#जानकीनवमीविशेष – हमर जानकी आ पाहुन श्री रामजी

हमर जानकी आ पाहुन श्री रामजी

– प्रवीण नारायण चौधरी
 
देखू भाइ-बहिन-मित्र लोकनि!! हम सब मिथिलावासी जानकीक नैहरा सँ छी। श्री रामजी जखन वनवास गेल रहथि त हमरा लोकनिक धिया जानकीजी सेहो हुनका संग ओहिना साधूक वेश बनाकय गेलथि जेना रामजी केँ जेबाक लेल कैकेइ माँ पिता दशरथ सँ वचनानुसार आज्ञा करबौलीह। रघुकुल के सूर्य दशरथ अपन प्राण त्यागि देलनि रामवियोग मे, ताहि सँ पहिने ओ बहुत बेर ई बात सेहो बाजल रहथि जे रामजीक गेला सँ हमर नींद-चैन सबटा चलि जायत, हम जीबि नहि सकब… धरि कम सँ कम मैथिली रहि जेती त किछु त आशा रहत, हे सुमन्तजी, अहाँ कम सँ कम जानकीजी केँ घुमा आनब, कारण राम अपन सिद्धान्त आ शील के बड़ा पक्का लोक छथि… ई नियम-कानून बता नहि घुरता त अन्त मे जानकी टा केँ आनि लेब, हम ओहि बहन्ने किछु दिन जी लेब। लेकिन सेहो सुमन्तजी नहि कय सकलथि, जानकी अपन नियम रामहु सँ बेस प्रखर हुनका समक्ष राखि देलखिन आ सब बुझैत छी जे आखिरकार ओ दुर्दिन आबिये गेलय जे राजा दशरथ एहि इहलोक सँ परलोक चलि गेलाह।
 
कुलगुरु वशिष्ठजी एहेन दुरुह समय मे भरतजी आ शत्रुघ्नजी केँ बिना पूरा सूचना देने बस तुरन्त गति सँ मामागाम सँ आनय लेल समदिया (दौड़ाहा) पठौलनि। मामागाम सँ घुरिकय अबिते भरतजी जखन सारा वृत्तान्त बुझलथि त अपन माथ पीटय लगलाह, हुनका अपन मायक कयल किरदानी बड बेजा लगलनि आ ओ एहि पश्चाताप मे गलय लगलाह। आखिरकार ओ रामजी केँ वन मे जाय भेटिकय घुरा अनबाक संकल्प कय लेलनि आ ई बात सुनिते सारा अयोध्यावासी आ रानी लोकनि, मंत्रीगण, सैन्यबल, गुरुजन, ब्राह्मण, संत आ समस्त समाज हुनका संग रामजी सँ भेटय आ हुनका वन सँ वापस आनय चलि देलक। पाछू सँ जनकजी सेहो मिथिलाक समस्त मंत्रीगण, गुरुजन, सन्तजन आदिक सहित ओतय पहुँचि गेलथि जतय भरतजी आ अयोध्यावासी समाज पहुँचल छलथि, यानि श्री रामजीक पास। सब केँ बुझल अछि जे आखिरकार राम नहिये मानलखिन, पिताक वचन केँ पुरा करबाक निज जिम्मेदारी केँ आ यथार्थतः अपन मनुष्यरूप मे अवतारक मूल ध्येय जे पृथ्वीलोक मे बढ़ल राक्षसी अत्याचार केँ समाप्त करबाक लेल वनवासहि मे रहबाक निर्णय कयलनि। भरतजी हुनकर खड़ामरूपी निशानी केँ प्रत्यक्ष रामहि समान मानि माथपर धारण कय अवध घुरि अयलाह आ श्री रामक खड़ाम केँ सिंहासन पर विराजित करैत स्वयं एक योगी समान व्रतधारी बनिकय समूचा राजकाज चलौलनि।
 
