जानकी नवमीः मैथिली दिवस

लेख

– कुमुद मोहन झा

मैथिली दिवस – जानकी चरित्र सँ समाज केँ प्रेरणा लेबाक फराक दृष्टिकोण

मिथिलेश कुमारी जानकी के प्राकट्य दिवस बैशाख शुक्ल नवमी तिथि केँ मैथिली दिवस के रूप मे मनाओल जाइत अछि. ई पवित्र तिथि सीता नवमी आ’ जानकी नवमीक नाम सँ प्रसिद्ध अछि. एहि तिथि मे मिथिलाक पवित्र भूमि पर धरा के गर्भ सँ वैदेहीक प्रादुर्भाव भेल छल जे मिथिलाक ज्ञान, विज्ञान, आचरण आ संस्कार सँ मानव सभ्यता केँ आलोकित कयलन्हि. सम्पूर्ण चराचर जगत के अधिष्ठात्री मिथिलाक धिया सिया केर चरणकमल मे भ्रमर समान बास करबाक अभिलाषा रखैत मानव समुदाय केँ मैथिली दिवस के अनेकानेक बधाई, शुभकामना.

जगज्जननी जानकीक जीवन गाथा पर चर्चा करए सँ पूर्व सनातन धर्म के सर्वाधिक पवित्र ग्रंथ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के चरण युगल मे शत शत नमन क’ महाकवि तुलसीदास आ’ ओहि सभ परम श्रद्धेय कवि लोकनि केँ सादर नमन जे विभिन्न राष्ट्रभाषा आ क्षेत्रीय भाषा सभ मे सीताराम चरित्र के वर्णन करैत रामायण महाकाव्य केर रचना कयलन्हि. मूल रूप सँ संस्कृत भाषा मे रचित रामायण महाकाव्य विश्व के विभिन्न २२ भाषा मे भिन्न भिन्न स्वरूप मे उपलब्ध अछि. आस्था एवं श्रद्धा अनुसार घटनाक्रम मे विविधता देखल जा सकैछ किन्तु मूल विषय पर सभ रचनाकार बीच मतैक्यता अछि.

रामायण के दुइ गोट पहलू अछि. प्रथम पहलू मे ई कथा दुइ विपरीत चरित्र केर वर्णन करैत अछि. पहिल मानवता के सर्वोच्च आदर्श केँ प्रस्तुत करएवाला सर्वकालिक महानायक के चरित्र आ दोसर ज्ञान, विज्ञान, शक्ति आ’ सामर्थ्य सँ सम्पन्न मानवीय इतिहास के अद्वितीय खलनायक के चरित्र. एहि ग्रन्थ मे वर्णित ई दुनु पात्र मानव इतिहास मे ने ओहि सँ पूर्व कहिओ भेल छलैक, ने ओकर बाद एखन धरि भेलैक आ’ ने एकर बाद कहिओ सम्भव छैक. अर्थात “न भूतो न भविष्यति”. आदिकवि लिखैत छथि :

गगनं गगनाकारं सागर: सागरोपम: । राम रावणयोर्युद्धं रामरावणयोर्ईव ॥

अर्थात जेना अनन्त आकाश आ अथाह सागर के तुलना अन्य केकरो संग नहि भ’ सकैत अछि तहिना राम रावण के उपमा स्वयं राम रावण छथि अन्य केओ नहि.

रामायण के दोसर पहलू एहेन महान चरित्र सभ सँ भरल अछि जेकर आदर्श, त्याग, वीरता, दूरदर्शिता आ’ सौम्यता एहि ग्रन्थ केँ महाकाव्य बना देलकैक. प्रमुखतः नारी चरित्र जे एहि कथाक केन्द्रबिन्दु मे रहितहुं जनमानस मे ओहि स्थान केँ नहि पाबि सकल अछि जकर ई अधिकारिणी छथि. २४ हजार श्लोक वाला रामायण महाकाव्य मे प्रमुख रूप सँ २४ टा नारी चरित्र केँ प्रस्तुत कएल गेल अछि जे मानव जाति केँ नारीक शौर्य, समर्पण, स्नेह आ आदर्श सँ परिचय करेबाक हेतु पर्याप्त अछि. यद्यपि उपरोक्त सम्पूर्ण चरित्र पर शोध आवश्यक छैक किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण अछि एहि कथा के महानायिका सीता के चरित्र पर आधुनिक ढंग सँ अध्ययन, अनुसंधान क’ वास्तविकता सँ परिचित भेनाइ.

