अपन मिथिलाक ई सुन्दर खेल किनका-किनका स्मृति मे बनल अछि?
जहिया ई खेलाइत रही ताहि समय मे एकर महत्व भले नहि बुझि सकल होइ, आइ अहाँ जरूर बुझैत होयब जे एहि खेल सँ कि-कि ज्ञान भेटैछ, केना-केना बुद्धि बढैछ, कतेक लाभदायक अथवा कतेक बोरिंग आ समय खर्च करयवला नुक्सानदेह।
ई एकटा ‘विम्ब’ थिक जाहि पर विचार लिखबाक अछि। एकर आधार लेलहुँ त आर बहुते रास खेल जे हमरा-अहाँक समय मे चलैत छल तेकरो समेटि सकैत छी। जेना, एखन आम के समय मे कलम-गाछी ओगरबाही लेल जाइत धिया-पुता (भाइ-बहिन, संगी-साथी, गौआँ-घरुआ) सब सींगी-पताली खेल सेहो खेलाइत रही। पकड़ा-पकड़ी आ चोर नुकैया त साधारण खेल होइत छल। गर्मीक मास मे पोखरि मे चुभकब आ पानिये वला ५ किसिम के खेल खेलायब…! हमरा त ओ चैत-चिक्का वला खेल आइयो ओतबे मोन पड़ैत अछि। बड दुब्बर-पातर आ छटछटी वला छौंड़ा हेबाक कारण बेसीकाल हमरा सुट्टा जेकाँ पतियाइत दौड़िकय चिक्का बनिकय फँगबाक भार भेटैत छल। जेठ भैयारी सब बड़ा मजबूत रहथि, ओ सब डढिर पर एक पैर राखि दोसर पैर सँ चैत-चैत करयवला खेलाड़ी सब केँ पैर (ठेहुन सँ नीचाँ) छिटकी मारिकय सरेबाक काज या चैत-चैत करैत डढिरवला केँ अपन बल सँ डढिर (लाइन) पर सँ उल्था (लाइन पर सँ पैर उठबेबाक, बेलाइन करबाक) काज कयल करथि।
माने जे सब खेल मे किछु न किछु नव ज्ञान भेटिते टा छल। किछु मोन पाड़ू न अपनहुँ सब!!
हरिः हरः!!