकर थारी पैघ आ केकर छोट,
केकर बेसी साफ आ चमकदार..
केकरा केकरा थारी छीपलीके आवाज ढोल ,झाईल आ मृदंग सन….
केकर छीपली सुसज्जीत ढंगे राखल अई…
केकर थारी पंक्तिवद्ध नै अई….
एहि में ओझराएल धिया पुता सब बौराएल जा रहल अई…
किछु पढबा लिखबा के रंग ढंग सेहो व्यवस्थित करक चाही श्री मान्…..
श्रीमान् –: यौ महराज,लोक सबके बैसल ठाम एहिना फुराईत रहै छै… कहै जाईये… मौज छै मास्टर सब के, केहेन मौज छै से हमहीं सब जनै छियै..
दुनिया भैरिक काज त मास्टरे सबहक कपार पर द देने छै, कतेक आ कि सब करत मास्टर..
आ के कहैये पढाई नै होईछै स्कूल में, विद्यार्थी सब अपने बड तेज अई… पढबे नै करतै त मास्टर के कोन दोख.. घोईर के पीया देतै मास्टर….
बात करै छी….
हम –: श्री मान्… अपने सब अपन तलब तनख़्वाह भत्ता आ विशेष सुविधा के लेल महिना -महिना भैरि हरताल पर बैसल रहै छी संगहि ताहि क्रम में अपन निजी काज सब फटाफट निपटा के डबल फाईदा करबाक कोशिश में ई बात विसैरि जाई छी जे एहि हरतालक कारण विद्यार्थी सबहक पढवाक क्रम टूटला सँ की नुकसान होई छै…
श्री मान् –: ई हमरा सबहक निजी मामला अई.. अपन अधिकारक लेल त करै परतै न यौ…..
हम –: अप्पन अधिकार मात्र देखि रहल छी….
मुदा एहि बच्चा सब के अधिकारक की…
कतय सँ आओत आ के दिआओत एकर सबहक अधिकार…..
एहि बच्चा सब के दिगभ्रम में राखि नीक नै क रहल छी अपने सब…….
मोन राखू ईयेह बच्चा सब काईल्ह जवान हेतै आ जखन एकरा सबहक भ्रम टुटतै आ पुर्ण चेतना में आओत..
तहिया उपर सँ नीचा तह तक सबहक खच्चरैहि बाहर भ जाएत………
(बाहर प्रस्थान कैरिते बरका कका भेटि गेलाह )
कका –: बाऊ केकरा कहै छियै….. गुरू के जगह गोरू सबहक व्यवस्थापन भ गेल छै, धिया पुताक भविष्य दैवे हाथ बुझू…….