मैथिली उपन्यास पर आधारित धारावाहिक “हम आबि रहल छी”
– रबीन्द्र नारायण मिश्र
भाग २ एतय पढ़ू – https://maithilijindabaad.com/?p=20190
भाग ३ एवं भाग ४
हम आबि रहल छी
(समाजमे बूढ़क दुखद स्थितिक जीवन्त चित्रण करैत उपन्यास)
3
आइ दू दिन भए गेल । शंकर वापस नहि अएलाह । हम असगरे फ्लैटमे हुनकर प्रतीक्षा कए रहल छी । धन कही ओहि आटोबलाकेँ जे हमर जान बाँचल अछि । ओएह भोर-साँझ हाल-चाल पुछि जाइत अछि । जलखै-भोजन अपने ओहिठामसँ लेने अबैत अछि । दबाइ-दारूक जोगार सेहो करैत अछि । हम ओकरा कैक बेर कहबो केलिऐक जे तूँ एतेक किएक परेसान छह ? मुदा ओहो अछि अपन धुनक पक्का । कहलक-
“अपने सन-सन बूढ़क सेवा तँ भाग्ये सँ भेटैत छैक ।”
हम ओकर विचार सुनि अबाक भए गेल रही । दोसर दिन साँझमे जखन ओ झोरामे बहुत रास चीज-वस्तु लेने आएल रहए तँ हम बहुत उदास पड़ल रही । ओ हमर मनोदशाकेँ बूझलक । बड़ीकाल धरि हमर पैर जाँति देलक । कतबो कहिऐक जे तूँ जाह। ओ सुनबे नहि करए । बात-बातमे ओएह कहलक जे दीपेंदु एकटा महिलाक संगे काल्हि अस्पताल गेल छल । हमरा आब बुझाएल जे ओ किएक नहि देखा रहल छल । हम कैकबेर आटोबलाकेँ किछु टाका देबाक प्रयास केलिऐक । मुदा ओ बहुत भावुक भए जाइत छल । कहलक-
“अहाँ अनमन हमर बाबा सन छी । अहाँसँ गप्प करैत छी तँ हमरा ओएह मोनमे बसि जाइत छथि । तेँ हमरा अहाँकेँ सेवा केलासँ बहुत आनंद होइत अछि । जाबे जीबथि हम हुनका संगे गामे रहलहुँ । हुनकर इलाजक बहुत जोगार केलहुँ । ओहीमे सभटा खेत भरना पड़ि गेल । ओ बचबो नहि केलाह । तकर बाद गाममे कथी पर रहितहुँ । दिल्ली चलि अएलहुँ । तहिआसँ एतहि छी । एहिठाम इज्जतिसँ जीबि रहल छी । परिवारो संगे रहैत अछि । मुदा गामक कचोट तँ रहिते अछि । अहाँ भेटलहुँ तँ जेना मोनमे उत्साह भेल । भेल जे अपन गाम-घरसँ फेरसँ जुड़ि गेल छी ।”
हम आटोबलाक बात सुनि कए अबाक रही । एहनो लोक सहरमे होइत छैक से नहि बूझल छल । हम तँ अपन शंकरकेँ देखैत छिअनि । जाबे एहिठाम नहि आएल रही दिन-राति फोन करैत-करैत तंग केने रहथि। जखन हुनकर बात मानि कए एहिठाम अएलहुँ तँ ओ स्वयं कतहु चलि गेलाह । बेसक हम आटोबलाकेँ मना करिऐक मुदा ओएह रहए जे हमर जानो बाँचि रहल छल । हमरा खुआ-पिआ कए आटोबला चलि गेल । ओकरा जाइते हमरा निन्न लागि गेल ।
थोड़बे कालक बाद घंटी बाजल । हम निन्नमे रही । जखन कैकबेर घंटी बाजल तँ हड़बड़ा कए उठलहुँ । केबार खोलैत छी । सामने शंकर ठाढ़ छलाह, असगरे ।