बहुतो रास बात घटित भेल वन मे। राक्षस समुदायक वर्चस्व सँ त्रसित आमजन केँ जे-जतेक दुःख पहुँचायल गेल ओ एक तरफ, रावणक बहिन सुपनेखा स्वयं राम-लखन लग आबिकय विवाहक प्रस्ताव राखि देलीह। राम केँ कतेको नखड़ा-नौटंकी देखौलीह। लटका-झटका आ लिपिस्टिक पाउडर देखेलाक बादो राम रामे बनि रहलथि। सुपनेखा द्वारा सीता सँ स्वयं सुपिरियर ब्यूटी क्वीन सिद्ध करबाक लेल ओहि वनक रैम्प पर कैटवाक तक कयलीह, परञ्च राम टस सँ मस नहि भेलाह। ओ मनोरंजन लेल भाइ लक्ष्मण लग ट्राइ मारय लेल उकसा देलखिन सुपनेखा केँ। फेर कि छल! सुपनेखा लक्ष्मणजी लग डान्स-रोमान्स के प्रस्ताव देलक आ शेषावतार लखनजीक कोप के शिकार बनल, नाक कटबा लेलक। नककट्टी सुपनेखा अपन प्रतापी राजा भाइ रावण सँ कम्प्लेन करय गेल… बहिनक दुर्दशा देखि रावणक पारा सातमा आसमान पर चलि गेलैक…. आ फेर केना-केना हिन्दी फिल्म जेकाँ बदला सब लेलक से सब जनिते छी।
 
एहि मे हमर मिथिलाकुमारी मानुसी बेचारी केँ राम-लखनक अनुपस्थिति मे हरण कय लेलक। आब मिथिलाक धिया मे दया-दरेग केहेन होइत छैक से बुझिते छियैक अपने सब। लक्ष्मणजीक खींचल ओ सुरक्षा घेरो के सीमा बिसरि एक छद्मवेशी भिखारी केँ भीख देबाक लेल ओ आगू आबि गेलीह। आर एहि तरहें कतेक भारी घटना (जानकीहरण) के ओ अत्याचारी राक्षस रावण घटित कय देलक से सब बुझिते छी। खैर… गिद्ध जटायु द्वारा यथासंभव प्रतिकार करैत एहि दुर्घटना सँ जानकी केँ ऊबारबाक चेष्टा कयल गेल। ओ अपन प्राण केँ जोखिम मे दइयो कय केना रावण सँ जानकी केँ छोड़ेबाक प्रयास कयलनि से सब कियो जनिते छी। आखिरकार जटायु एहि बैबे मरिकय अमर भ’ गेलाह…. लेकिन स्वयं परमात्मारूपी श्री रामजीक दर्शन पाबि जिबिते धन्यभाग सेहो ओ भेलाह। आर तेकर बाद बानर-भालूरूपी देवता लोकनिक संग लय राम लंका पर चढाई करैत जानकी केँ रावणक कैद सँ मुक्त करा लेलनि।
 
हिन्दी फिल्म मे नायक-नायिका सुखद मिलन होइत देरी कथा अन्त हेबाक घोषणा कय देल जाइत छैक। लेकिन ई फिल्म नहि – ई वेद-पुराण सँ उद्धृत ‘रामायण’ केर कथा थिकैक। मनुष्यरूप मे बिना राजसी तामझाम आ बल-वैभव के रावणक संहार भेल। रावणक संहार एहि तरहें होयबाक भाग्यरेखा ओ स्वयं अपन प्रकाण्ड विद्वता सँ लिखने छल। ब्रह्माजी सँ मृत्यु कहियो नहि हुए से वरदान मंगने छल, लेकिन सृष्टि-सिद्धान्त मे सभक मृत्यु अवश्यम्भावी हेबाक कारण ओ मृत्युक रूप मे परिवर्तन आदिक वरदान मांगय कहला पर रावण यैह वरदान मांगलक जे तखन मनुक्ख या बानरक हाथ टा सँ मरी से वरदान मंगने छल। ओ मनुक्ख आ बानर केँ मच्छड़ जेकाँ तुच्छ बुझैत छल। अपन बल सँ कतेको लोक मे विजयी प्राप्त कयनिहार ओ मायावी राक्षस रावणक एहि वरदान केँ फलित करबाक लेल उपरोक्त लीला कहल गेल अछि।
 
