कविता
– पंकज चौधरी, बलिया, मधुबनी
गाम घुरि आउ
बहुते दिन केलौं मेहनत मजूरी
खूब कमेलैव देश-विदेश
नै किछु हाथ लागल गामक सनेश
हयौ, सुनु, गाम घुरि आउ!
धिया पुता खूब पढेलहुँ, माय-बाबू के जगह मॉम-डैड सिखेलहुँ
मातृभाषा छोड़ि अंग्रेजी सिखेलहुँ
सोहारी छोड़ि पिज़्ज़ा खुएलहुँ
हयौ, सुनु, गाम घुरि आउ!
जे बाट छल कच्ची ओ भेल पक्की
इनार पोखरि आब कहाँ, नल-जल के पैइन सगरे जहाँ
डिबिया लालटेन भेल निपत्ता, गलिये-कुचिये बिजली के खंभा
हयौ, सुनु, गाम घुरि आउ!
स्कूल-अस्पताल डाक्टर वैद सेहो सगरे जहाँ
मोटर-थेटर भेल हरही-सुरही
काकी के गीत छोड़ि डीजे बाजय
धिया-पुता संगे माइयो बाप नाचय
हयौ, सुनु, गाम घुरि आउ!!