स्कूलक संस्कार सँ बहुत बेसी कारगर छैक संयुक्त परिवार सँ प्राप्त संस्कार

ओ बाबी, नानी, काकी आ माँ
 
सारा संसार घुमलहुँ। बहुतो लोक-समाजक जड़ि बुझबाक प्रयत्न कयलहुँ, जतबा सम्भव भेल। मानव समाज सब तैर एक्के रंग बुझायल, लेकिन किछु बात भिन्न छल। घुरि-फिरि हमरा जे सब सँ बेसी नीक लागल ओ बुझेली हमर बाबी, हमर नानी, हमर काकी आ हमर माँ। हमरा अपन बाप-पित्ती आ जेठजन मामा, पीसा, मौसा आदि सब ओतबे प्रभावकारी बुझेलथि। लेकिन हिनका सभक पुरुषार्थक पाछू जिनकर हाथ आ कृपा रहनि से वैह – ओ बाबी, नानी, काकी आ माँ।
 
आइ जे मोन पड़ि रहल अछि ओ बाबी के डाँट, फटकार, परिवार आ बच्चा सभक विशेष ध्यान – गाम के सब विन्दु पर प्रखर दृष्टि आ विचार। काकी सब केँ झटकारि कय लाइन मे रखबाक मैनेजमेन्ट। हमर माँ त सभक त’र। बुझाइत रहल जेना सब सँ छोट हमर माँ। हमर माँ फेर सभक सम्बल, ‘नवकी काकी’। ई नवकी काकी केँ सब दिन देखलियैक जे बाबी, नानी आ काकी सभक आगू एको बेर मुंह अलगाकय बात नहि कयलक। ओ सब बड डँटथिन-हँटथिन। ‘यय रंजू माय! अहाँ एहि धियापुता सब केँ बिगाड़ि देलियैक। सब अहाँ संग लटकल रहैत अछि। पढ़य बेर मे खेल करय लेल अहाँ लग भागिकय आबि जाइ य। कि भोर, कि दुपहर, कि साँझ! सुतली राति धरि सब अंगनाक बच्चा सब केँ अहाँ बिगाड़ि देलियैक।’
 
माँ आ केकरो बिगाड़बाक बात? सवाले नहि उठैत छैक। लेकिन बाबी-काकी के दृष्टि जे अनुशासनहीनता कतहु सँ जायज नहि सभ्य समाज लेल – तेँ जानि-बुझि हमर माँ केँ ओकर धियापुता सभक संग हँसिते आ हल्लूक-सहज बनि रहबाक कला केँ कन्ट्रोल करयवला डाँट देल करथिन। माँ, आइ धरि ओहने आदति मे अछि। लगभग ८० वर्ष पुरत। लेकिन कि पहाड़ी समुदाय, मधेशी समुदाय, नेपालक विराटनगर मे पर्यन्त ओ सभक ‘नवकी काकी’क रूप मे रहि रहल अछि। ओतबे चिन्तनशील, सदिखन स्वाध्याय मे लागल – आब त मोबाइल मे सेहो आध्यात्मिक चिन्तनक कतेको डिजिटल क्रिएशन सभक आनन्द लैत रहैत अछि।
 
बाबी सब सँ हम अपने बड बात-कथा सुनने छी। कखनहुँ ‘जैनपिट्टा’ सँ नीचां नहि। आर बातक चोट तेहेन भयंकर जे भीतर तक बेधयवला बात। त ई बात हमरा एकटा ठोस रणनीतिकार बना देलक से गछय मे कोनो दुविधा या अतिश्योक्ति नहि मानब। बाबी सभक बात हमरा बड बेधय, बापो केँ उकटि देल करथि… माँ पर त हुनका सभक कन्ट्रोल रहबे करनि से पहिने कहि देलहुँ।
 
काकी बड प्रिय लगलीह सब दिन। सब काकी केँ कोराक श्रृंगार रही। तेँ विरले कियो डाँट-फटकार देलीह। माय सँ बढिकय ओ सब कियो स्नेह देली। जखन देखू तखन दयाक दृष्टि सँ देखलीह। भाव मे करुणा आ चित्त मे स्नेहपूर्ण सपना सहित हमरा पर सब काकीक दयादृष्टि रहल। कम दुलारू नहि रही। कोनो बदमाशी करी त ओकरो जस्टिफिकेशन्स काकी सभक पास रहैत छलन्हि। ‘यौ बौआ, एना कहूँ धियापुताक लोक डाँटय-पीटय!’ कहिकय हमर बापो के कोप सँ बचेनिहाइर यैह काकी सब छलीह।
 
दुपहरिया मे हमर सब बाबी, काकी, माँ आ खूबे रास बच्चा सब ताहि दिनक भीतघर आ घरक बीच के फाँक जेकरा कहल जाइक ‘दोगी’ – गर्मीक छाहरि मे बेसीकाल एहि दोगी मे सभक बैसार भेल करय आ हम सब फुदैक दलान, फुदैक अंगना आ फुदैक दोगी मे बाबी-काकी-माँ लग। हम सब माने हम आ हमर जेठ-छोट सब धियापुता। एहि समय कहियो रामायणक चर्चा, कहियो गाम मे घटल कोनो बात-कथा, तरह-तरह के विमर्श! कहय छय न सुग्गो पढ़य वेद जतय! से सच मे वेदविज्ञ सम्पूर्ण परिजन छलीह जे हम छी। अस्तु! बस मोन पड़ि गेलीह त किछु चर्चा करैत सब केँ प्रणाम करैत छी।
 
हरिः हरः!!