अक्सर चर्चा मे रामायणक मूल गुण सँ हंटिकय कतेको लोक रामक नायकत्व मे नकारात्मकताक चर्चा करैत अछि। मनुष्यक ई प्रवृत्ति होइत छैक, कियो हिरो के हिरोइज्म सँ सम्मोहित होइत अछि, लेकिन गोटेक ओहि हिरो केँ जिरो मात्र नहि निगेटिव मार्क्स तक दय लेल आतुर रहैत अछि। फेर राम आ जानकी त विशुद्ध मनुष्यक रूप मे एकदम साधारण मनुष्यहि जेकाँ सारा चरित्र प्रस्तुत कयलनि। राम कहियो ब्रह्मास्त्रक सन्धान करैत नहि देखाइत छथि, हँ धनुर्विद्या मे पूर्ण दक्ष अस्त्र-शस्त्र केर पूर्ण ज्ञान भेला सँ सदिखन ब्रह्मतेज सँ परिपूरित युद्ध करैत देखाइत छथि श्री रामचन्द्र। मानवक मानसपटल मे धनुष-बाण लेने जे परमवीर नायकक स्वरूप अछि से श्री रामहि केर थिकन्हि। यैह अस्त्र रहल आ सिद्धप्राप्त शूरवीर जेकाँ शस्त्र सेहो धारण कयलनि श्री राम।
 
जानकीजी सेहो युद्ध-कौशल केर जानकार छलीह, परञ्च युद्ध मैदान मे लड़ाकू रूप मे ओ कतहु नहि उतरलीह। बस, अपन भगवतीक घर निपयकाल बड़ा सहजता सँ बामा हाथ सँ बालिका जानकी शिवधनुष उठा लैत छथि। जनक यैह कारण हुनका वरण करयवला एहेन वीर होइथ जे कम सँ कम ओहि धनुष केँ भंग कय सकथि से प्रण कयने रहथि। निस्सन्देह, जानकीजी पछातिकाल लोकमानस मे रहल कुत्सित विचार – अपहृता जानकी रावण जेहेन परपुरुषक अधीन रहली त अपवित्र भ’ गेलीह – राजा रामचन्द्र एक परमप्रतापी आ न्यायपूर्ण राजा रहितो एहेन अपवित्र पत्नीक पति थिकाह – एहि तरहक मिथ्याकलंक सँ राजा रामचन्द्र केँ सदा-सदा लेल मुक्ति देबाक निमित्त महारानी जानकी एक चतुर मंत्रीक भूमिका निभबैत राजा सँ निर्वासनक प्रस्ताव राखि दुनू पति-पत्नी सलाह-सहमति सँ ऋषि वाल्मीकिक आश्रम जे गंगाक दोसरपर तमसाक आसपास कहल गेल अछि, ताहिठाम रहबाक आ निर्वासित जीवनहि मे श्री राम केर पुत्र केँ पर्यन्त जन्म देबाक निर्णय कय लेलीह। अपन निश्छल-निष्कलंक चरित्र केँ एहि मनुक्ख प्रजातिक मानस मे सदा-सदा लेल स्थापित करबाक लेल ओ पुत्र स्वयं एकटा प्रखर सबूत पेश करत जे ओ केकर पुत्र छी – तखन सम्भवतः अयोध्याक प्रजा मे भ्रमित लोक जे मिथ्याकलंक दैत राजा रामचन्द्र केँ चिन्तित कयने अछि ओकरो सब केँ ई विश्वास भ’ जेतैक जे सीता कतेक पवित्र आ पतिव्रता नारी छथि। सीता केर सोच आ त्याग पतिक प्रखरता केँ कायम रखबाक भावना दय रहल अछि एतय। एहि सँ पहिने सेहो सीता यानि पराम्बा भगवतीक मानुसी रूप पर कियो आंगूर नहि उठबय, पापक भागी नहि बनय, ताहि धर्मक रक्षार्थ श्री राम हुनका अग्नि परीक्षा सँ पर्यन्त उत्तीर्ण करा चुकल छलथि जखन कि… तथापि मनुष्य प्रजाति मे सन्देह आ शंकाक सोच कोन स्तर धरि जाइछ तेकर अवस्था देखू।
 