मिथिलेश कुमारी मैथिली ओहू युग मे तिरस्कृत भेलीह आ एखनहु तिरस्कृत छथि. दानवता विरूद्ध मानवता के विजय मे जे एकमात्र शक्ति के प्रयोग भेल ओकर नाम थिक – सीता. किन्तु, जनमानस मे ओहि शक्तिक प्रभाव कम देखल जाइत अछि कारण जानकी अपन शक्ति के प्रयोग मात्र कयलन्हि, प्रदर्शन नहि. तदर्थ एहि कथा के सर्वश्रेष्ठ मौन शक्ति पर परिचर्चाक संग सुक्ष्म अध्ययन आ वैज्ञानिक अनुसंधानक संग समुचित प्रचार प्रसार आवश्यक अछि.

जानकी एक रूप अनेक. ओ जाहि रूप मे जखन अएलिह, संसारक हेतु श्रेष्ठतम आदर्श केँ प्रस्तुत करैत गेलिह. पुत्री, पुत्रवधु, पत्नी, सखी, बहिन, भाभी, माता, सेविका, राजकुमारी, राजरानी आदि के रूप मे उच्चतम नैतिक विधान के स्थापना करैत नारी जाति के अनुकरणीय आदर्शक प्रतीक बनि गेलीह. धैर्य, साहस, सहनशीलता आ समर्पण के अद्भुद संगम जे मिथिलाक एहि बेटीक चरित्र मे भेटैत अछि ओ सम्भवतः मानव इतिहास के आन कोनो चरित्र मे दुर्लभ अछि.

यदि महाभारत के युद्ध मे अनेको महावीर योद्धा सभक बीच बिना अस्त्र-शस्त्र उठओने श्री कृष्ण महानायक घोषित भ’ सकैत छथि त’ रामायण मे सीता किएक नहि? दशरथपुत्र राम के ओ प्रत्येक कर्म जे हुनका प्रभु श्री राम बना देलक से बिना सीताक प्रेरणा आ’ शक्ति सँ कथमपि सम्भव नहि छलैक, तखन ई भेदभाव कियैक ?

स्वामी विवेकानंद एकटा अपन भाषण मे कहने छथि – “There may have been several Ramas perhaps, but only one Sita.” संभवतः मानव इतिहास मे अनेको राम भेल छथि किन्तु सृष्टि मे सीता एक मात्र अवतरित भेलीह. राम शब्द के व्युत्पत्ति होइत अछि ” रमन्तौ योगीन: यस्मिन् स राम:”. अर्थात दशरथ पुत्र राम सँ पूर्वहुं आदि पुरुष राम के अस्तित्व छल. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र ओ छथि जिनका सीताक पति बनबाक सौभाग्य प्राप्त भेलन्हि. “रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय बेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नम:”. वस्तुतः सीता बिना श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम नहि कहा सकैत छथि तखन मैथिलीक संग एतेक अन्याय कियैक?

विदेह नन्दिनी कोनो अबला नारी नहि अपितु ओ वीरांगना छलीह. जाहि शिवधनुष केँ मनुष्यक कोन कथा जे देव, दानव, यक्ष, किन्नर नहि हिला सकैत छल तकरा ओ अबोध अवस्था मे कोनो खिलौना जेकां उठा लैत छलीह. एहि सृष्टिक रक्षार्थ ओ आजीवन संयमित रहलीह अन्यथा यदि अपन शक्तिक प्रदर्शन ओ युद्ध मे करितथि त’ एहि सृष्टि केँ बचएबा मे साक्षात् शंकरो असमर्थ भ’ जएतथि. एहि सत्य केँ अन्धकार मे राखल गेल अछि. एकरा आलोकित करनाय प्रत्येक सनातन धर्मावलंबी के पुनीत कर्तव्य थिक.

रामहि द्वारा धनुष भंग, वन गमन, रावण द्वारा हरण, लंका बास, अग्निपरीक्षा, अयोध्या के राजमहलक परित्याग, ऋषि आश्रम मे निवास ई सभ घटनाक्रम कोनो ने कोनो महान उद्देश्य के पूर्ति हेतु ओ स्वयं स्वीकार कएलन्हि. अशोक वाटिका मे एकटा सुखाएल घास रूपी अस्त्र सँ विराट शक्तिमान रावण केँ भयभीत करयवाली आदिशक्ति स्वरूपा सीताक इच्छा विपरीत कोनो कार्य सम्भव नहि छलय.

