व्यंग्य प्रसंग
– राकेश झा, ठाढी, मधुबनी।
आइ भोरुकवा मे एकटा सपना देखलौं कि एकटा बाबाजी हमरा लंग ऐला आ कहला जे माँग तोरा कि चाही । आय जे सब मंगबैं से मिल जेतौ, हम अकचका क पुछलौं बाबाजी हमरे पर ई मेहरबानी कियैक । त कहला जो रे मुर्ख तुहीं सब त सबसं पिछ्ङल छं । अय युग मे तैं तोरे चुनलौं । बेस! बाबाजी के उत्तर हमरा संतुष्टि देलक ।
हम बाबाजी सं वरदान मांगै लेल तैयार भेलौं । मोने मोन सोचलौं जे आय बाबाजी स खुब रास वरदान मंगबैन । बाबाजी हमर मोनक गप्प भैंप गेला । कहला बच्चा ज्यादा लोभ नय ऐकेटा वरदान मिलतौ । इ गप्प सुनिते मोन उदास भ गेल , मुदा चारा की छ्ल तैं वरदान मंगलौं ।
वरदान 1 :- हमरा मिथिला २ाज्य चाही , बाबाजी :- नय तोरा सं पहिले मिरानसे ई मांईग लेलकौ तैं नय देबौ , दोसर कोनो मांग ।
वरदान 2 :- हमरा स्मार्ट बना दियअ । बाबाजी :- ई नय हेताै स्मार्ट बनाबै के सार्टीफिकेट जारी करै के अधिकार एम०एस०यु० के हम द देने छियौ तु किछ आर मांग ।
वरदान 3 :- हमरा एयरपोर्ट चाही । बाबाजी :- नय ई त एकदम नय कियैक त तोहर ओकाईद नय छौ ।
ओकाईदक बात सुइनते हमर भेजा गरमा गेल तमसा क कहलौं जे नय अलग राज्य देब, नय एयरपोर्ट देब, नय स्मार्ट बनायब, त कि देब? बाबाजी के ठुल्लु? ई सुइनते बाबाजी कहला “जा रे जा! ई मांगै के कोन काज! ठुल्लु त पहिले सं देनहे छि , ऐखनो द रहल छि आ आगाँ सेहो यैह देब ।” ई कहि बाबाजी गायब भ गेला ।
सही मे कि हम सब बरका-बरका बाबाजी के पाछु लैग क ठुल्लुए लैत रहब कि अपन प्रयास सं मिथिला केँ अशिक्षा मुक्त , बेरोजगार मुक्त आ दहेज मुक्त बनायब ??? ई प्रश्न के जबाब दी से आग्रह । जय मिथिला ।। मैथिली जिन्दाबाद ।।