अग्निपरीक्षाक सोच श्री राम अपन तुष्टि लेल नहि अपितु मनुष्य समाज मे एहि तरहक कुविचार स्वाभाविक रूप सँ आओत आ तेँ मर्यादाक रक्षा लेल अपनहि धर्मपत्नी – अपनहि विग्रह आ शक्तिक प्रतीक भगवती सँ अग्रि परीक्षा लेल कहल गेल छल। तदोपरान्त धोबीक कथन आ गुप्तचरक सन्देश सुनि न्यायप्रिय राजा रामचन्द्र एहि मनुष्य समाजक सोच पर चिन्ता-चिन्तन करय लगलाह ताहि समय जानकी हुनका ई उपाय सुझेलखिन। श्री राम बहुत दुःखी भेलथि जे प्रजाक आन्दोलित मोनक शान्ति लेल गर्भवती पत्नी केँ निर्वासनक समाचार दियए पड़त आ एकल जीवन जियय पड़त, जानकीजी केँ जे कष्ट हेतनि से अलगे…! लेकिन जानकीजीक तर्क के जीत भेल। राम दुःसह दुःख सहलनि। सहधर्मिनी महारानी प्रतिमारूपी सीताक संग ओ कष्ट भोगैत जिबैत रहलाह, परञ्च प्रजाक मोन जीति लेलनि।
 
जानकीजीक लीला देखू! ओ निर्वासित जीवन जीबि लेलीह। वनक क्लेश सहि लेलीह। राजदरबार आ राजसुख केर हँसैत परित्याग कय देलीह। अपन गर्भ केँ सुरक्षित राखि गुरुआश्रम मे साध्वीरूप मे रहैत श्री रामक पुत्रद्वय लव आ कुश केर जन्म देलीह। ऋषिकुल आ ऋषिसमाज मे सम्पूर्ण संत-संन्यासी लोकनिक बीच श्री रामपुत्रद्वय लव आ कुश केँ एहेन तालीम देलीह जाहि सँ ओ सब ई सिद्ध कय सकथि जे एहेन शक्तिसम्पन्न सुपुत्र श्री राम छोड़ि दोसरक भइये नहि सकैत अछि। ऋषि वाल्मीकि जे सम्पूर्ण रामायणक ज्ञाता रहथि, जे श्री रामक जन्मक कारण सँ हुनक सम्पूर्ण लीला अग्रिमे जनैत छलथि, हुनक आश्रम सीताजी अपन एहि पुत्रद्वय केँ एतबा लायक बना देलीह, रामायणक ज्ञाता बना देलीह जे आखिरकार अश्वमेध यज्ञक घोड़ा केँ पकड़ि रखबाक आ ताहि क्रम मे पिता श्री राम के अतिरिक्त अन्य समस्त वीर पर जीत हासिल करबाक अद्भुत चरित्र प्रस्तुत करैत छथि। आ, अन्त मे ओ दुनू भाइ श्री राम केर दरबार मे वैह रामचरित केर गायन करैत प्रस्तुत होइत छथि जे देखि समस्त अयोध्यावासी चकित, मंत्रमुग्ध आ सीता जेहेन पवित्र-निश्छल-निष्कलंक नायिका प्रति गर्वक बोध सँ परिपूर्ण भ’ जाइत छथि।
 
मुदा फेर ई की? फेर राजा राजधर्मक परिधि मे जकड़ल अन्त मे फेर सीता केँ अपनाबय सँ पूर्व अपन निष्कलंकताक प्रमाण रखबाक लेल कहि बैसैत छथि… आब त श्री राम केर न्याय पर सवाल उठब, बहुतो लोकक दुःखी होयब, आक्रोशित होयब… ई सबटा घटना घटित हेबाके छल। आब त श्री राम केँ कोर्ट मे ट्रायल देबहे पड़तनि। महाभियोग लगाकय प्रजा हुनको एहि अपराध लेल कचहरी लगेबे करतनि। आइ धरि करिते टा छन्हि। लेकिन, हम प्रवीण नोरे-झोरे श्री रामक आदर्श केँ फेर सँ प्रणाम करैत एतबा कहय चाहब जे श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम मनुष्य प्रजातिक सर्वथा कमजोर लक्षण केँ बुझैत आ माताक अस्मिता पर भविष्यहु मे कियो कतहु असम्मान के भाव नहि ग्रहण करय, एहि लोक केर अकल्याण के कारक नहि बनय, ताहि लेल बेर-बेर सीता सँ निष्कलंकताक प्रमाण रखैत लोकमानस मे परमपवित्र जगदम्बाक रूप मे स्थापित रखबाक बियौंत मात्र कयलनि। कियो कथावाचक बड नीक बजलाह – जँ ई परीक्षा आन्तरिक कष्ट उठबितो श्री राम नहि कयने रहितथि त आइ तक लोक माता सीता पर वैह सवाल उठबैत आ अपन संग-संग एहि लोकक अकल्याण करबे टा करैत!
 