श्री जानकी जी द्वारा प्रदर्शित परिवर्तनकारी महत्वपूर्ण निर्णय सब प्रबंधन कर्मक हेतु सदैव अनुकरणीय अछि. अयोध्या के राजमहलक स्वर्गीय सुख के परित्याग क’ जंगल के अत्यंत कष्टकर जीवन व्यतीत करबाक निर्णय ओ स्वयं कएने छलीह. यदि एहि दु:सह दु:ख के वरण क’ सीताजी ई निर्णय नहि करितथि त’ पृथ्वी सँ आततायी शक्ति सभक अन्त करबाक श्रेय श्री राम केँ कोना प्राप्त होइतन्हि? पञ्चवटी मे लक्ष्मण रेखाक बाहर अनेक अनिष्ट विद्यमान छैक, ई बूझितहुं कौलिक परम्पराक निर्वहण हेतु सीमा रेखा सँ बाहर होएबाक साहसिक निर्णय यदि नहि कएने रहितथि त’ रावण के अन्त कोना होइतैक? अशोक वाटिका सँ पवनसुत हनुमानक संग श्री राम के समीप नहि जएबाक निर्णय यदि नहि करितथि त’ भगवान विष्णु के अवतार श्री राम छथि से प्रमाणित कोना होइतैक?

वैदेही असाधारण आ अद्वितीय नारी छलीह जे नारी जाति केर आन बान स्वाभिमान के रक्षार्थ स्वयं केँ अग्नि शिखा मे झोंकि देलथि. गर्भवती अवस्था मे पति सँ परित्यक्त भेलाक उपरान्तो जंगल मे सन्तान केँ जन्म देबाक साहसिक निर्णय नारी जातिक इतिहास मे सम्भवतः पहिल छल. ई हुनकर दृढ़ इच्छाशक्तिक परिणाम थिक जे पितृछाया सँ वञ्चित अपन पुत्रद्वय लव आ कुश केँ ज्ञान विज्ञान सँ सम्पन्न अजेय योद्धा बनबय मे सफल भेलीह.

मिथिलाक धिया सिया द्वारा सांसारिक सम्बन्ध निर्वहण मे देखाओल गेल ईमानदारिता, संयुक्त परिवार मे सभ सदस्य बीच सुमधुर व्यवहार एवं सम्मान के वातावरण बनएबाक कला, पति पत्नी केवल सांसारिक सुख के नहि अपितु एक दोसर के भाग्यक साझेदार होएबाक उदाहणक प्रस्तुति, नि:स्वार्थ भाव सँ कर्तव्य प्रति समर्पण आदि अनेकों एहेन आदर्श सब प्रस्तुत कयलनि अछि जेकर अनुसरण कय एहि चरम भौतिकवादी युग के लोक सुखद शान्तिक अनुभव क’ सकैत अछि. स्वार्थ, घृणा आ ईर्ष्याक वशीभूत कर्तव्य पथ सँ च्यूत आधुनिक समाज मानसिक तनाव के कारण अनेक रोग सँ ग्रसित भ’ रहल अछि. तदर्थ सुखी, समृद्ध एवं रोगमुक्त आनन्दमय समाजक सृजनार्थ आधुनिक समाजशास्त्री, बुद्धिजीवी, गृहस्थ-गृहिणी, संत-महंथ, आ समाज के प्रत्येक वर्गक सामाजिक अभियन्ता व जनसाधारण केर ई उत्तरदायित्व होइत अछि जे सीता चरित्र के वास्तविकताक प्रचार प्रसार समाजक हरेक कोण मे करय. सर्वंसहा अबला के रूप मे सीताक प्रस्तुति अवैज्ञानिक थिक. ओ कुशल व्यवस्थापिका, नेतृत्वकर्तृ, बुद्धिमती आ अत्यंत साहसी वीरांगना छलीह जिनकर अनुकरण आ अनुसरण सँ मानव जीवनक वास्तविक उद्देश्य प्राप्त कय लोकजीवन धन्य भ’ सकैत अछि.