केबार खोलबामे देरी भेलासँ ओ तंग भए गेल रहथि । कहैत छथि-
“सौंसे इलाका घंटी सुनने होएत । मुदा अहाँकेँ कोनो असरे नहि होइत छल ।”
“हमरा सुता गेल रहए । घंटी नहि सुनि सकलिऐक ।”
“इहो कोनो सुतबाक समय छैक?”-ओ तमतमाइत बजलाह ।
के हाल पुछत? के अपन हाल कहत? उन्टे हुनकर भाषण सुनि रहल छलहुँ । तथापि चुप्पे रहि गेलहुँ । ओहो डेरामे अपन समानसभ राखए लगलाह । कपड़ा सभ बदललाह । हमरा मोनमे तरह-तरहक जिज्ञासा होइत छल । ओ असगरे किएक लौटलाह? कनिआ कतए रहि गेलीह? गामक की समाचार अछि? मुदा किछु पुछबाक साहस नहि होअए । ओ अबिते-अबिते तेना ने मुँह लटका लेलेथि जे आगू किछु करबाक माहौल नहि रहि गेल ।
थोड़े कालक बाद फेर घंटी बाजल । शंकर बाहर निकलाह आ दूटा पाकिट लेने घुरलाह ।
एकटा पाकिट हमरा लग राखि देलाह । हम पुछैत छिअनि-“की छैक?”
“पिज्जा”
“एकर की होइत छैक?”
“ई अहाँक भोजन अछि ।”
“ऐँ?”
डिब्बामे भोजनक कल्पनो नहि केने रही । हम गुनधुनमे रही जे की करी । भोजन तँ हमरा आटोबला करा गेल रहए । भूख रहए नहि । हम हुनका से बात कहलिअनि । आटोबलाक नाम सुनिते हुनका जेना देहमे आगि लागि गेलनि । चिकरि कए कहैत छथि-
“ई सहर छैक । जकरा-तकरा एना घर घुसाएब बहुत महग पड़ि सकैत अछि ।”
“मुदा ओ तँ अपने दिसका अछि । हमरा बहुत सेवा केलक अछि । ओ नहि रहैत तँ कहि नहि हमर हालत की रहैत?”
“दूए दिनमे अहाँक हालतकेँ की भए गेल जे अपरिचित व्यक्तिक शरण लेबए पड़ल । ई कोनो गाम नहि छैक । एहि ठाम तरह-तरहक फसाद होइत रहैत छैक । एनामे तँ जानो जा सकैत अछि ।”
हमर मोन बहुत दुखी भए गेल रहए । आब आओर सुनबाक स्थिति नहि रहए । ठामहि ओंगठि गेलहुँ । कहि नहि कखन सुता गेल ।
4
प्रात भेने फेर आटोबला आएल । हमरा लेल जलखै, चाह लेने आएल छल । सीढ़ीपर चढ़ैत काल ओकरा शंकर भेटलखिन।
“तूँ के छह?”
“हम गंगा-आटो चलबैत छी ।”
“ओ तँ तूँहीं हमर फ्लैटक चक्कर लगा रहल छह?”
“फ्लैटक चक्कर नहि लगा रहल छी । एहिठाम बूढ़ा एकसरे रहैत छथि । हुनके सेवामे लागल छी ।”
“जरूर किछु बात हेतैक जे तूँ पछोर कए रहल छह । चुपचाप खसकि जाह । बड़ा चललाह अछि सेवा करए।”
“अहाँकेँ एना नहि बाजक चाही । एतेक वयोवृद्धकेँ अहाँसभ असगरे छोड़ि कए चलि गेलिअनि से नहि सोचाइत अछि। उल्टे हमरापर तामस उतारि रहल छी ।”
“हम की केलहुँ आ की करब ताहिमे तोरा पंचैती करबाक हेतु के कहलकह? अपन काजसँ मतलब राखह आ चुपचाप खसकि जाह । नहि तँ.. ”
“नहि तँ की करबैक?”