आखिरकार माता सीता एहेन प्रमाण दय देलीह जे सब अचम्भित रहि गेल। सब स्तब्ध रहि गेल! की? माता सीता अन्तिम प्रमाण राखि देलीह – “हे प्रभु! प्रमाण त हमर बच्चे सबटा राखि देलक। प्रमाण त अग्नि परीक्षा सँ लैत हमर निर्वासित जीवन स्वयं राखि देलक। तथापि, प्रभुक संग पेबाक लेल फेरो हमरा प्रमाण दियए के अछि, सेहो अवश्य देब। हे पृथ्वी माता! हे हमर जननी!! जँ हम प्रत्येक जन्म मे मन, वचन आ कर्म तीनू सँ मात्र आ मात्र श्री राम टाक भार्या (पत्नी) रहल होइ त तुरन्त फाटू। फाटू हे माता आ हमरा अपन कोरा मे स्थान दिय’।” फेर कि छल? चारूकात कोहराम मचि गेल। जाबत हाँ-हाँ-हाँ करितथि, ताबत सत्यक प्रमाण सोझाँ आबि गेल। धरती तड़तड़ाइत फाटि गेलीह ठामक ठाम आ सीता केँ अपन कोरा मे लय लेलीह। सीता प्रभु श्री राम केँ अन्तिम प्रणाम करैत अपन मानुसी लीला एतहि अन्त कय लेलीह। आब केकरो पास सवाल नहि रहि गेलैक। स्वयं श्री राम मानुसी लीला करैत केवल ‘हा सीते! हा सीते!!’ करैत रहि गेलाह। प्रभुओक आँखि मे रहि गेल मात्र अश्रुधारा!
 
हमरो आँखि भरल अछि। लिखैत काल सोचैत रही जे ओ औचित्यीकरण वला पक्ष जे सीता केँ अग्नि मे छोड़ि देने रहथि श्री राम, सीता बच्चे मे एकटा सुग्गा-सुग्गी जे श्री रामकथा सुनबैत फुलबारी मे भेटल छलन्हि तेकरा पकड़ि लेने रहथि आ सुग्गी केँ पिंजड़ा मे बन्द कय केँ ओकरा सँ नित्य सुनल करथि रामक खिस्सा… सुग्गा कतबू कहलकनि जे हमर प्रिया सँ हमरा दूर नहि राखू… ओकरा मुक्त करू… लेकिन से नहि मानने रहथि बच्चे मे। सुग्गा अन्त मे श्राप दय देने रहनि। पति सँ वियोग केर श्राप! श्री रामो केँ श्राप रहनि, नारद बाभन हुनका पत्नीवियोग के कष्ट भोगबाक श्राप देने रहथिन। पुराण मे बहुत बात वर्णित अछि। औचित्य बहुतो दृष्टि सँ निकालल जा सकैत छैक। शिकायत रखनिहार आ दुविधा मे रखनिहार केँ कियो नहि रोकि सकैत अछि। मनुक्खक प्रजाति मे द्वंद्वहि केर सारा माया राज करैत अछि। द्वंद्व सँ ऊपर कियो-कियो मात्र उठि पबैत अछि। हम, प्रवीण, स्वयं सँ सरोकार रखैत अपन स्थिति मात्र स्पष्ट राखि सकी यैह परमपिता परमेश्वर सँ बेर बेर प्रार्थना करैत छी। हम मिथिलावासी मैथिलजन जानकीक उपरोक्त अद्भुत लीला पर गर्व करैत छी, पाहुन श्री रामचन्द्रजी हमरा सभक आत्मसम्मान थिकथि, हम सब हिनका लोकनि केँ पाबिकय परमानन्द मे डूबल छी।
 
हरिः हरः!!
 
पुनश्चः लेख मे हमर मनोभावना मात्र अछि, कोनो दावी नहि। भगवान-भगवतीक व्याख्या करबाक कुब्बत हमरा मे नहि अछि। हमर अपन मनक स्थिति जेहेन अछि से मात्र लिखलहुँ-कहलहुँ। त्रुटि लेल अपने समस्त लोक सँ क्षमा प्रार्थना करैत छी। प्रणाम!!