“केहन जमाना आबि गेल । ने जान ने पहिचान आ से बनल मेहमान । जँ जानक काज होअए तँ तुरंत एहिठामसँ घसकि जाह आ दोबारा एमहर अएबाक प्रयास नहि करिअह ।”
सीढ़ीपर हल्ला सुनि कए हम बाहर अएलहुँ । आटोबला संगे शंकरकेँ बकझौं करैत देखलिअनि ।
मोनमे बहुत दुख भेल । रहल नहि गेल ।
“एना किएक कए रहल छह? ओ तँ बहुत नीक लोक अछि। अपने गाम दिसका अछि । हम असगर रही तँ जी-जानसँ हमरा सेवा केलक । नहि तँ हमर की हाल रहैत से नहि कहि सकैत छी । ओकरा धन्यवाद करबाक बदलामे तूँ फज्झति कए रहल छह। ई तँ घोर अन्याय थिक ।”
“चुप रहू । अनेरे सभबातमे टपर-टपर नहि करू । इ सहर छैक । ककरो माथपर नहि लिखल छैक जे ओ असलमे की अछि। तेँ सावधानी राखए पड़ैत छैक ।”
आखिर आटोबला चलि गेल । हम बड़ीकाल धरि ओकरा देखैत रहि गेलहुँ ।
थोड़े कालक बाद हम वापस सोफापर बैसि गेलहुँ । होइत छल जे चोट्टे गाम वापस भए जाइ । पाछू लागल शंकर सेहो अबैत छथि । हमरा गुनधुनमे देखि बजैत छथि-
“गामोमे आब लोक ककरोसँ मतलब नहि रखैत छैक । सभ अपन-अपन दलानपर चुक्कीमाली बैसल रहैत अछि । सहरमे तँ सभदिनसँ लोक अलगे रहैत अछि । मुदा कहि नहि अहाँकेँ की भए गेल अछि? दू दिन अएला नहि भेल आ एतेक फसाद बेसाहि लेलहुँ । दुइए दिनमे अहाँकेँ हारनिओ उतरि गेल, अस्पतालो जाए पड़ल, ककरा-ककरासँ दोस्ती भए गेल । ऐनामे जिनगी कोना चलत?”
हमरा रहल नहि गेल । हम चिचिआ उठलहुँ-
“खबरदार! यदि एक शब्द आओर बजलह तँ खैर नहि छह। एकरा जिनगी बाँचब कहैत छैक । ई तँ नर्कोसँ बढ़ि कए अछि । जीविते मृत्यु अछि ।”
हमर तामस देखि शंकर घबड़ा गेल । ओकरा उम्मीद नहि रहैक जे हम ओहुना चिचिआ सकैत छी, सेहो ओकरे डेरापर । ओ आगू किछु नहि बाजल । हमर रक्तचाप बहुत बढ़ि गेल छल । लागए जेना माथ फाटि जाएत । तत्काल मोन पड़ल जे आइ रक्तचापक दबाइ खेबे नहि केलहुँ अछि । झोरामेसँ दबाइ निकाललहुँ । जेना-तेना दबाइ खेलहुँ, पानि पिलहुँ आ सोफेपर पड़ि रहलहुँ । असलमे भोर-साँझ आटोबला अबैत रहैत छल । ओएह दबाइओ दैत छल । मुदा आइ तँ ओ सीढ़ीएपर सँ घुरि गेल ।
सोफापर बैसले-बैसल तरह-तरहक बातसभ सोचाइत अछि । “शंकरक माए आ हम केना दिन-रााति हुनका संगे खेलाइत रहैत छलहुँ । केना हुनकर एक-एक इच्छा पूरा करबाक हेतु जान लगा दैत छलहुँ । केना एकदिन इसकुलमे खसि पड़ल रहथि तँ हम दौगल रही । गामक लोकसभ छगुन्तामे रहए । हम मास्टरकेँ कतेक फज्झति कए देने रहिऐक आओर सुनैत रहि गेल छल । मैट्रिकक परीक्षामे जहन ओ प्रथम श्रेणीसँ उतीर्ण भेल रहए तँ हम हनुमानजीकेँ सवामोन लड्डू चढ़ओने रही आ सौंसेगाम लड्डू बँटने रही । जखन ओ इंजीनियरिंगमे नाम लिखओने रहथि तखन कतेक मोसकिलसँ हम टाकाक जोगार केने रही । चारिसालक हुनकर पढ़ाइमे कहि नहि हमरा कोन-कोन गति ने भेल, ककरा-ककरासँ ने टाका लेबए पड़ल । हमसभ सहैत रहलहुँ-सहर्ष । हमरा विश्वास छल जे शंकर जहिआ नौकरीमे आबि जेताह तहिआ सभ दुख बिला जाएत । गाममे फेर हमरे डंका बाजत । सभ हमरे खुसामद करत।” सोफापर बैसले-बैसल हमर आँखिसँ नोरक धार बहए लगैत अछि । हम जेना अर्द्धमुर्छित अवस्थामे पहुँचि जाइत छी । एही हालमे कहि नहि हम कखन सोफेपर सुति जाइत छी ।
शंकरकेँ आफिस जेबाक समय भए जाइत छनि । ओ हमरा सुतले छोड़ि आफिस चलि जाइत छथि । डेरा एकबेर फेर सुन्न भए जाइत अछि । दुपहरिआमे हमर निन्न टुटैत अछि । भूखसँ पेटमे दर्द भए रहल छल । सामने टेबुलपर रतुका पिज्जा ओहिना डिब्बामे बंद रहैक । हम ओहि डिब्बाकेँ खोलैत छी । लसफस करैत पिज्जाकेँ मुँहमे धरैत छी । लहसुन-पिआजु आ कहि ने की-की सँ परिपूर्ण पिज्जाक स्वाद बहुत नीक लगैत अछि । सभटा पिज्जा देखिते-देखिते खा लैत छी । फ्रिजमेसँ ठंढा पानिक बोतल निकालि गिलासमे ढारि लैत छी आ सौंसे गिलास पानि गटर-गटर पिबि लैत छी । तकरबाद मोन कने आश्वस्त होइत अछि । आटोबला मोन पड़ैत अछि । ओकरा संगे शंकरक दुर्व्यवहारसँ हम बहुत दुखी रही। मोन भेल जे ओकरा फोन करी । कम सँ कम माफी मांगि ली । हम ओहि पर्चीमेसँ आटोबलाक मोबाइल नंबर निकालि ओकरा फोन लगबैत छी । दू सँ तीन बेर घंटी बाजल होएत की ओ धर दए फोन उठा लेलक । बजैत अछि-
“गोर लगैत छी बाबा ।”
“नीके रहह । कोना छह?”
“हम तँ ठीके छी । अपन हाल कहू।”
“अपन हाल की कहिअह? शंकर तोरा संगे नीक व्यवहार नहि केलथि । से जानि बहुत दुखी छी ।”
“की करबैक । जे भेलैक, से भेलैक । अहाँ एहि बातसभपर बेसी नहि सोचू । जाबे अहाँ एहि ठाम छी हमरा मौका भेटत तँ हम फेर अएबे करब । तकर बाद हमरा हुनका सँ की लेना-देना? ओना हम हुनका नीकसँ जनैत छिअनि।”
“से की?”
“जाए दिअ । की-की बूझब । बहुत कष्टमे पड़ि जाएब ।”
ताबतेमे घरक घंटी बाजल । हम फोन राखि देलिऐक आ केबार खोलबाक हेतु आगू बढ़लहुँ ।
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आगूक अध्याय क्रमशः….